असम में अवैध विदेशी : सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से पूछा, 46 हजार में से सिर्फ चार को ही क्याें निर्वासित किया जा सका ? क्या ये संवैधानिक कर्तव्य नहीं?

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11 April 2019 6:01 AM GMT

  • असम में अवैध विदेशी : सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से पूछा, 46 हजार में से सिर्फ चार को ही क्याें निर्वासित किया जा सका ? क्या ये संवैधानिक कर्तव्य नहीं?

    सुप्रीम कोर्ट ने अवैध विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने के मामले में असम सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।

    मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, ''आप (असम) ने पिछले 4 वर्षों में 46,000 विदेशियों का पता लगाया है। लगभग 2000 लोग हिरासत केंद्र में बंद हैं ... अन्य 44,000 लोग कहां हैं? केवल 4 व्यक्तियों को निर्वासित किया गया है? क्या आपकी सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार चल रही है? हम मानते हैं कि आपके आंकड़े सही हैं। आपका कर्तव्य सभी विदेशियों को निर्वासित करने का है। आपने इसके लिए क्या किया है?"

    राज्य सचिव ने माना कि राज्य का प्रदर्शन रहा है खराब
    इसके उत्तर में कोर्ट में मौजूद असम के मुख्य सचिव ने यह स्वीकार किया कि विदेशियों को निर्वासित करने में राज्य का प्रदर्शन खराब है।

    राज्य के मुख्य सचिव ने जवाब दिया कि वे लोग स्थानीय आबादी में विलय कर चुके हैं और कहा, "विदेशियों की पहचान करने में टास्क फोर्स का प्रदर्शन खराब रहा है।"

    इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "आप स्वीकार करते हैं कि आपका प्रदर्शन बेहद खराब रहा है ... आप एक हलफनामा दें तो हम इससे निपट लेंगे ... आप अबतक केवल 4 व्यक्तियों को निर्वासित करने में सफल क्यों हुए? आप संविधान के तहत अपना कर्तव्य जानते हैं?"

    मुख्य न्यायाधीश ने पूछे कई सवाल
    मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य अपना कर्तव्य निभा रहा है और इस मुद्दे से निपटने के लिए बहुत सारे प्रस्ताव लाए गए हैं।
    मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हमने अंतिम NRC को प्रकाशित करने की अंतिम तिथि 31 जुलाई तय की है ... 40 लाख व्यक्तियों में से जिनके नाम NRC के मसौदे में नहीं हैं .... लगभग 38 लाख ने अपनी आपत्तियां दर्ज की हैं ... आप कैसे जा रहे हैं? समस्या से निपटने के लिए आपत्तियों से निपटने के लिए कितने ट्रिब्यूनल हैं? "

    मुख्य सचिव ने पीठ को बताया कि राज्य द्वारा केंद्र को 900 करोड़ की लागत से 1000 विदेशी ट्रिब्यूनल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया है।

    पीठ ने असम के मुख्य सचिव को यह निर्देश दिया कि कैसे लंबे समय तक हिरासत में रहने वालों को कुछ सुरक्षित उपायों के साथ रिहा किया जा सकता है, इस संबंध में एक हलफनामा दाखिल करें।

    सरकार ने चुनाव के चलते सुनवाई पर रोक की मांग की
    इस दौरान असम सरकार ने पीठ से यह अनुरोध किया कि इस मामले की सुनवाई फिलहाल ना की जाए क्योंकि ये मामला 23 अप्रैल तक 3 चरणों में होने वाले असम के चुनावों को प्रभावित करेगा। पीठ ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और मामले को 25 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

    राज्य सचिव को पेश होने का पीठ ने दिया था आदेश
    1 अप्रैल की सुनवाई में पीठ ने कहा था कि असम सरकार का हलफनामा एक निरर्थक अभ्यास है। पीठ ने असम के मुख्य सचिव की गैर मौजूदगी पर भी सवाल उठाए थे। पीठ ने राज्य को यह चेतावनी दी थी कि वह मुख्य सचिव को अदालत में पेश करने का वारंट जारी कर सकता है।

    असम सरकार ने कहा था कि लगभग 70,000 अवैध विदेशी राज्य की आबादी में विलय हो गए हैं। असम ने यह भी कहा कि उसके पास एक पैनल स्थापित करने का प्रस्ताव है जो अवैध विदेशी लोगों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी चिप के टैगिंग के प्रस्ताव की जांच करेगा। राज्य इस संबंध में पूरी कोशिश कर रहा है।

    पीठ ने राज्य से पूछा था कि उन अवैध विदेशियों के लिए क्या करने जा रहे हैं जो दूसरों के साथ विलय कर चुके हैं। सरकार हिरासत केंद्रों में अवैध विदेशियों के रहने की स्थिति में सुधार कैसे करेगी।

    असम सरकार के रवैये पर पीठ की नाराजगी
    इससे पहले 13 मार्च को असम के हिरासत केंद्र में रखे गए बंदियों पर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर असम सरकार के रवैए पर नाराजगी जताई थी। पीठ ने कहा था, "वर्ष 2005 के अपने फैसले में हमने कहा था कि असम बाहरी आक्रमण का सामना कर रहा है। इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? हम जानना चाहते हैं।"

    असम सरकार से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "यह मामला बहुत दूर चला गया है और मजाक बन गया है। हमें यह भी नहीं बताया गया है कि अब तक कितने विदेशियों का पता चला है।"

    हर्ष मंदर द्वारा दाखिल की गई है जनहित याचिका
    20 सितंबर 2018 को संविधान के अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप असम के हिरासत केंद्रों में रखे गए करीब 2,000 बंदियों के साथ निष्पक्ष, मानवीय और वैध उपचार को सुनिश्चित करने के लिए हर्ष मंदर द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और असम सरकार को नोटिस जारी किया था।

    इसमें यह दिशा निर्देश भी मांगा गया है कि जो लोग विदेशी तय किए गए हैं और प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया के लंबित रहते हुए हिरासत में हैं, उन्हें शरणार्थियों के रूप में माना जाना चाहिए

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