गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पूर्व सैनिक सनाउल्लाह की रिहाई का निर्देश दिया, ट्रिब्यूनल ने करार दिया था विदेशी

Live Law Hindi

8 Jun 2019 3:49 PM GMT

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पूर्व सैनिक सनाउल्लाह की रिहाई का निर्देश दिया, ट्रिब्यूनल ने करार दिया था विदेशी

    गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में पूर्व सैनिक मोहम्मद सनाउल्लाह की अंतरिम रिहाई का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि सनाउल्लाह को असम में विदेशी ट्रिब्यूनल ने 'विदेशी' करार दिया था और इसके बाद 28 मई को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

    सेना से मानद लेफ्टिनेंट के रूप में हो चुके हैं सेवानिवृत्त
    52 वर्षीय मोहम्मद सनाउल्ला वर्ष 2017 में सेना से मानद लेफ्टिनेंट के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने विदेशी ट्रिब्यूनल, बोको के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि वह बांग्लादेश के अप्रवासी मजदूर थे। उन्होंने गाउलपारा में विदेशियों के हिरासत केंद्र से अंतरिम रिहाई की मांग करते हुए अर्जी भी दाखिल की थी।

    जमानत राशि एवं मुचलके पर मिली जमानत
    वरिष्ठ वकील जयसिंह की वकील एच. आर. ए. चौधरी, अमन वदूद और सैयद बुरहानुर रहमान के सहयोग से दलीलें सुनने के बाद जस्टिस मनोजीत भुइयां और जस्टिस पी. के. देव की पीठ ने सनाउल्ला को इस शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया कि वह जमानत राशि के 20,000 रुपये और 2 स्थानीय मुचलके दाखिल करेंगे। उन्हें पुलिस अधीक्षक, कामरूप की पूर्वानुमति के बिना कामरूप की क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर ना जाने का भी निर्देश दिया गया है।

    4 हफ्ते में उत्तरदाताओं को दाखिल करना होगा जवाब
    कोर्ट ने प्राधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि सनाउल्ला के बायोमेट्रिक्स लिए जाएं जिसमें उनकी आँखों और अंगुलियों के निशान भी शामिल हैं। उत्तरदाताओं केंद्र और असम सरकारों, एनआरसी अधिकारियों और असम सीमा पुलिस को 4 सप्ताह के भीतर याचिका का जवाब देने के लिए निर्देशित किया गया है। सीमा पुलिस के जांच अधिकारी चंद्रमल दास, जिन्होंने सनाउल्ला के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की थी, को भी उनकी व्यक्तिगत क्षमता में प्रतिवादी के रूप में जोड़ा गया है।

    सनाउल्ला को एक गैर-नागरिक के रूप में किया गया था घोषित
    इससे पहले 31 मई को दायर याचिका में सनाउल्ला को एक गैर-नागरिक के रूप में घोषित करने और उसके परिणामस्वरूप गिरफ्तारी को "मनमाना, विकृत और अवैध" बताते हुए ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी गई थी। सनाउल्ला के खिलाफ कार्रवाई सितंबर 2018 में शुरू हुई थी और ये कार्रवाई वर्ष 2008 में असम बॉर्डर पुलिस द्वारा दायर एक रिपोर्ट के आधार पर की गई जिसमें कहा गया था कि वह "अवैध प्रवासी" हैं।

    ले चुके हैं कारगिल युद्ध में भाग, रहें हैं सेना का हिस्सा
    विडंबना यह है कि सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद वह असम सीमा पुलिस में सब इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रहे थे जिसे संदिग्ध नागरिकों और अवैध प्रवासियों की पहचान करने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का काम सौंपा जाता है। याचिका के अनुसार ट्रिब्यूनल के आदेश में सबसे भयावह त्रुटि यह है कि वह ध्यान देने में विफल रहा कि उन्होंने वर्ष 1987 से 2017 तक भारतीय सेना की सेवा की थी और 1999 के कारगिल युद्ध में भाग लिया था।

    सनाउल्ला वर्ष 1987 में सेना में शामिल हुए थे और वर्ष 2017 में सूबेदार के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उन्हें मानद लेफ्टिनेंट के रूप में भी पदोन्नत किया गया था। बोको में ट्रिब्यूनल ने इस तथ्य का उल्लेख किया था कि उनका नाम वर्ष 1986 की मतदाता सूची में नहीं था। हालांकि वह तब 20 वर्ष के थे।

    "ट्रिब्यूनल द्वारा की गयी गंभीर गलती"
    याचिका में कहा गया है कि यह ट्रिब्यूनल द्वारा एक गंभीर गलती है क्योंकि वर्ष 1986 में वोट करने की न्यूनतम आयु 21 साल थी और इसे वर्ष 1989 में किए गए 61वें संविधान संशोधन के माध्यम से 18 साल तक घटा दिया गया था। ट्रिब्यूनल यह नोटिस करने में विफल रहा कि उनका नाम वर्ष 1989 से मतदाता सूची में था और हाल ही में हुए चुनाव में भी उन्होंने मतदान किया था।

    Tags
    Next Story