सुप्रीम कोर्ट ने उन दो लोगों को बरी किया जिन्हें छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी [निर्णय पढ़े]

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6 March 2019 4:54 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने उन दो लोगों को बरी किया जिन्हें   छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी [निर्णय पढ़े]

    मंगलवार को दिए एक और महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उन 2 लोगों को बरी कर दिया जिन्हें छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने दिगंबर वैष्णव और गिरधारी वैष्णव को मौत की सजा से बरी कर दिया। उन पर 5 महिलाओं से लूट करने और तत्पश्यात उनकी हत्या करने का आरोप था।

    रिकॉर्ड पर लाये गए सबूतों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि अभियोजन का मामला मुख्य रूप से बच्चे द्वारा बतौर गवाह दिए गए बयान पर निर्भर करता है। अदालत ने कहा कि बच्ची की गवाही से यह स्पष्ट है कि वह इस घटना की चश्मदीद गवाह नहीं थी और उसके साक्ष्य भी विसंगतियों से भरे हैं।

    पीठ ने कहा, "इस न्यायालय ने लगातार यह माना है कि एक बच्चे की गवाही के साक्ष्य का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए क्योंकि बच्चे दूसरे के द्वारा बताए गए तरीके से प्रभावित हो सकते हैं और वो आसानी से सिखाए- पढ़ाए जा सकते हैं। इसलिए बच्चे की गवाही के साक्ष्य को पहले पर्याप्त तरीके से खोजना होगा तभी इस पर भरोसा किया जा सकता है। यह कानून से अधिक व्यावहारिक ज्ञान का नियम है।"

    अदालत ने इस मामले में यह भी देखा कि अपराध की सूचना देने में अस्पष्टीकृत देरी की गई थी। अगर अभियुक्त के अपराध पर संदेह करने के लिए फिंगर प्रिंट रिपोर्ट पर निर्भरता रखी जाती है तो विशेषज्ञ से जांच भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। पीठ ने कहा कि यह ध्यान दिया गया कि जिस व्यक्ति ने फिंगर प्रिंट के नमूने लिए, उसकी अभियोजन द्वारा जांच नहीं की गई। अदालत ने यह भी कहा कि, यहां तक ​​कि एफआईआर में, किसी भी सामान या धन की चोरी या गुम होने की कोई सूचना दर्ज नहीं है।

    इसलिए जब कथित रूप से बरामद किए गए पैसे को मृतक के घर से चोरी होने का हवाला दिया गया तो यह अविश्वसनीय है क्योंकि क्राइम सीन से चोरी या लूट के दावे का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी मौजूद नहीं है।

    'अंतिम बार एक साथ देखे जाने' (last scene theory) के सिद्धान्त पर, पीठ ने कहा कि अंतिम रूप से एक साथ देखे जाने के कारक को एक विकट परिस्थिति के रूप में निर्मित करने के लिए मृत शरीर को देखने और बरामद करने के समय के बीच निकटता होनी चाहिए। यह स्वीकार करते हुए कि अभियुक्त ने अपराध किया है, यह अनुमान लगाना मुश्किल है। पीठ ने उन्हें बरी कर दिया और उनकी रिहाई का आदेश दिया।

    गौरतलब है कि इसी बेंच ने मंगलवार को ही, एक अनूठे मामले में न केवल मौत की सजा के 6 दोषियों को बरी कर दिया है बल्कि 16 वर्ष पहले हुए एक अपराध में आगे जांच का भी आदेश दे दिया है। पीठ ने महाराष्ट्र राज्य को यह आदेश भी दिया था कि बरी हुए सभी दोषियों को क्षति के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान किया जाए।


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