जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल नियुक्त

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20 March 2019 9:27 AM GMT

  • जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल नियुक्त

    लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की अधिसूचना के 5 साल बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को इस अधिनियम के तहत पहला लोकपाल अध्यक्ष नियुक्त किया है।

    राष्ट्रपति ने मंगलवार को लोकपाल के गठन को मंजूरी दे दी। लोकपाल में अध्यक्ष के अलावा 4 न्यायिक और 4 गैर न्यायिक सदस्य भी नियुक्त किए गए हैं। न्यायिक सदस्यों में जस्टिस दिलीप बी. भोसले, जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी हैं। एसएसबी की पूर्व प्रमुख अर्चना रामसुंदरम और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, महेन्द्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम को समिति का गैर न्यायिक सदस्य बनाया गया है।

    इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोकपाल नियुक्ति प्रक्रिया को समय-सीमा में पूरा करने के केंद्र को निर्देश देने के आदेशों का पालन किया गया है। 7 मार्च को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह 10 दिनों के भीतर चयन समिति की बैठक की तारीख को बताए।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की प्रख्यात हस्ती की क्षमता वाली चयन समिति ने ये नियुक्तियां की हैं। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, जो सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता हैं, वो इस चयन पैनल की बैठकों का लगातार बहिष्कार करते रहे हैं। उन्होंने इस तथ्य का विरोध करते हुए बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया था कि उन्हें सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता की क्षमता में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया बल्कि उन्हें "विशेष आमंत्रित" के रूप में बुलाया गया।

    दरअसल लोकपाल की परिकल्पना एक राष्ट्रीय भ्रष्टाचार-विरोधी एजेंसी के रूप में की गई है, जिसके पास अधिकार हैं कि वो किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप जो कि प्रधान मंत्री या केंद्रीय मंत्री हैं या समूह ए, बी, सी और डी में केंद्र सरकार के कर्मचारी भी हैं, की जांच कर सकता है। इसकी अपनी जांच टीम और अभियोजन पक्ष होंगे और इसके पास सीबीआई द्वारा जांच की निगरानी करने की शक्तियां होंगी। अधिनियम में अपराध का ट्रायल करने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान भी हैं।

    काफी देरी से हुई नियुक्ति

    पीएम मोदी की अध्यक्षता में चयन समिति ने पहली बार मार्च, 2018 में बैठक की जिसका खुलासा दिसंबर 2018 में प्राप्त एक आरटीआई जानकारी में हुआ।

    आरटीआई के जवाब के अनुसार लोकपाल विधेयक पारित होने के बाद फरवरी, 2014 में चयन समिति में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकपाल की दो बैठकें कीं। पीएम मोदी के तहत अगली बैठक 1 मार्च, 2018 को आखिरी बैठक के 4 साल बाद आयोजित की गई।

    लोकपाल की नियुक्ति में देरी की वजह से

    गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज़ ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 24 जुलाई को लोकपाल के लिए सर्च कमेटी के गठन के मुद्दे पर केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे को "पूर्ण असंतोषजनक" बताते हुए खारिज कर दिया था और दोबारा "बेहतर हलफनामा" दाखिल करने को कहा था।

    चयन समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और प्रख्यात न्यायविद मुकुल रोहतगी को शामिल करते हुए पिछले साल 19 जुलाई को सर्च कमेटी के सदस्यों के नामों पर विचार-विमर्श किया था। 27 सितंबर, 2018 को केंद्र ने लोकपाल की नियुक्ति के लिए चयन पैनल को नामों की सिफारिश करने के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय सर्च कमेटी का गठन किया था।

    सर्च कमेटी के अन्य सदस्य भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, प्रसार भारती के चेयरपर्सन ए. सूर्य प्रकाश, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रमुख ए. एस. किरण कुमार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सखा राम सिंह यादव, गुजरात के पूर्व पुलिस प्रमुख शब्बीरहुसैन एस. खंडवावाला, राजस्थान कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ललित के पंवार और पूर्व सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार थे।

    सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस घोष के फैसले

    जस्टिस घोष 27 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने वर्ष 1976 में कलकत्ता में अभ्यास शुरू किया था और उन्हें वर्ष 1997 में कलकत्ता हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वे वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं।

    जस्टिस घोष ने उस पीठ का नेतृत्व किया जिसने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और उनकी सहयोगी शशिकला के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले का फैसला किया। उनके द्वारा सुनाए गए फैसले में ट्रायल कोर्ट की सजा को बहाल कर दिया और शशिकला को कारावास की सजा सुनाई। मृत्यु के बाद जयललिता के खिलाफ यह मामला रद्द कर दिया गया।

    उन्होंने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जिसमें बाबरी मस्जिद विध्वंस मामलों में भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ साजिश के आरोपों को बहाल किया था। वह न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन के साथ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की प्रथाओं को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के विपरीत करार दिया था।

    वह तत्कालीन CJI एच. एल. दत्तू और न्यायमूर्ति एफ. एम. आई. कलीफुल्ला के साथ 3: 2 बहुमत का हिस्सा थे जिसमें राजीव गांधी हत्या मामले में दोषियों की सजा को रद्द करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि राज्य सरकार के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि वो सीबीआई जांच के बाद दोषी ठहराए गए लोगों की सजा को रद्द कर सके।

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