सुप्रीम कोर्ट ने सरवन भवन के मालिक को सरेंडर करने के लिए वक्त देने से इनकार किया, मिली है उम्रकैद
Live Law Hindi
9 July 2019 4:09 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सरवन भवन के भारत और विदेशों में होटलों की श्रृंखला के मालिक पी. राजगोपाल को स्वास्थ्य आधार पर सरेंडर करने के लिए समय देने से इनकार कर दिया है।
"बीमारी का जिक्र सुनवाई के दौरान कभी क्यों नहीं हुआ१"
मंगलवार को जस्टिस एन. वी. रमना की पीठ ने दोषी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलीलों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि अगर वो इतने बीमार हैं तो अपील पर सुनवाई के दौरान कभी इसका जिक्र क्यों नहीं किया गया।
दरअसल दोषी की तरफ से कहा गया कि वो बीमार हैं और फिलहाल जेल नहीं जा सकते। वो चेन्नई के अस्पताल में भर्ती हैं। इसलिए उन्हें सरेंडर के लिए और समय दिया जाना चाहिए।
राजगोपाल के खिलाफ मामला
इससे पहले 29 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने राजगोपाल की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था। राजगोपाल को अपने कर्मचारी संतकुमार की हत्या करने का दोषी ठहराया गया है क्योंकि वह संतकुमार की पत्नी जीवज्योति से शादी करना चाहता था। इस मामले में 7 अन्य की भी सजा की पुष्टि की गई।
SC ने मद्रास HC के फैसले को रखा था बरकरार
जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस एम. एम. शांतनागौदर और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की 3 जजों की बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था जिसने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को 10 साल से उम्रकैद तक बढ़ा दिया था। बेंच ने आरोपियों को आत्मसमर्पण करने के लिए 7 जुलाई तक का समय दिया था।
अपील की गयी थी खारिज
राजगोपाल और अन्य लोगों द्वारा दायर की गई अपील को खारिज करते हुए बेंच ने कहा था कि दोनों अपराध (अपहरण और हत्या) करने का मकसद एक ही है क्योंकि जीवज्योति से शादी करने के लिए अभियुक्त नंबर 1 को इसे करने में सक्षम थे।
"संतराम से छुटकारा पाने के लिए की गयी हत्या"
न्यायमूर्ति शांतनागौदर ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि पहला अपराध (अपहरण) केवल धमकी देने और दबाव डालने के इरादे से किया गया था। दूसरे अपराध के पीछे का मकसद संतकुमार की हत्या करना था, ताकि दोषियों द्वारा स्थायी रूप से उससे छुटकारा पाया जा सके।
अदालत ने कहा "हम इस विचार से हैं कि वैज्ञानिक साक्ष्य को ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ उच्च न्यायालय ने भी सही माना है और शरीर की पहचान के बारे में गवाहों के साक्ष्य मजबूत करते हैं। गवाहों के साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि टाइगरकोला से बरामद शव की पहचान उस संतकुमार के रूप में की गई थी और उसी शव को बाहर निकाला गया था। यह आवश्यक है कि सभी आपराधिक मामलों में उचित संदेह से परे सबूतों को जोड़ा जाना चाहिए।
अदालत ने आगे जोड़ते हुए कहा, "यह आवश्यक नहीं है कि इस तरह का सबूत एकदम सही होना चाहिए और जो कोई दोषी है वह केवल इसलिए बच जाए क्योंकि मानव प्रक्रियाओं के माध्यम से सच्चाई विकसित करने में कुछ कमियां रह जाएं। एक आपराधिक मुकदमे में न्याय को संचालित करने के लिए पारंपरिक हठधर्मी दृष्टिकोण को तर्कसंगत, यथार्थवादी और वास्तविक दृष्टिकोण से बदलना होगा।"
न्याय को प्रमाण के नियम से अतिरंजित करके नहीं बनाया जा सकता है निष्फल
पीठ ने यह कहा था कि न्याय को प्रमाण के नियम से अतिरंजित करके निष्फल नहीं बनाया जा सकता क्योंकि संदेह का लाभ हमेशा उचित होना चाहिए और काल्पनिक नहीं होना चाहिए। अभियोजन पक्ष के सबूतों को स्वीकार करते हुए पीठ ने आठों आरोपियों की उम्रकैद की सजा की पुष्टि की थी।