मायावती ने स्मारक में अपनी मूर्तियों और हाथी प्रतीकों को सुप्रीम कोर्ट में सही ठहराया, कहा ये जनता की इच्छा
Live Law Hindi
2 April 2019 9:27 PM IST
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश के कई शहरों में उनकी प्रतिमाओं की स्थापना को सही ठहराया है और कहा है कि ये मूर्तियां "लोगों की इच्छा" का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मायावती ने भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा की गई उस टिप्पणी के जवाब में अपना यह हलफनामा दायर किया है कि उन्हें खुद की प्रतिमाओं और बसपा के पार्टी चिन्ह हाथियों की मूर्तियों की स्थापना पर खर्च किए गए सार्वजनिक धन को वापस करना चाहिए।
"लोगों की इच्छा को राज्य विधायिका द्वारा समकालीन महिला दलित नेता के सम्मान में प्रतिवादी उत्तरदाता की प्रतिमाओं को स्थापित करने के प्रस्ताव के साथ व्यक्त किया गया था, जिन्होंने वंचित समुदाय के भले के लिए अपने जीवन का बलिदान करने का फैसला किया है," हलफनामे में मायावती द्वारा कहा गया।
उन्होंने यह भी कहा कि हाथी की मूर्तियाँ राष्ट्रपति भवन, मंदिरों को सुशोभित करती हैं और उन्हें भारतीय पौराणिक कथाओं में एक स्वागत योग्य प्रतीक के तौर पर माना जाता है।
उन्होंने कहा, "निश्चित रूप से मैं कांशी राम की प्रतिमा के पास अपनी मूर्तियों को स्थापित करने में राज्य के विधायकों की इच्छा के विपरीत नहीं जा सकती थी, जिनके लिए देश ने मरणोपरांत भारत रत्न देने की भी मांग उठाई है।"
उन्होंने इंदिरा और राजीव गांधी की प्रतिमाओं, गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमाओं, अविभाजित आंध्र प्रदेश में वाई. एस. राजशेखर रेड्डी, अयोध्या में भगवान राम की मूर्तियों को स्थापित करने के प्रस्तावों के अलावा लखनऊ में लोक भवन में अटल बिहारी वाजपेयी की मूर्ति स्थापित करने का उदाहरण दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मायावती के वकील राकेश खन्ना से कहा था, "मैडम मायावती, हमारा प्रारंभिक विचार ये है कि हाथियों की प्रतिमाओं पर खर्च जनता के पैसे का भुगतान आप अपनी जेब से करें।" पीठ ने बसपा की ओर से पेश सतीश मिश्रा के उस अनुरोध को खारिज कर दिया था कि मामले की सुनवाई मई के लिए टाल दी जाए।
वर्ष 2009 में दायर की गई इस जनहित याचिका में मायावती को सरकारी खजाने की कीमत पर सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिमाएं स्थापित करने से रोकने की मांग की गई थी और इस मामले की सीबीआई जांच की मांग भी की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि जनता के सैकड़ों करोड़ रुपये मुख्यमंत्री की झूठी गरिमा दिेखाने के लिए खर्च किए गए थे।
इस गतिविधि को राज्य की नीति के रूप में किया जा गया जो संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मनमाना और उक्त अनुच्छेद का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक स्थानों पर हाथी यानी बसपा के पार्टी चिन्ह 52.20 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किए गए थे।
राज्य के धन का उपयोग करके ऐसा किया गया। याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक भूमि से मायावती और उनकी पार्टी के प्रतीक की मूर्तियों को हटाने का निर्देश दिया जाए।