दो साल के बच्चे की देखभाल को लेकर तबादले के खिलाफ सेना की महिला लेफ्टीनेंट कर्नल पहुंची सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

7 Jan 2019 8:38 AM GMT

  • दो साल के बच्चे की देखभाल को लेकर तबादले के खिलाफ सेना की महिला लेफ्टीनेंट कर्नल पहुंची सुप्रीम कोर्ट

    अपने तबादले से नाराज, भारतीय सेना में लेफ्टीनेंट कर्नल रैंक की एक महिला अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए, कामकाजी महिलाओं के बच्चों की सुरक्षा और उनके हितों की रक्षा करने की मांग की है।

    महिला अधिकारी ने राष्ट्रीय बाल नीति, 2013 को भी लागू करने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई कर सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस याचिका के मुताबिक, याचिकाकर्ता लेफ्टिनेंट कर्नल अनु डोगरा इन दिनों जोधपुर में सेना के जज एडवोकेट जनरल विभाग में तैनात हैं। उनके पति भी सेना में अधिकारी हैं और वर्तमान में वो भी जोधपुर में तैनात हैं।

    लेफ्टिनेंट कर्नल अनु डोगरा का दो वर्ष का एक बच्चा है। कुछ दिनों पहले उनका तबादला अन्यत्र कर दिया गया था। वकील ऐश्वर्या भाटी के माध्यम से दाखिल इस याचिका में लेफ्टिनेंट कर्नल अनु ने कहा है कि सेना ने उनका तबादला जोधपुर से ऐसे स्थान पर कर दिया है जहां पर बच्चों को रखने की सुविधाएं तक नहीं है और ना ही दिनभर बच्चों की देखभाल करने के लिए क्रेच की व्यवस्था है।

    याचिका में उन्होंने यह तर्क दिया है कि भारत सरकार के महिला और बाल विकास विभाग की तरफ से वर्ष 2013 में जारी की गई राष्ट्रीय बाल नीति में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने लिए यह आवश्यक है कि बच्चों को उनके माता-पिता से अलग न किया जाए। साथ ही बच्चों के उचित विकास के लिए उन्हें परिवार का माहौल मिलना ही चाहिए।

    नीति में कामकाजी महिलाओं के बच्चों को क्रेच उपलब्ध कराने या उन्हें दिनभर रखने की सुविधाएं विकसित करने का प्रावधान है। उन्होंने इस आधार पर सेना की तरफ से 29 दिसम्बर को जारी किये गए उनके तबादले के आदेश को निरस्त करने की मांग की है।

    याचिका में कहा गया है कि तबादले के इस आदेश में उनकी परिस्थितियों को संज्ञान में नहीं लिया गया है, और उनके दो वर्षीय मासूम बच्चे की देखभाल के पहलू को पूरी तरह से दरकिनार किया गया है।

    उन्होंने कहा है कि इस संबंध में उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों से अपना तबादला रोकने की गुहार लगाई गई थी जो कि ठुकरा दी गई। ऐसे हालात में वो सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाने को विवश हुईं।

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