आइये जाने FIR के बारे में
सुरभि करवा
31 March 2019 4:27 PM IST
कोई भी अपराध मात्र एक पीड़ित के खिलाफ अपराध नहीं होता बल्कि वह सामाजिक सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था को एक चुनौती होता है. इसलिए जब भी कोई अपराध होता है तो पीड़ित तो एक निजी व्यक्ति ही होता है फिर भी राज्य / सरकार उस अपराध के विरुद्ध कार्यवाही करती है. अपराधी को उचित सजा दिलाना और न्याय सुनिश्चित करना पीड़ित का नहीं बल्कि राज्य का कर्तव्य एवं अधिकार माना जाता है,
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यह प्रक्रिया FIR दायर करने से शुरू होती है. आज के लेख में हम FIR और उससे जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करेंगे.
FIR क्या होती है?
FIR या प्रथम दृष्टया रिपोर्ट जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, अपराध के सम्बन्ध में पुलिस को दी गयी प्रथम सूचना होती है. हर पुलिस थाने में एक रजिस्टर जिसे FIR बुक कहा जाता है, रखी होती है. FIR दायर करने का तात्पर्य है अपराध की सूचना उस बुक में लिखवाना/ रिकॉर्ड करवाना. FIR का उद्देश्य होता है कि अपराध की समुचित पड़ताल और कानूनी कार्यवाही सम्बंधित मशीनरी को प्रारम्भ किया जा सके.
कौन FIR दायर करवा सकता है?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार न केवल पीड़ित बल्कि कोई भी व्यक्ति जिसे किसी अपराध के घटित होने की जानकारी हो वह FIR दर्ज़ करवा सकता है.
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 के तहत कुछ मामलों में हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह निम्नलिखित अपराध या उसकी संभावना के सन्दर्भ में पुलिस को सूचित करें-
१. राज्य के विरुद्ध अपराध जैसे- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना, उसकी तैयारी करना.
२. लोक शान्ति के विरुद्ध अपराध जैसे- unlawful assembly , riot
३. food aduleration , सार्वजानिक जल स्त्रोत, हवा आदि को हानि पहुँचाने से सम्बंधित मामले.
४. हत्या, किडनेपिंग, लूट, डकैती के मामले.
५. सार्वजानिक रोड, जलाशय, लैंड मार्क, सार्वजानिक सम्पति को पहुँचाने से सम्बंधित मामले.
६. करेंसी नोट, बैंक नोट की जालसाज़ी से जुड़े मामले.
क्या FIR पुलिस का अनिवार्य कर्तव्य है?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता अनुसार अपराधों को दो श्रेणी में बाँटा गया है- संज्ञेय एवं गैर संज्ञेय अपराध. संज्ञेय अपराध मूलतः गंभीर अपराध होते है जैसे हत्या, बलात्कार आदि. संज्ञेय अपराध के आरोपित को पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है. इस तरह के मामलों की सूचना मिलने पर पुलिस तुरंत FIR दर्ज़ करने के लिए बाध्य है. अगर दी गयी सूचना से ये स्पष्ट है कि सज्ञेय अपराध घटित हुआ है तो पुलिस के लिए यह अनिवार्य है कि वह FIR बिना किसी प्रारम्भिक जाँच के तुरंत रजिस्टर करें.
हालाँकि कुछ संज्ञेय अपराधों में भी पुलिस तुरंत FIR न रिकॉर्ड कर प्राम्भिक जांच कर सकती है, ये मामलें इस प्रकार से है-
१. वैवाहिक और घरेलू मामले
२. व्यावसायिक मामले
३. भ्रष्टाचार सम्बंधित मामले
४. डॉक्टर या हॉस्पिटल द्वारा लापरवाही के मामले
५. ऐसा कोई मामला जहाँ मामले की सूचना देने/ रिपोर्ट करने में बिना किसी संतोषजनक कारण असामान्य देरी हुई हो.
दूसरी ओर, गैर संज्ञेय मामले काम गंभीर मामले होते है, इसलिए गैर संज्ञेय मामलों में पुलिस सीधे फिर नहीं दर्ज़ करती. आप मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा १५५(२) के तहत प्रार्थना पत्र पेश कर सकते है.
कहाँ दायर करें FIR?
अधिकांशतः FIR उस थाने में दायर की जाती है जिस थाने के अधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ हो. पर पुलिस आपकी सूचना को रिकॉर्ड करने से इस आधार पर मना नहीं कर सकती कि अपराध का स्थान उनके कार्यक्षेत्र से बाहर है. ऐसी स्थिति में पुलिस 'जीरो FIR' रिकॉर्ड करती है और सम्बंधित थाने को आपकी FIR भेज देती है.
पुलिस अगर FIR करने में आनाकानी करे तो क्या करे?
अगर पुलिस संज्ञेय अपराध के मामले में भी आपकी FIR न रजिस्टर करें तो आप निम्लिखित विकल्प अपना सकते हैं-
- आप उच्च पुलिस अधिकारीयों SP, DIG आदि को पुलिस द्वारा FIR न लिखने की सूचना दे सकते है. यह अधिकारी सम्बंधित पुलिस अधिकारी को FIR दायर करने का निर्देशन दे सकता है. आप यह कार्य SP को डाक द्वारा पत्र भेजकर कर सकते है.
- आप संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १५६(३) तहत प्रार्थना पत्र दायर कर सकते है. इस प्रार्थना पत्र पर मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दायर करने और मामले की तहकीकात का आदेश दे सकता है.
- तीसरा, आप हाई कोर्ट के समक्ष संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत यह प्रार्थना पेश कर सकते है कि पुलिस आपकी FIR दायर करे.
FIR दायर करवाते समय किन-किन बातों का रखे ख्याल?-
- हालांकि पुलिस का कर्तव्य है की मौखिक दी गयी सूचना को भी रजिस्टर करे फिर भी वास्तविक व्यवहार में ये ज्यादा उपयुक्त होगा कि आप थानाधिकारी को सम्बोधित करते हुए लिखित में अपनी शिकायत पेश करे जिसके आधार पर पुलिस FIR दायर करेगी.
- FIR रिकॉर्ड होने के बाद आपको पढ़ कर सुनाई जाये, यह आपका हक़ है. यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि FIR लिखने में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की गयी है जैसे- आपके द्वारा दी गयी सूचना में किसी तरह का फेरबदल करना या सूचना का कोई महत्वपूर्ण बिंदु छोड़ देना इत्यादि.
- FIR रिकॉर्डिंग पर आपका हस्ताक्षर या अंगूठे का चिन्ह लेना अनिवार्य है.
- बिना कोई शुल्क दिए FIR की कॉपी पाना आपका अधिकार है. उसकी माँग अवश्य करें. FIR की कॉपी में दिए गए FIR नंबर या DD नंबर के आधार पर आप अपनी FIR का ऑनलाइन को भी ट्रैक कर सकते है. इसलिए कॉपी और नंबर को संभाल कर रखे.
- FIR दायर करवाने में देरी ना करें. हालाँकि अपराध विधि इस सिद्धांत कार्य करती है कि चूँकि अपराध सिर्फ पीड़ित के खिलाफ नहीं समाज के खिलाफ अपराध है इसलिए सिविल मामलों जैसे समय की पाबंदियां आपराधिक मामलों पर नहीं लागू होती, इसलिए सामान्यत: FIR दायर करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है. फिर भी FIR दायर करने में अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए. FIR दायर करने में देरी होने पर भी अपराधी के खिलाफ तहकीकात और कानूनी कार्यवाही की जा सकती है फिर भी FIR दायर करने में हुई देरी अपराधी के विरुद्ध केस को कमजोर बनाती है. कोर्ट में FIR दायर करने में हुई देरी का स्पष्टीकरण देना अनिवार्य होता है.
- FIR आपराधिक घटना का विस्तृत ब्यौरा या 'इनसाइक्लोपीडिया' नहीं होती. FIR में मुख्यत: घटना की प्रमुख-प्रमुख बिंदुओं को ही संक्षिप्त रूप में रजिस्टर किया जाता है. ट्रायल के दौरान FIR मुख्य साक्ष्य भी नहीं होती. पर फिर भी FIR लिखवाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपराध सम्बंधित मुख्य-मुख्य बातें भलीभांति रूप में लिख ली जाये क्योंकि FIR का प्रयोग कुछ उद्देध्यों के लिए ट्रायल के दौरान किया जा सकता है जैसे- बयानों में किसी विरोदाभास के सन्दर्भ में, किसी बयान की सम्पुष्टि के लिए आदि. इसलिए आवश्यक है कि आप अपराध की सूचना पूर्ण सच्चाई, बिना बढ़ाये- चढ़ाये, बिना कुछ छुपाए दे.
महिलाओं के लिए FIR दायर करने के लिए खास सुविधाएँ-
अगर अपराध महिलाओं पर अत्याचार जैसे बलात्कार, छेड़छाड़ आदि से सम्बंधित है तो FIR महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही रजिस्टर की जाएगी ताकि पीड़ित महिला बिना किसी संकोच या भय के अपनी बात कह सके. महिला अपराधों के निम्नलिखित मामलों में महिला पुलिस अधिकारी ही FIR रजिस्टर करेंगी-
१. तेजाब फेंक कर महिलाओं को पहुंचाने से सम्बंधित मामले।
२. यौन उत्पीड़न।
३. बलात्कार सम्बन्धी मामले.
४. छेड़छाड़, शील भंग, पीछा करना से सम्बंधित मामले.
उपर्युक्त मामलों में अगर पुलिस अधिकारी FIR नहीं करें तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 166A तहत दंड प्राप्ति का हक़दार है.
उपर्युक्त मामलों के सन्दर्भ में अगर पीड़िता शारीरिक या मानसिक रूप से नि:शक्त है तो FIR पीड़िता के घर या उसकी मर्ज़ी के किसी अन्य स्थान पर दायर की जाएगी. ऐसे मामले में इंटरप्रेटर आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करना अनिवार्य है.
हमारे देश में बड़ी संख्या में मामलों की रिपोर्टिंग नहीं की जाती जिससे अपराधियों को बढ़ावा मिलता है और पीड़ितों को उचित न्याय भी नहीं मिल पता. ऐसे में जरूरी है कि हम FIR पहलुओं को समझे और अपराध की सूचना पुलिस को दे. हाल ही में भारत सरकार 'SMART POLICE INITIATIVE' लायी है जिसके तहत लगभग ७ अपराधों सम्बंधित सूचना ऑनलाइन पोर्टल (https://digitalpolice.gov.in/ncr/State_Selection.aspx )द्वारा दी जा सकती है. पोर्टल पर लॉग-इन कर बिना पुलिस स्टेशन जाए ही रिपोर्ट दायर की जा सकती है. इस तरह के ऑनलाइन पोर्टल अलग- अलग राज्यों ने भी शुरू किये है. आप उनके बारे में भी पता कर सकते है.
(लेखक सुरभि करवा राष्ट्रिय विधि विश्विद्यालय, दिल्ली की छात्रा है. लेख में मदद करने के लिए वो अपने सहकर्मी शिखर टंडन को धन्यवाद ज्ञापित करती है.)