हैबियस कॉरपस याचिका के जरिए रिमांड आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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27 March 2019 2:11 PM GMT

  • हैबियस कॉरपस याचिका के जरिए रिमांड आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी अभियुक्त के रिमांड को निर्देशित करने का कार्य एक न्यायिक कार्य है और रिमांड के आदेश को बंदी प्रत्यक्षीकरण यानी हैबियस कॉरपस याचिका के तहत चुनौती देने पर सुनवाई नहीं हो सकती।

    दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ SFIO यानी सीरियस फ्रॉड इंवेस्टीगेशन ऑफिस द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति ए. एम. सपरे और न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की पीठ ने कहा कि कंपनी अधिनियम की धारा 212 की उपधारा (3) के तहत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अनुपालन, अनिवार्य रूप से एक निर्देशिका है।
    दरअसल राहुल मोदी और मुकेश मोदी ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि 20.06.2018 के आदेश के अनुसार जांच पूरी करने की अवधि की समाप्ति हो गई थी और इसके बाद उत्तरदाताओं की गिरफ्तारी सहित आगे की कार्यवाही अवैध रूप से और बिना किसी कानूनी अधिकार के तहत हुई।
    उच्च न्यायालय द्वारा विचारणीय प्रश्नों में से एक यह था कि क्या यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण की कार्यवाही में सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा पारित रिमांड के आदेश की शुद्धता और वैधता का परीक्षण कर सकता है। अपने आदेश में आरोपियों को जमानत देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि वह केवल इस तथ्य के कारण कि संबंधित मजिस्ट्रेट ने रिमांड के आदेश दिए हैं, जारी अवैध हिरासत को सही नहीं ठहरा सकते।
    अपील में शीर्ष अदालत की पीठ ने उल्लेख किया कि वह तारीख जब इस मामले पर उच्च न्यायालय द्वारा विचार किया गया और इसके द्वारा आदेश पारित किया गया था, तब तक न केवल गुरुग्राम के न्यायिक मजिस्ट्रेट के साथ-साथ विशेष न्यायालय ने रिमांड के आदेश पारित करदिये थे, बल्कि 14.12.2018 को केंद्र सरकार द्वारा पारित विस्तार का आदेश भी था।
    पीठ ने कहा: "आदेश या रिमांड की वैधता और शुद्धता को मूल रिट याचिकाकर्ताओं द्वारा उचित कार्यवाही दायर करके चुनौती दी जा सकती थी। हालांकि उन्होंने रिमांड के आदेश को सक्षम अपीलीय या फोरम के समक्ष नहीं उठाया था।
    न्यायिक मजिस्ट्रेट और विशेष अदालत, गुरुग्राम ने इस मामले को मेरिट के साथ निपटा दिया था और आरोपियों की निरंतर हिरासत को उचित ठहराया था। योग्यता पर संबंधित मुद्दों में जाने के बाद आरोपियों को आगे की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। रिमांड के इस आदेश को उच्च न्यायालय के सामने चुनौती नहीं दी गई।
    उच्च न्यायालय के हैबियस कॉरपस याचिका पर सुनवाई करने से असहमति जताते हुए कहा: "यह सच है कि गिरफ्तारी का असर तब हुआ जब ये अवधि समाप्त हो गई थी लेकिन जब तक उच्च न्यायालय ने याचिका पर विचार किया तब तक 14.12.2018 को केंद्रीय सरकार द्वारा पारित विस्तार के आदेश दिए जा चुके थे। इसके अतिरिक्त, न्यायिक मजिस्ट्रेट के साथ-साथ विशेष न्यायालय, गुरुग्राम द्वारा भी आरोपियों को हिरासत में भेजने के लिए न्यायिक आदेश पारित किए गए थे। हम इस न्यायालय द्वारा अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के संबंध में निर्धारित कानून द्वारा पूरी तरह से चलते हैं तो हैबियस कॉरपस के संबंध में उच्च न्यायालय याचिका को दर्ज करने और आदेश पारित करने में न्यायोचित नहीं था।"

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