टेरर फंडिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू- कश्मीर के व्यापारी की जमानत का फैसला पलटा [निर्णय पढ़े]

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3 April 2019 6:33 AM GMT

  • टेरर फंडिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू- कश्मीर के व्यापारी की जमानत का फैसला पलटा [निर्णय पढ़े]

    "उच्च न्यायालय ने सबूतों के गुणों और अवगुणों की जांच के क्षेत्र में प्रवेश कर दिया है"

    सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें टेरर फंडिंग मामले में जम्मू और कश्मीर के प्रभावशाली व्यवसायी जहूर अहमद शाह वटाली को जमानत दे दी गई थी।

    राष्ट्रीय जांच एजेंसी ( NIA) द्वारा दायर अपील पर न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि एनआईए अदालत ने संबंधित सामग्री या साक्ष्य के संकेत के बाद जमानत की अर्जी को सही तरीके से खारिज किया था क्योंकि इसके लिए उचित आधार है कि प्रतिवादी के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।

    वटाली के खिलाफ आरोप
    वटाली के खिलाफ आरोप यह है कि उसने आतंकवादी हाफिज मुहम्मद सईद, आईएसआई और नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग से प्राप्त धन के हस्तांतरण के लिए और दुबई के एक स्रोत से हुर्रियत नेताओं/अलगाववादियों/आतंकवादियों के लिए काम किया था और सुरक्षा बलों व सरकारी प्रतिष्ठानों पर बार-बार हमले करने और स्कूलों को जलाने सहित सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने में उनकी मदद की थी।

    उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 121 और 121 ए और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13,16,17,18,20,38,39 और 40 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप लगाए गए थे।

    उच्च न्यायालय ने की कानून की अनदेखी
    उच्च न्यायालय के आदेश पर पीठ ने टिपण्णी देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने सबूतों के गुणों और अवगुणों की जांच के क्षेत्र में कदम रख दिया है। पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री की समग्रता और रिपोर्ट केस डायरी के साथ प्रस्तुत की जानी चाहिए न कि साक्ष्य या परिस्थिति के अलग-अलग टुकड़ों का विश्लेषण करके।

    मामले में सामग्री के रिकॉर्ड पर ध्यान देते हुए पीठ ने कहा: "हमारी राय में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत बनाई गई रिपोर्ट की समग्रता और साथ में दस्तावेज और सबूतों/सामग्री को अदालत में प्रस्तुत करना शामिल है। संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए संरक्षित गवाहों के बयानों को खारिज कर दिया गया और यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि प्रतिवादी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं। यह नोट किया गया है कि आगे की जांच जारी है।"

    उच्च न्यायालय के आदेश को एक तरफ रखते हुए पीठ ने आगे कहा: "उच्च न्यायालय को सामग्री की समग्रता और रिकॉर्ड पर साक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए था और इसे अस्वीकार्य होने के रूप में खारिज नहीं करना चाहिए था। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से जमानत के लिए प्रार्थना पर विचार करने के चरण में कानूनी स्थिति की अनदेखी की है और इस दौरान सामग्री को तौलना आवश्यक नहीं है बल्कि व्यापक संभावनाओं पर इसके लिए सामग्री के आधार पर राय बनानी होती है।"

    पीठ ने आगे कहा कि, "न्यायालय से अपने विवेक को लागू करने की अपेक्षा की जाती है कि वो ये पता लगाए कि क्या आरोपियों के खिलाफ जो आरोप लगें हैं वो सच हैं या नहीं। वास्तव में, वर्तमान मामले में हमें जमानत रद्द करने की प्रार्थना पर विचार करने के लिए नहीं कहा गया है बल्कि जमानत देने में उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण की शुद्धता की जांच करने का अनुरोध किया गया है जहां अभियुक्तों के खिलाफ सामग्री और साक्ष्य यह दर्शातें हैं कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।"


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