चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगेगी या नहीं, सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनाएगा फैसला
Live Law Hindi
11 April 2019 7:54 PM IST
राजनीतिक दलों को बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने के लिए बनी चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगेगी या नहीं, सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस पर अपना फैसला सुनाएगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल, चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश प्रशांत भूषण की दलीलों को सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा।
चुनाव आयोग ने की पारदर्शिता की वकालत
इस दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि आयोग चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहता है, जिसे वर्तमान में चुनावी बॉन्ड के रूप में सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।
"चुनावी बॉन्ड योजना के जरिये काले धन पर अंकुश"- AG
शुरुआत में AG ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की योजना का उद्देश्य चुनावों में काले धन पर अंकुश लगाना है। उन्होंने कहा कि काले धन के खात्मे के लिए चुनावी बॉन्ड की योजना शुरू की गई थी और यह पॉलिसी का विषय है। इसे लागू करने की कोशिश के लिए किसी भी सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि योजना के दुरुपयोग के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं और ये बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं, जो बॉन्ड के खरीदार की पहचान बनाए रखेंगे। लेकिन जिस पार्टी को बॉन्ड प्राप्त हुआ, वह गोपनीय होगा।
उन्होंने कहा कि बैंक, बॉन्ड खरीदार का केवाईसी बनाए रखेगा। एक राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड के लिए केवल एक चालू खाता खोल सकता है। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वालों की पहचान का खुलासा न हो।
AG ने कहा कि हर चुनाव में भ्रष्टाचार और कदाचार हो रहा है और मतदाताओं को लुभाने के लिए हर गैरकानूनी तरीका अपनाया जा रहा है, यही जीवन का तरीका है। चुनावी बॉन्ड की योजना उसी पर अंकुश लगाने का एक प्रयोग है और न्यायालय को इस मामले में कम से कम इस लोकसभा चुनाव के अंत तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। नई सरकार के सत्ता में आने के बाद वह इस योजना की समीक्षा करेगी।
जस्टिस दीपक गुप्ता की टिप्पणी
जस्टिस दीपक गुप्ता ने AG का ध्यान आकर्षित किया कि यह प्रणाली अपारदर्शी है और इसमे पारदर्शिता की कमी है। इसके परिणामस्वरूप काले धन को सफेद में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अलावा लोकतंत्र में मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दलों द्वारा किससे दान प्राप्त किया जा रहा है लेकिन "आप इसे रोक रहे हैं।"
"मतदाताओं को दान की जानकारी होना आवश्यक नहीं" - AG
AG ने कहा, "मतदाताओं को दान के बारे में जानने का अधिकार नहीं है। उन्हें केवल उम्मीदवारों के बारे में पता होना चाहिए।मतदाताओं को यह जानने की जरूरत नहीं है कि राजनीतिक दलों का पैसा कहां से आता है। इसके अलावा पुट्टस्वामी के फैसले के बाद निजता का अधिकार भी है।
CJI के AG से सवाल
CJI ने AG से पूछा "हम जानना चाहते हैं कि जब बैंक X या Y द्वारा आवेदन पर चुनावी बॉन्ड जारी करता है, तो क्या बैंक के पास यह विवरण होगा कि कौन सा बॉन्ड X को जारी किया गया है और कौनसा Y को?"
CJI ने आगे कहा, "यदि ऐसा है तो काले धन से लड़ने की कोशिश करने की आपकी पूरी कवायद बेकार हो जाती है।"
जस्टिस संजीव खन्ना की टिप्पणी
जस्टिस संजीव खन्ना ने AG को बताया कि आपने जिस केवाईसी का उल्लेख किया है वह केवल क्रेता की पहचान के बारे में है। यह धन की वास्तविकता का प्रमाण पत्र नहीं है - चाहे वह काला हो या सफेद। यदि कई शेल कंपनियों के माध्यम से पैसे का लेन-देन किया जाता है तो केवाईसी किसी भी उद्देश्य से कार्य नहीं करेगा।