" हमने ऐसा कभी नहीं कहा " : सुप्रीम कोर्ट ने ' चौकीदार चोर है ' टिप्पणी पर मीनाक्षी लेखी की अवमानना याचिका पर राहुल गांधी से स्पष्टीकरण मांगी
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15 April 2019 10:53 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने राफेल के फैसले के हवाले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी को लेकर भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी द्वारा दायर अवमानना याचिका में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से स्पष्टीकरण मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजनीतिक नेताओं को निर्देश दिया कि वो अदालत के किसी भी विचार, टिप्पणियों या निष्कर्षों को मीडिया के लिए और सार्वजनिक भाषणों में नहीं कहेंगे जब तक कि इस तरह के विचार या निष्कर्ष अदालत द्वारा दर्ज नहीं किए जाते हैं।
याचिका में कहा गया है कि 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की प्रारंभिक आपत्ति को खारिज किया था लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बयानों में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि चौकीदार चोर है। जबकि कोर्ट ने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की थी।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ की पीठ ने कहा था कि वो राफेल फैसले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तारीख तय करेगा।
पीठ ने कहा कि वो 'द हिंदू' में प्रकाशित राफेल से संबंधित रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज के आधार पर सौदे की प्रक्रिया का न्यायिक परीक्षण करेगा।
इस दौरान अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि प्रस्तुत दस्तावेज विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज हैं, जिन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के अनुसार साक्ष्य नहीं माना जा सकता। इन दस्तावेजों को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है। AG ने यह भी कहा कि दस्तावेजों के प्रकटीकरण को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत धारा 8 (1) (ए) के अनुसार छूट दी गई है।
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ ने हालांकि यह कहते हुए जवाब दिया था कि आरटीआई अधिनियम की धारा 22 ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम पर एक व्यापक प्रभाव दिया है। उन्होंने आरटीआई कानून की धारा 24 का उल्लेख करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में सुरक्षा प्रतिष्ठानों को भी जानकारी देने से छूट नहीं है।
मामले के याचिकाकर्ताओं में से एक प्रशांत भूषण ने AG के दावों को गलत बताते हुए कहा था कि विशेषाधिकार का दावा उन दस्तावेजों पर नहीं किया जा सकता जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 केवल "अप्रकाशित दस्तावेजों" की रक्षा करती है।
उन्होंने कहा था कि स्रोतों की रक्षा करने के लिए पत्रकारों के विशेषाधिकार को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट की धारा 15 के अनुसार द्वारा मान्यता प्राप्त है। उन्होंने "पेंटागन पेपर्स केस" का भी उल्लेख किया था और कहा कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने वियतनाम युद्ध से संबंधित दस्तावेजों के प्रकाशन की अनुमति दी थी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर (राफेल से जुड़े) प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी व अन्य द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।