आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया, केंद्र को नोटिस जारी

LiveLaw News Network

8 Feb 2019 10:09 AM GMT

  • आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया, केंद्र को नोटिस जारी

    सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण को चुनौती देने वाली तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।

    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने ये नोटिस जारी कर इस मामले को मुख्य मामले के साथ जोड़ दिया है। हालांकि इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि पीठ फिलहाल इस आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाने नहीं जा रही है, लेकिन वो इस पर जल्द सुनवाई करेगी।

    इससे पहले 25 जनवरी को सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था। पीठ ने केंद्र को 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए थे। हालांकि पीठ ने संशोधन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस ने तब कहा था कि हम मामले का परीक्षण कर रहे हैं।

    दरअसल सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के लिए भारतीय संसद में पारित 124वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। यूथ फॉर इक्वलिटी नाम के एक संगठन के अलावा जनहित अभियान व 4 अन्य लोगों ने यह याचिकाएं दायर की है। याचिका में यह दावा किया है कि यह संशोधन, संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है। दायर याचिका में इस मुद्दे पर तत्काल सुनवाई की मांग की गयी है और आर्थिक आधार पर नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिये जाने वाले इस संशोधन पर रोक की मांग भी की गई है।

    याचिका में दावा किया गया है कि, "यह संविधान संशोधन पूरी तरह से उन संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करता है जिसके तहत 9 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक स्थिति नहीं हो सकता (इंदिरा साहनी मामला)। इस तरह यह संशोधन कमज़ोर है और इसे निरस्त किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि यह उस फ़ैसले को नकारता है।

    दरअसल 1992 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने इंदिरा साहनी मामले में यह निर्णय दिया था कि सामाजिक उत्थान के लिए आर्थिक मानदंड एक संकेतांक हो सकता है पर यह एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता।

    मौजूदा याचिका में यह भी कहा गया है कि इस विधेयक से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होता है क्योंकि सिर्फ सामान्य वर्ग तक ही आर्थिक आधार पर आरक्षण सीमित नहीं किया जा सकता है और 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण का यह प्रावधान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गो को मिलने वाले 50 फीसदी आरक्षण से अलग है।

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