जेहाद का अर्थ संघर्ष करना, सिर्फ जेहाद बोलने का मतलब यह नहीं कि आरोपी आतंकवादी है : महाराष्ट्र अदालत [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
20 Jun 2019 2:22 PM IST
अकोला में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ "जेहाद" शब्द का उपयोग करने का मतलब यह नहीं है कि एक आरोपी आतंकवादी है। कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मामले में 3 आरोपियों को बरी कर दिया।
विशेष न्यायाधीश ए. एस. जाधव ने तीनों आरोपियों अब्दुल मलिक अब्दुल रज्जाक, शोएब खान और सलीम मलिक के ट्रायल की अध्यक्षता की। अब्दुल और शोएब 24 साल के हैं जबकि सलीम 26 साल का है।
क्या था अभियुक्तों के खिलाफ मामला१
अभियुक्तों पर मुस्लिम युवाओं को आतंकवादी संगठन में शामिल होने के लिए प्रभावित करने और घातक हथियार के साथ आतंकवादी वारदात की साजिश रचने के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 16 और 18, शस्त्र अधिनियम की धारा 4/25 और भारतीय दंड संहिता की धारा 307, 332, 333, 353, 186 के साथ 120 बी और बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135 के तहत FIR दर्ज की गई। अभियोजन पक्ष ने यह आरोप लगाया कि अभियुक्तों ने बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 37 के तहत निषेध आदेश का उल्लंघन किया है।
यह आरोप लगाया गया कि उसने पुलिस कांस्टेबल अमोल बडकुले पर चाकू से हमला किया, फिर उसने अन्य 2 पुलिसकर्मियों योगेश डोंगरवार और सिपाही सुदर्शन अघव पर हमला किया। वह अपने चाकू को हवा में घुमा रहा था और चिल्ला रहा था, "तुमने गोहत्या कानून लागू किया इसलिए मैं तुझे जान से मारूंगा।"
पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया। पुलिस कांस्टेबल अमोल की बायीं बांह, कोहनी के जोड़, और पुलिस कांस्टेबल योगेश के दाहिने कान के पास चोट लगी और सुदर्शन को भी कई चोट लगी।
प्रारंभिक जांच API गजेंद्र क्षीरसागर को सौंपी गई और उन्होंने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। उसकी निजी तलाशी के दौरान उसके पास से एक रामपुरी चाकू और एक और चाकू बरामद किया गया। इसके बाद एसडीपीओ अश्विनी पाटिल ने अपनी देखरेख में आगे की जांच की। उन्होंने घायल गवाहों का बयान दर्ज किया और घटनास्थल के सीसीटीवी फुटेज एकत्र किए। आरोपी नंबर 1 से पूछताछ के दौरान यह पता चला कि उसने "व्हाट्सएप फॉरएवर" नाम से अपने व्हाट्सएप पर सोशल ग्रुप बनाया था और इस ग्रुप पर जेहाद भड़काने वाले टेक्स्ट मैसेज और 2 ऑडियो क्लिप भेजे थे।
इस प्रकार इस व्हाट्सएप समूह के कुछ सदस्यों के मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए। प्रथम दृष्टया पाया गया कि वह गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त था। इसलिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 15 और 16 को उसके खिलाफ लागू किया गया। आगे की जांच आतंकवाद निरोधी दस्ते को सौंपी गई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपी ने पूछताछ के दौरान यह भी खुलासा किया कि वह मसूद अजहर, जाकिर नाइक और आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के भाषणों से प्रभावित था। उन्होंने आगे यह खुलासा किया कि उन्होंने अपने मोबाइल में "रंग-ओ-नूर" वेबसाइट डाउनलोड की थी।
"मेरे विचार में चश्मदीद गवाहों के साक्ष्यों की गहराई से जांच करने पर यह पता चलता है कि सभी पुलिस गवाहों और स्वतंत्र चश्मदीद गवाहों के मौखिक साक्ष्य हमले की विशेष सामग्री पर बरकरार हैं। उनके साक्ष्य में कुछ मामूली बदलाव हैं। चूंकि हमला अचानक से किया गया था और उन्होंने विभिन्न स्थानों से इस हमले को देखा।"
विशेष रूप से चिकित्सा साक्ष्य का जिक्र करते हुए न्यायालय ने आगे कहा-
"यह सच है कि पीडब्लू 11 पुलिस कांस्टेबल अमोल द्वारा जारी चोट दायीं कनपटी क्षेत्र पर थी। हालांकि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त ने जानबूझकर शरीर के इन हिस्सों को हमले के लिए नहीं चुना है। उसने सरकार के खिलाफ अपना आक्रोश दिखाया है। गोहत्या पर प्रतिबंध के बारे में सरकार के फैसले और पुलिस पर उसने अपना गुस्सा निकाला। मुझे लगता है कि वर्तमान मामले में हत्या के प्रयास का सिद्धांत समाप्त हो गया है। "
अभियोजन पक्ष के मामले में मौजूद दुर्बलताओं को इंगित करने के बाद कोर्ट ने कहा-
"रिकॉर्ड पर सभी सबूतों पर विचार करते हुए मेरा मानना है कि PW11, PW12, PW15 के सबूतों की सहायता से अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे यह साबित कर दिया है कि आरोपी नंबर 1 ने तीन पुलिसकर्मियों PW11 अमोल बडकुले, PW 12 योगेश डोंगरवार और PW 15 सुदर्शन पर स्वेच्छा से हमला किया है और आपराधिक बल का इस्तेमाल किया है जिससे उन्हें लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए चोट लगी।"
अदालत ने जारी रखते हुए कहा, "अभियुक्त नंबर 1 ने चाकू से हमला करके उन्हें अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोका। जब एक लोक सेवक को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने या उसे स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के इरादे से हमला किया जाता है तो उसे आईपीसी की धारा 324, 332 और 353 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। यह नोट करना उचित है कि हालांकि अभियोजन पक्ष यह स्थापित करने में सक्षम रहा कि आरोपी नंबर 1 ने उन पर हमला किया जब वे अपने सार्वजनिक कार्य का निर्वहन कर रहे थे। हालांकि, इस बात को स्थापित करने के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं है कि आरोपियों द्वारा किए गए इस हमले से आम तौर पर जनता को भड़काने की संभावना थी।"
अभियुक्तों के पास से बरामद किए गए मोबाइल फोन से बरामद ऑडियो क्लिप अभियोजन पक्ष की ओर से लाए गए आरोपों पर उसे दोषी नहीं ठहराते हैं-
"मेरे विचार में अभियुक्त की ओर से आतंकवादी कार्रवाई साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के विशेषज्ञ के सबूत सहायक नहीं हैं। मैं Ex 314 में परिलक्षित ऑडियो क्लिप की सामग्री से गुजरा हूं। ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी नंबर 1 ने गोहत्या पर प्रतिबंध के लिए सरकार और कुछ हिंदू संगठन के खिलाफ हिंसा से अपने गुस्से का प्रदर्शन किया है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि उसने "जेहाद" शब्द का इस्तेमाल किया था। लेकिन यह निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी है कि केवल "जेहाद" शब्द का उपयोग करने के लिए उसे आतंकवादी के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता।
अदालत ने जारी रखते हुए कहा, "जेहाद एक अरबी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है संघर्ष करना। बीबीसी के अनुसार जेहाद का तीसरा अर्थ एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए संघर्ष करना है। इसलिए इस मामले में अभियुक्त को सिर्फ "जेहाद" शब्द का इस्तेमाल करने पर आतंकवादी के रूप में ब्रांड करना उचित नहीं होगा।"
इस प्रकार इस मामले में केवल मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक को आईपीसी की धारा 324, 332 और 353 के तहत दोषी ठहराया गया और क्रमशः 3 साल, 3 साल और 2 साल की समवर्ती सजा सुनाई गई।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी सितंबर 2015 से हिरासत में है और वह पहले से ही सजा की अवधि पूरी करने की वजह से रिहाई का हकदार है। इसके अलावा सभी आरोपियों को UAPA, बॉम्बे पुलिस अधिनियम और शस्त्र अधिनियम के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया।