मिलिए रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के मध्यस्थों से

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8 March 2019 5:13 PM GMT

  • मिलिए रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद  के मध्यस्थों से

    इसके साथ ही कोर्ट ने मध्यस्थों का एक पैनल भी गठित किया है। संयोग से पैनल के तीनों सदस्य तमिलनाडु से हैं।

    पैनल के सदस्यों की एक पृष्ठभूमि

    न्यायमूर्ति एफ. एम. इब्राहिम कलीफुल्लाह

    अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्लाह को पैनल का अध्यक्ष नियुक्त किया है। उन्होंने चेन्नई में कानून का अभ्यास शुरू किया। उन्हें वर्ष 2000 में मद्रास उच्च न्यायालय का जज नियुक्त किया गया। बाद में उन्होंने जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका भी निभाई। 2 अप्रैल, 2012 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में जज बनाया गया।

    वो 22 जुलाई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट से बतौर जज सेवानिवृत्त हुए। उनके विदाई समारोह में तत्कालीन CJI टी. एस. ठाकुर ने टिप्पणी की थी कि BCCI मामले को आगे ले जाने के तरीके को सुझाने में न्यायमूर्ति कलीफुल्ला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कहा था कि उन्होंने "बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की।"

    श्री श्री रविशंकर

    श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक हैं। वर्ष 2018 की शुरुआत में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों समूहों के नेताओं के साथ बातचीत करके विवाद के निपटारे का प्रयास किया। उन्होंने सुझाव दिया था कि मुसलमानों को विवादित स्थल पर अपने दावे छोड़ देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह उनके लिए महत्व का स्थान नहीं है।

    "क्योंकि यह भगवान राम की जन्मभूमि है, इसलिए इस स्थान के साथ एक मजबूत भावना जुड़ी हुई है और चूंकि यह मुस्लिमों के लिए महत्वपूर्ण स्थान नहीं है और अगर है भी तो ऐसे स्थान पर जहां संघर्ष है और वहां नमाज़ स्वीकार्य नहीं है। ऐसे में इसे उपहार में दिया जाना चाहिए," उन्होंने एक साक्षात्कार में आईएएनएस से कहा था।

    उन्होंने यह विचार भी व्यक्त किया था कि विवाद के कानूनी हल से हारने वाले पक्ष में नाराज़गी होगी जिससे और कलह पैदा होगी।

    "तो, किसी भी परिस्थिति में समाज में कलह होगी। मैं एक जीत की स्थिति बनाना चाहता हूं, जहां दोनों समुदाय एक साथ आएं और प्रत्येक के लिए सम्मान बहाल किया जाए। जहां प्रत्येक का सम्मान किया जाए," उन्होंने कहा था।

    ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हालांकि श्री श्री रवि शंकर के प्रस्ताव को खुले तौर पर खारिज कर दिया था। बोर्ड के सचिव जफराब जिलानी ने कहा था कि बोर्ड ने पहले ही इस मुद्दे पर निर्णय ले लिया है और सभी हितधारकों को अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है। जिलानी ने कहा था कि बोर्ड ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि एक बार किसी भी जमीन पर मस्जिद बनाने के बाद उसे किसी को भी सौंपा नहीं जा सकता। जिलानी ने कहा, "हम अपने इस्लामिक कानूनों से बंधे हुए हैं और श्री श्री रविशंकर की अपील को खारिज करते हैं।"

    श्रीराम पंचू, वरिष्ठ वकील

    श्रीराम पंचू, चेन्नई के एक वरिष्ठ वकील हैं, जिनकी विश्व स्तरीय मध्यस्थ के तौर पर प्रतिष्ठा है। वह 'द मेडिएशन चेम्बर्स' के संस्थापक हैं, जो मध्यस्थता में सेवाएं प्रदान करता है। वह भारतीय मध्यस्थों के संघ के अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संस्थान (IMI) के बोर्ड में निदेशक हैं। उन्होंने वर्ष 2005 में भारत का पहला अदालत-मध्यस्थता केंद्र स्थापित किया था और मध्यस्थता को भारत की कानूनी प्रणाली का हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

    पैनल को न्यायालय द्वारा यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह अधिक मध्यस्थों की नियुक्ति करे या कानूनी सहायता ले। यह कार्यवाही यूपी के फैजाबाद में आयोजित की जाएगी। मध्यस्थता प्रक्रिया 1 सप्ताह में शुरू की जानी है जिसके लिए संसाधन का इंतजाम उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार करेगी। अदालत ने 4 सप्ताह के भीतर इस मध्यस्थता के संबंध में पहली स्थिति रिपोर्ट की आवश्यकता जताई है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया है कि इन-कैमरा में आयोजित इस मध्यस्थता प्रक्रिया का विवरण गोपनीय रहेगा। इस संबंध में प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई प्रकाशन नहीं होगा।

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