सुप्रीम कोर्ट नियुक्तियों के बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है, ये न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के समान : AG ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

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3 April 2019 1:43 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट नियुक्तियों के बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है, ये न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के समान : AG ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

    अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि न्यायिक नियुक्तियों और जजों के ट्रांसफर के बारे में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी का प्रकटीकरण न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के समान होगा।

    सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्ररी जनरल के लिए उपस्थित AG ने 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष यह दलीलें दीं जिसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना ने सुनवाई शुरू की है कि ऐसी जानकारी का खुलासा किया जाए या नहीं।

    वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट की अपील एक CIC के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी जिसमें आरटीआई अधिनियम के तहत सुप्रीम कोर्ट के 3 न्यायाधीशों की नियुक्ति पर कॉलेजियम और सरकार के बीच पत्राचार के विवरण का खुलासा करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को निर्देश दिया गया था।

    आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा आरटीआई अनुरोध के जरिए जस्टिस एच. एल. दत्तू, जस्टिस ए. के. गांगुली और जस्टिस आर. एम. लोढ़ा को वरिष्ठ जज जस्टिस ए. पी. शाह, जस्टिस ए. के. पटनायक और जस्टिस वी. के. गुप्ता को छोड़कर सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच का सम्पूर्ण पत्राचार मांगा गया था। जस्टिस दत्तू और जस्टिस लोढ़ा बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने।

    शीर्ष अदालत ने अपनी अपील में कहा है कि न्यायपालिका के कामकाज में नियुक्ति और स्थानांतरण को लेकर अजनबियों और व्यस्त लोगों को अनावश्यक घुसपैठ से दूर रखना सार्वजनिक हित में है।

    AG ने कहा कि मांगी गई जानकारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करेगी। आगे इस तरह के खुलासे से सभी संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा फैसलों की विश्वसनीयता और ईमानदार राय की स्वतंत्र और स्पष्ट अभिव्यक्ति को भी खतरा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि गैर-प्रकटीकरण को आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) के तहत संरक्षित किया गया है।

    उन्होंने कहा कि केंद्रीय कानून मंत्री, CJI और न्यायाधीशों की नियुक्ति या HC न्यायाधीशों के स्थानांतरण बेहद महत्वपूर्ण मामले हैं और इनका खुलासा नहीं किया जा सकता। इन मामलों पर चर्चा करने वाले न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से और स्पष्ट रूप से इन मामलों पर चर्चा करने में सक्षम होने चाहिए, वे आरटीआई के तहत अपने विचार व्यक्त करने में संकोच कर सकते हैं।

    यह कदम कानून मंत्री, CJI और अन्य न्यायाधीशों के बीच पत्राचार साझा करने के लिए सार्वजनिक हित के लिए गलत कदम होगा। AG ने बताया कि जब न्यायाधीश नियुक्ति और चयन में भिन्न होते हैं, तब भी वे अपने विचार और तर्क नहीं देते ताकि किसी प्रकार की कोई शर्मिंदगी ना हो।

    AG ने कहा कि सूचना के प्रकटीकरण पर 7 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा वर्ष 1981 में एसपी गुप्ता का निर्णय वर्तमान मामले में लागू नहीं होगा क्योंकि उस समय आरटीआई अधिनियम लागू नहीं किया गया था, लेकिन अब आरटीआई को अपवादों के साथ रखा गया है। इस मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।

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