राफेल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई के लिए टाल दिया है।
सोमवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस बात पर हैरानी जताई कि इस मामले को राहुल गांधी अवमानना के मामले के साथ क्यों सुनवाई के लिए नहीं लगाया गया।
पीठ ने कहा कि दोनों मामलों की सुनवाई अब 10 मई को 2 बजे होगी।
प्रशांत भूषण की अर्जी एवं केंद्र को जवाब दाखिल करने का निर्देश
वहीं इस दौरान याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि उन्होंने एक और अर्जी दाखिल कर यह मांग की है कि राफेल संबंधी दस्तावेज अदालत में पेश किए जाएं। इसके अलावा केंद्र ने परजूरी मामले में जवाब दाखिल नहीं किया है। पीठ ने कहा कि केंद्र इस मामले में जवाब दाखिल करे।
इससे पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए शनिवार 4 मई तक का समय दिया था। सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल के उस अनुरोध को ठुकरा दिया था जिसमे उन्होंने माँग की थी कि कोर्ट इसके लिए 4 सप्ताह का समय दे।
बीते 4 मई को राफेल पुनर्विचार याचिकाओं के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि पिछले साल दिसंबर में पारित फैसले के पुनर्विचार को उचित ठहराने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा कोई भी आधार नहीं दिया गया है। गौरतलब है कि इस फैसले में केंद्र की NDA सरकार को क्लीन चिट दी गई थी।
ऐसा कहा गया है कि, उक्त निर्णय इस मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश सामग्री को संबोधित करता है, जो राष्ट्र की सुरक्षा और रक्षा से जुड़े मामलों में न्यायिक जांच के दायरे के संबंध में न्यायिक सिद्धांतों के आधार पर है।
हलफनामे में बताई गयी याचिकाकर्ताओं की मांग
याचिकाकर्ताओं ने भारतीय निगोशिएटिंग टीम (INT) की अंतिम रिपोर्ट और वित्त और कानून मंत्रालयों के साथ परामर्श के रिकॉर्ड की एक प्रति मांगी है, जिसमें रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के अलावा सुरक्षा समिति की कैबिनेट समिति (CCS) की 24 अगस्त, 2016 की बैठक (जहां बेंचमार्क मूल्य से लगभग 2.5 बिलियन यूरो की कीमत बढ़ाने का निर्णय लिया गया था, संप्रभू गारंटी और बैंक गारंटी को अलग किया गया था, मध्यस्थता की सीट बदल दी गई थी) और 23 सितंबर, 2016 को अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से पहले बैठकों का ब्योरा, जहां 'एस्क्रो अकाउंट' से संबंधित मानक प्रावधान, अनुचित प्रभाव का उपयोग, एजेंट/एजेंसी कमीशन 'और' बुक ऑफ एकाउंट्स 'तक पहुंच पर विशेषज्ञों की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया था।
प्रथम दृष्टया मामला बनाने का प्रयास
हलफनामे में आगे कहा गया है कि, "रक्षा मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय ने इसका विरोध किया है, याचिकाकर्ता अब किसी भी तरह का प्रयास करते हुए सरकार से बड़ी संख्या में दस्तावेज प्राप्त करना चाहते हैं ताकि वो इस आधार पर एक प्रथम दृष्टया मामला बनाएं जिससे इस माननीय न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की जा सके।"
"गुप्त दस्तावेज के चलते देश पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभाव"
शीर्ष अदालत के 10 अप्रैल के फैसले के संबंध में, जहां याचिकाकर्ताओं को उनके मामले में मंत्रालय से अनाधिकृत रूप से प्राप्त कुछ "गुप्त" दाखिल करने की अनुमति दी गई, हलफनामे का कहना है कि, "यह अंतरिक्ष, परमाणु प्रतिष्ठानों, रणनीतिक रक्षा क्षमताओं, बलों की परिचालन तैनाती, देश में और बाहर खुफिया तंत्र, काउंटर-टेररिज्म और काउंटर इंसर्जेंसी उपायों आदि से संबंधित संरक्षित राज, सभी के रहस्योद्घाटन के लिए नेतृत्व कर सकता है। सरकार की गुप्त जानकारी के इस तरह के खुलासे से भारत राज्य के अस्तित्व पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।"
आंतरिक फाइलों के संबंध में हलफनामे के विचार
आंतरिक फाइलों के संबंध में, जिसमें खरीद प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में विभिन्न एजेंसियों द्वारा दिए गए विभिन्न विचारों और कानूनी सलाह को दर्ज किया गया है, हलफनामे में यह प्रस्तुत किया गया है कि, "ये अधूरी फ़ाइल हैं जिनमें विभिन्न अधिकारियों द्वारा व्यक्त किए गए विचार अलग-अलग समय पर व्यक्त किए गए हैं न कि केंद्र सरकार के सक्षम प्राधिकारी का अंतिम निर्णय है।"
मंत्रालय ने दावा किया है कि 3 INT सदस्यों द्वारा चिंताओं को उठाए जाने के बाद, क्रमशः 9-10 जून और 18 जुलाई 2016 को दो और INT बैठकें आयोजित की गईं, जहां इन मुद्दों पर विधिवत विचार-विमर्श किया गया और इन चिंताओं को दूर करने के लिए उचित कदम भी उठाए गए। इस दौरान रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) को कुछ चिंताओं को भी संदर्भित किया गया था। INT रिपोर्ट में 126 MMRCA मामले की तुलना में बातचीत के परिणामस्वरूप बेहतर नियम और शर्तें बताई गई हैं।
ऐसा कहा गया है कि, "तत्कालीन JS & AM (एयर), कुछ चिंताओं को सामने लाने वाले 3 हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थे। उसी अधिकारी ने बाद में CCS अनुमोदन के लिए नोट पर हस्ताक्षर किए हैं।"
"याचिकाकर्ताओं ने स्वयं माना है कि पुनर्विचार में बाद में आई जानकारी पर राहत मांगी गई है जो मीडिया रिपोर्ट्स/आंतरिक फाइल नोटिंग के आधार है जो चुने हुए तरीके से लीक की गईं हैं। यह पुनर्विचार के लिए आधार नहीं बन सकती," केंद्र ने कहा है।
"मामले की CBI जांच का नहीं बनता कोई आधार"
याचिकाकर्ताओं का यह तर्क कि सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज करने और जांच के लिए प्रार्थना के साथ अदालत द्वारा निपटा नहीं गया है, इसपर केंद्र ने कहा है - "एक बार जब यह माननीय न्यायालय इस निष्कर्ष पर आ गया था कि तीनों पहलुओं अर्थात, निर्णय लेने की प्रक्रिया, मूल्य निर्धारण और भारतीय ऑफसेट साथी, भारत सरकार द्वारा 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के संवेदनशील मुद्दे पर इस माननीय न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं है, तो सीबीआई द्वारा किसी भी जांच या एफआईआर के पंजीकरण का कोई सवाल ही नहीं है।"
14 दिसंबर के फैसले पर जब उठे थे सवाल
जब 14 दिसंबर, 2018 को यह फैसला सुनाया गया था तो कोर्ट की टिप्पणियों को लेकर हड़कंप मच गया था कि इस सौदे की सीएजी, पीएसी और संसद के समक्ष रखे गए एक नए संस्करण द्वारा जांच की गई थी।
अगले ही दिन सरकार ने अदालत में एक सुधार आवेदन दायर किया था जिसमें सीलबंद कवर और फैसले में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या को सुधारने की मांग की गई।
अपने जवाब में केंद्र ने कहा कि "मूल्य निर्धारण विवरण की सीएजी द्वारा पूरी तरह से जांच की गई है और रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला है कि 36 राफेल खरीद का पूरा पैकेज मूल्य एमएमआरसीए प्रक्रिया की तुलना में ऑडिट गठबंधन कीमत की तुलना में 2.86% कम है, ये अतिरिक्त लाभ के अलावा है।
केंद्र ने कहा कि, "सीएजी ऑडिट रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 126 एमएमआरसीए के मामले में जो खरीद 2000 में शुरू हुई थी, उसने 15 वर्ष बीतने के बाद भी कोई प्रगति नहीं की है और वास्तव में, भारत में विमानों के उत्पादन की लागत की गणना के दोहरे मुद्दे पर विफल रही।
अनिल अंबानी के ऑफसेट भागीदार बनाये जाने पर जवाब
भारतीय ऑफसेट भागीदार (IOP) के रूप में अनिल अंबानी की पसंद पर, हलफनामे में यह पेश किया गया है कि ऑफसेट अनुबंध के अनुसार वार्षिक ऑफसेट कार्यान्वयन कार्यक्रम, अक्टूबर 2019 से शुरू होगा जब विक्रेता/OEM को औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत करना है। ऑफसेट निर्वहन के लिए IOP और उत्पादों और इस संबंध में रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) के प्रावधानों का कोई उल्लंघन नहीं है।
अदालत का 10 अप्रैल के फैसला
दरअसल 10 अप्रैल को राफेल पर पुनर्विचार याचिकाओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज "विशेषाधिकार प्राप्त" हैं और अदालत इन दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकती।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ की पीठ ने कहा था कि वो राफेल फैसले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तारीख तय करेगा। पीठ ने कहा कि वो 'द हिंदू' में प्रकाशित राफेल से संबंधित रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज के आधार पर सौदे की प्रक्रिया का न्यायिक परीक्षण करेगा।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट अपने 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी व अन्य द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।