सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लगभग पूरे दिन चली मैराथन सुनवाई के बाद कर्नाटक के बागी विधायकों की विधानसभा स्पीकर को उनके इस्तीफे पर निर्णय लेने के निर्देश देने के लिए दाखिल याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है।
गौरतलब है कि एच. डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जद (एस) सरकार का विश्वास मत आगामी गुरुवार को निर्धारित है।
उन्होंने कहा कि जिन विधायकों के खिलाफ अयोग्यता नोटिस भेजा गया था, उनमें से एक उमेश जाधव ने 20 मार्च को इस्तीफा दे दिया था। स्पीकर ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया था। इसलिए स्पीकर ने स्वयं अयोग्यता नोटिस का सामना करने वाले विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।
सिंघवी ने यह कहा कि अध्यक्ष के पास अनुच्छेद 190 (3) (बी) के तहत संवैधानिक कर्तव्य है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधायकों के इस्तीफे स्वैच्छिक हैं और किसी जबरदस्ती या प्रलोभन के कारण नहीं हैं। इसलिए उन्होंने संविधान की अनुसूची 10 के तहत दलबदल विरोधी धाराओं के तहत जांच कराने के लिए और समय देने की गुहार लगाई।
उन्होंने कहा कि बागी विधायकों को बजट सत्र में सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए एक व्हिप जारी किया गया है। रोहतगी ने कहा कि अयोग्य करार देने के लिए यह एक चाल है। इन तर्कों के आधार पर कोर्ट ने विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर यथास्थिति का आदेश दिया था। बाद में 5 और बागी विधायकों ने इस मामले में पक्षकार के रूप में शामिल होने के लिए आवेदन दायर किया।
पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए रमेश को पहले ही कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था। 1 सप्ताह के भीतर कांग्रेस और जद (एस) के लगभग 13 और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। वो मुंबई में डेरा डाले हुए हैं। हालांकि वर्ष 2018 के चुनावों के बाद बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन कांग्रेस और जेडी (एस) ने 224 सदस्यों वाले सदन में गठबंधन कर 116 सीटों के आधार पर सरकार बना ली थी।