सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लगभग पूरे दिन चली मैराथन सुनवाई के बाद कर्नाटक के बागी विधायकों की विधानसभा स्पीकर को उनके इस्तीफे पर निर्णय लेने के निर्देश देने के लिए दाखिल याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है।
बुधवार को अदालत सुनाएगी अपना आदेश
CJI के नेतृत्व वाली पीठ अब बुधवार सुबह 10.30 बजे आदेश देगी कि स्पीकर को विधायकों द्वारा दिए गए इस्तीफे पर समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सकता है या नहीं।
गौरतलब है कि एच. डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जद (एस) सरकार का विश्वास मत आगामी गुरुवार को निर्धारित है।
अदालत के समक्ष क्या है प्रश्न ?
अदालत के सामने मुख्य मुद्दा यह है कि क्या अदालत विधानसभा स्पीकर को बागी विधायकों द्वारा दिए गए उनके इस्तीफे पर निर्णय लेने का निर्देश दे सकती है जबकि उनके खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू की गई है१
"अयोग्यता से जुड़ी कार्यवाही का नोटिस केवल 2 सदस्यों को"
इस मामले में याचिकाकर्ताओं के लिए अपील करते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि अयोग्य ठहराए जाने की कार्यवाही का नोटिस केवल 2 बागी विधायकों के खिलाफ जारी किया गया है।
उन्होंने कहा कि जिन विधायकों के खिलाफ अयोग्यता नोटिस भेजा गया था, उनमें से एक उमेश जाधव ने 20 मार्च को इस्तीफा दे दिया था। स्पीकर ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया था। इसलिए स्पीकर ने स्वयं अयोग्यता नोटिस का सामना करने वाले विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।
"विधायक वापस से जनता के बीच जाने के इच्छुक"
संविधान की धारा 190 और 10वीं अनुसूची के तहत स्पीकर की भूमिकाएं अलग-अलग हैं। इसलिए अयोग्यता कार्यवाही की लंबितता इस्तीफे स्वीकार करने पर रोक नहीं लगाती है। रोहतगी ने इस बात से इनकार किया कि विधायकों ने भाजपा में शामिल होने के लिए ये कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि वो सभी, जनता के पास वापस जाना चाहते हैं।
"मौजूदा मामले में अदालत कर सकती है स्पीकर को निर्देशित"
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 212 के तहत यह सरंक्षण है कि सदन की कार्यवाही की वैधता को न्यायालय द्वारा प्रश्न में नहीं लाया जाना चाहिए लेकिन अदालत के लिए सदन से बाहर के मामले में स्पीकर को निर्णय लेने के लिए निर्देशित करने पर रोक नहीं है।
स्पीकर की ओर से दी गयी दलील
स्पीकर रमेश कुमार के लिए अपील करते हुए वरिष्ठ वकील ए. एम. सिंघवी ने कहा कि अयोग्य ठहराने की कार्यवाही फरवरी में शुरू की गई थी। इससे बाद विधायकों ने अपना इस्तीफा सौंपा है।
"स्पीकर को पहले अयोग्यता कार्रवाई पर लेना है निर्णय"
सिंघवी ने कहा, "वैध इस्तीफा व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस मामले में विधायकों ने व्यक्तिगत रूप से केवल 11 जुलाई को स्पीकर के सामने खुद को पेश किया।" सिंघवी ने यह दलील दी कि अयोग्यता कार्रवाई पहले ही शुरु हो चुकी है और स्पीकर को पहले उस पर निर्णय लेना है। संविधान का अनुच्छेद 190 और 10वीं अनुसूची यही कहती है। इस्तीफे का उपयोग अयोग्यता के परिणामों को रोकने के लिए नहीं किया जा सकता है, जो पहले से ही हो चुका है।
"इस्तीफे स्वेच्छा से तो स्पीकर ने क्यों नहीं लिया फैसला१"
इस बिंदु पर CJI ने उनसे पूछा कि यदि 11 जुलाई को उनके सामने पेश होने के बाद इस्तीफे स्वेच्छा से दिए गए हैं तो किसने स्पीकर को फैसला लेने से रोक दिया। जवाब में सिंघवी ने 12 जुलाई को पारित यथास्थिति आदेश में संशोधन की मांग की ताकि स्पीकर बुधवार तक अयोग्यता और इस्तीफा दोनों पर फैसला कर सकें।
मुख़्यमंत्री कुमारस्वामी की ओर से दी गयी दलील
मुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अदालत से स्पीकर को कोई विशेष निर्देश पारित करने से परहेज करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए न्यायालय ने 11 जुलाई को अध्यक्ष को निर्देश देकर अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया है।
"अदालत को 'राजनीतिक कठपुतली' बनने से बचना होगा"
उन्होंने कहा, "यह न्यायालय स्पीकर के निर्णय के बाद ही हस्तक्षेप कर सकता है और उसके पहले नहीं। न्यायिक समीक्षा का इस्तेमाल स्पीकर द्वारा निर्णय लेने से पहले नहीं किया जा सकता है।" धवन ने यह चेतावनी दी कि विधायकों की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत 'राजनीतिक कठपुतली' बनेगी। उन्होंने इस मामले को मंत्री पद के लिए 'पैक में शिकार' करार दिया। कांग्रेस-जद (एस) के बागी विधायकों ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि स्पीकर रमेश कुमार उनके इस्तीफे मंजूर करने से इनकार कर रहे हैं।
"पीठ ने स्पीकर से फैसला करने का किया था अनुरोध"
इससे पहले CJI की अगुवाई वाली पीठ ने 11 जुलाई को शाम 6 बजे स्पीकर से मिलने के लिए विधायकों को अनुमति देने का एक आदेश पारित किया था और उस दिन के शेष समय के दौरान स्पीकर से फैसला करने का अनुरोध किया था। हालांकि स्पीकर ने अदालत की समय सीमा के अनुसार कार्य करने से इनकार कर दिया था।
स्पीकर ने लगाई थी और अधिक समय दिए जाने की गुहार
जब अदालत ने 12 जुलाई को इस मामले पर विचार किया तो अगले दिन, वरिष्ठ वकील सिंघवी ने स्पीकर की ओर से यह प्रस्तुत किया कि अयोग्य ठहराए जाने से बचने के लिए विधायकों के इस्तीफे एक समझौता के तहत थे।
सिंघवी ने यह कहा कि अध्यक्ष के पास अनुच्छेद 190 (3) (बी) के तहत संवैधानिक कर्तव्य है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधायकों के इस्तीफे स्वैच्छिक हैं और किसी जबरदस्ती या प्रलोभन के कारण नहीं हैं। इसलिए उन्होंने संविधान की अनुसूची 10 के तहत दलबदल विरोधी धाराओं के तहत जांच कराने के लिए और समय देने की गुहार लगाई।
"स्पीकर कर रहे हैं फैसला लेने में देरी"
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने बागी विधायकों के लिए प्रस्तुत किया कि विधायकों की अयोग्यता के कारण स्पीकर इस्तीफा देने के फैसले पर जानबूझकर देरी कर रहे हैं। चूंकि इस्तीफे 'वन लाइन लेटर्स' थे, इसलिए रोहतगी ने कहा कि स्पीकर को इतना समय क्यों चाहिए।
उन्होंने कहा कि बागी विधायकों को बजट सत्र में सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए एक व्हिप जारी किया गया है। रोहतगी ने कहा कि अयोग्य करार देने के लिए यह एक चाल है। इन तर्कों के आधार पर कोर्ट ने विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर यथास्थिति का आदेश दिया था। बाद में 5 और बागी विधायकों ने इस मामले में पक्षकार के रूप में शामिल होने के लिए आवेदन दायर किया।
कर्नाटक में राजनीतिक संकट
इस बीच कर्नाटक के सीएम एच. डी. कुमारस्वामी ने घोषणा की कि वह गुरुवार को विश्वास मत मांगेंगे। मौजूदा संकट 1 जुलाई को विजयनगर के विधायक आनंद सिंह और गोलक के विधायक रमेश जरकीहोली के इस्तीफे के साथ शुरू हुआ।
पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए रमेश को पहले ही कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था। 1 सप्ताह के भीतर कांग्रेस और जद (एस) के लगभग 13 और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। वो मुंबई में डेरा डाले हुए हैं। हालांकि वर्ष 2018 के चुनावों के बाद बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन कांग्रेस और जेडी (एस) ने 224 सदस्यों वाले सदन में गठबंधन कर 116 सीटों के आधार पर सरकार बना ली थी।