दंड संहिता में अदालतों की व्यवस्था: एक नजर
SPARSH UPADHYAY
20 Feb 2019 3:56 PM IST
आपराधिक कानून की आवश्यक वस्तु अपराधियों और कानून तोड़ने वालों के खिलाफ समाज की रक्षा करना है। इस उद्देश्य के लिए कानून संभावित कानून तोड़ने वालों को दंड के खतरों के साथ-साथ वास्तविक अपराधियों को उनके अपराधों के लिए निर्धारित दंड भुगतने का प्रयास करता है। इसलिए, आपराधिक कानून, व्यापक अर्थ में, आपराधिक कानून और प्रक्रियात्मक (या विशेषण) आपराधिक कानून दोनों के होते हैं। पर्याप्त आपराधिक कानून अपराधों को परिभाषित करता है और उसी के लिए दंड निर्धारित करता है, जबकि प्रक्रियात्मक कानून मूल कानून का प्रशासन करता है।
इस लेख में हम मुख्य रूप से आपराधिक कानूनों के ऐप्लिकेशन और प्रक्रिया से जुडी कोर्ट्स की बात करेंगे। हम अगर दंड प्रक्रिया संहिता की बात करें तो हमे pata चलता है कि संहिता में कानून से जुडी मुख्यतः 5 एजेंसी की बात की गयी है। ये 5 एजेंसी निम्नलिखित हैं:-
1 - पुलिस
2 - अभियोजन
3 - बचाव पक्ष
4 - मजिस्ट्रेट एवं उच्च न्यायालय की अदालतें
5 - जेल प्रशासन एवं पर्सनेल
जैसा कि ऊपर कहा गया हम इस लेख में केवल अदालतों के बारे में बातें करेंगे। तो आइये देखते हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता में अदालतों की किस प्रकार से व्यवस्था की गयी है। हम यह जानते हैं कि हमे अपने आसपास जरूर अदालत परिसर दिखता है, जहाँ न्यायाधीश बैठ कर निर्णय सुनाते हैं। इस परिसर में सिविल के साथ-साथ क्रिमिनल वाद सुने और निपटाए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इनकी स्थापना का आधार क्या है? आइये समझते हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 7 कहती है
हर राज्य एक सेशन डिवीज़न होगा या सेशन डिविज़न्स से मिलकर बनेगा; और इस सेशन डिवीज़न के लिए प्रत्येक सेशन जिला या जिलों से मिलकर बनेगा:
बशर्ते कि प्रत्येक महानगरीय क्षेत्र उक्त उद्देश्यों के लिए, एक अलग सेशन डिवीज़न और जिला होगा।
बशर्ते कि प्रत्येक महानगरीय क्षेत्र उक्त उद्देश्यों के लिए, एक अलग सेशन डिवीज़न और जिला होगा।
(2) राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद, ऐसे डिवीज़न और जिलों की सीमा या संख्या में परिवर्तन कर सकती है।
(3) राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद, किसी भी जिले को सब-डिवीज़न में विभाजित कर सकती है और ऐसे सेशन-डिवीज़न की सीमा या संख्या में परिवर्तन कर सकती है।
(4) इस संहिता के प्रारंभ में एक राज्य में विद्यमान सत्र प्रभाग, जिले और उप-विभाग इस खंड के तहत गठित किए गए माने जाएंगे।
यह तो हुई बात क्षेत्रीय डिवीज़न की, अब बात करते हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता में अदालतों की व्यवस्था पर। हम आते हैं सेक्शन 6 पर। यह कहता है कि:-
इस संहिता के अलावा किसी भी कानून के तहत गठित उच्च न्यायालयों और न्यायालयों के अलावा, प्रत्येक राज्य में, आपराधिक न्यायालयों के निम्नलिखित वर्ग होंगे, अर्थात्: -
(i) सत्र के न्यायालय (कोर्ट ऑफ़ सेशन);
(ii) प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट और, किसी भी महानगरीय क्षेत्र में, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट;
(iii) द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट; तथा
(iv) कार्यकारी मजिस्ट्रेट (एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट)।
यहाँ इस बात पर ध्यान रखने की जरुरत है कि इस सेक्शन में भले ही सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं की गयी है पर उसकी व्यवस्था हमारे संविधान में दी गयी है। इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता में भी तमाम प्रावधानों में सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्रों की बात की गयी है। तो यह समझा जाना चाहिए कि अदालतों की इस व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट का भी एक अहम् स्थान है। इसके अलावा संहिता और संविधान में उच्च न्यायालय से जुड़े प्रावधनों को विस्तार से समझाया गया है।
अब यहाँ एक देखने वाली बात यह है कि सेक्शन 6 में कार्यकारी मजिस्ट्रेट को अन्य अदालतों की केटेगरी से अलग रखा गया है, ऐसा संविधान के आर्टिकल 50 को ध्यान में रखते हुए किया गया है जिसमे कहा गया है:-
सत्र न्यायालय (कोर्ट ऑफ़ सेशन)
हर सेशन डिवीज़न के लिए एक सेशन कोर्ट या सत्र न्यायलय स्थापित होता है। सेक्शन 9 (1), (2) के मुताबिक यह नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। जरुरत पड़ने पर उच्च न्यायालय एडिशनल सेशन जज एवं असिस्टेंट एडिशनल जज की नियुक्ति कर सकता है। अब यह सभी न्यायाधीश कोर्ट सेशन के रूप में निर्णय सुनायेंगे। यहाँ यह ध्यान रखने वाली बात है कि एडिशनल सेशन जज एवं असिस्टेंट सेशन जज, कोर्ट ऑफ़ सेशन के रूप में कार्य करते हैं लेकिन वे स्वयं कोर्ट ऑफ़ सेशन के स्वतन्त्र इकाई नहीं हैं। वहीँ असिस्टेंट सेशन जज, उस सेशन जज के अधीन होते हैं जिनकी अधिकारिता में वे कार्य करते हैं।
जुडिशल मजिस्ट्रेट के न्यायालय
हर जिले में (जो मेट्रोपोलिटन क्षेत्र नहीं है) कितने भी प्रथम श्रेणी अथवा द्वितीय श्रेणी के जुडिशल मजिस्ट्रेट हो सकते हैं, यह निर्णय राज्य सरकार, उच्च न्यायलय के साथ परामर्श में लेगी (सेक्शन 11)। इन दोनों के बीच तालमेल इसलिए जरुरी है क्यूंकि, जहाँ क्षेत्र और वित्तीय उपलब्धता सरकार बेहतर समझती है, वहीँ हर क्षेत्र में अदालत की पहुंच हो यह फैसला उच्च न्यायालय बेहतर कर सकता है। वहीँ इस सभी न्यायालयों में पद सँभालने वालों को यह शक्ति उच्च न्यायलय द्वारा दी जाती है, यानी उनकी नियुक्ति राज्य का उच्च न्यायालय करेगा - सेक्शन 11(2)।
इस संहिता के अलावा किसी भी कानून के तहत गठित उच्च न्यायालयों और न्यायालयों के अलावा, प्रत्येक राज्य में, आपराधिक न्यायालयों के निम्नलिखित वर्ग होंगे, अर्थात्: -
(i) सत्र के न्यायालय (कोर्ट ऑफ़ सेशन);
(ii) प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट और, किसी भी महानगरीय क्षेत्र में, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट;
(iii) द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट; तथा
(iv) कार्यकारी मजिस्ट्रेट (एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट)।
यहाँ इस बात पर ध्यान रखने की जरुरत है कि इस सेक्शन में भले ही सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं की गयी है पर उसकी व्यवस्था हमारे संविधान में दी गयी है। इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता में भी तमाम प्रावधानों में सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्रों की बात की गयी है। तो यह समझा जाना चाहिए कि अदालतों की इस व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट का भी एक अहम् स्थान है। इसके अलावा संहिता और संविधान में उच्च न्यायालय से जुड़े प्रावधनों को विस्तार से समझाया गया है।
अब यहाँ एक देखने वाली बात यह है कि सेक्शन 6 में कार्यकारी मजिस्ट्रेट को अन्य अदालतों की केटेगरी से अलग रखा गया है, ऐसा संविधान के आर्टिकल 50 को ध्यान में रखते हुए किया गया है जिसमे कहा गया है:-
अनुच्छेद 50: कार्यपालिका से न्यायपालिका का अलग होना
राज्य न्यायपालिका को राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में कार्यपालिका से अलग करने के लिए कदम उठाएगा।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि जहाँ अन्य सभी केटेगरी के न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीन होते हैं, वहीँ कार्यकारी मजिस्ट्रेट राज्य सरकार के अधीन होते हैं। अब आइये विभिन्न प्रकार के न्यायाधीशों की बात करते हैं।राज्य न्यायपालिका को राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में कार्यपालिका से अलग करने के लिए कदम उठाएगा।
सत्र न्यायालय (कोर्ट ऑफ़ सेशन)
हर सेशन डिवीज़न के लिए एक सेशन कोर्ट या सत्र न्यायलय स्थापित होता है। सेक्शन 9 (1), (2) के मुताबिक यह नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। जरुरत पड़ने पर उच्च न्यायालय एडिशनल सेशन जज एवं असिस्टेंट एडिशनल जज की नियुक्ति कर सकता है। अब यह सभी न्यायाधीश कोर्ट सेशन के रूप में निर्णय सुनायेंगे। यहाँ यह ध्यान रखने वाली बात है कि एडिशनल सेशन जज एवं असिस्टेंट सेशन जज, कोर्ट ऑफ़ सेशन के रूप में कार्य करते हैं लेकिन वे स्वयं कोर्ट ऑफ़ सेशन के स्वतन्त्र इकाई नहीं हैं। वहीँ असिस्टेंट सेशन जज, उस सेशन जज के अधीन होते हैं जिनकी अधिकारिता में वे कार्य करते हैं।
जुडिशल मजिस्ट्रेट के न्यायालय
हर जिले में (जो मेट्रोपोलिटन क्षेत्र नहीं है) कितने भी प्रथम श्रेणी अथवा द्वितीय श्रेणी के जुडिशल मजिस्ट्रेट हो सकते हैं, यह निर्णय राज्य सरकार, उच्च न्यायलय के साथ परामर्श में लेगी (सेक्शन 11)। इन दोनों के बीच तालमेल इसलिए जरुरी है क्यूंकि, जहाँ क्षेत्र और वित्तीय उपलब्धता सरकार बेहतर समझती है, वहीँ हर क्षेत्र में अदालत की पहुंच हो यह फैसला उच्च न्यायालय बेहतर कर सकता है। वहीँ इस सभी न्यायालयों में पद सँभालने वालों को यह शक्ति उच्च न्यायलय द्वारा दी जाती है, यानी उनकी नियुक्ति राज्य का उच्च न्यायालय करेगा - सेक्शन 11(2)।
यह नहीं सेक्शन 11 (3) में यह प्रावधान है कि उच्च न्यायालय किसी सिविल जज में यह शक्ति निहित कर सकता है कि वो प्रथम श्रेणी अथवा द्वितीय श्रेणी के जज के तौर पर कार्य करे।
चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट - अब हर जिले में उच्च न्यायालय एक सीजेएम की नियुक्ति करता है जो की प्रथम श्रेणी का जुडिशियल मजिस्ट्रेट होगा [सेक्शन 12 (1)]। जुडिशल मजिस्ट्रेट का पद इसलिए आवश्यक है क्यूंकि यह जिले में मजिस्ट्रेसी का प्रमुख होता है। यह दूसरे जुडिशल मजिस्ट्रेट के ऊपर अधिकारिता रखता है।
एडिशनल चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट - उच्च न्यायालय प्रथम श्रेणी के किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है, और इस तरह के मजिस्ट्रेट के पास इस कोड के तहत या किसी भी कानून के तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सभी शक्तियां होंगी।
एडिशनल चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट - उच्च न्यायालय प्रथम श्रेणी के किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है, और इस तरह के मजिस्ट्रेट के पास इस कोड के तहत या किसी भी कानून के तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सभी शक्तियां होंगी।
सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट - उच्च न्यायालय किसी भी उप-डिवीजन में प्रथम श्रेणी के किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को सब-डिविजनल न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नामित कर सकता है और इस अनुभाग में निर्दिष्ट जिम्मेदारियों से मुक्त कर सकता है जैसा कि अवसर की आवश्यकता होती है।
जुडिशल मजिस्ट्रेट की स्थिति
उच्च न्यायालय के नियंत्रण के अधीन, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकते हैं जिनके भीतर धारा 11 (जुडिशल मजिस्ट्रेट) के तहत या धारा 13 (स्पेशल जुडिशल मजिस्ट्रेट) के तहत नियुक्त मजिस्ट्रेट उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं जो उन्हें इस कोड के अंतर्गत मिली है [सेक्शन 14 (1)]।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, समय-समय पर, ऐसे नियम बना सकते हैं या विशेष आदेश दे सकते हैं, जो इस संहिता के अनुरूप हों और अपने अधीन न्यायिक मजिस्ट्रेट के बीच कार्य के वितरण हेतु हों [सेक्शन 15 (2)]।
प्रत्येक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायाधीश के अधीनस्थ होते हैं; और प्रत्येक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायाधीश के सामान्य नियंत्रण के अधीन, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होते हैं [सेक्शन 15 (1)]।
इसके अलावा मेट्रोपोलिटन क्षेत्र के लिए मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ईवम कुछ विशिष्ठ जगहों एवं कार्यों के लिए स्पेशल मजिस्ट्रेट की नियुक्ति का प्रावधान भी यह कोड करता है.
एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (कार्यकारी मजिस्ट्रेट)
यह ध्यान रखने वाली बात है कि एग्जीक्यूटिव को दी जाने वाले मजिस्टेरियल शक्ति, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट में निहित होती है।
प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगरीय क्षेत्र में, राज्य सरकार कई व्यक्तियों को कार्यकारी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है, और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जायेगा। [सेक्शन 20 (1)]
राज्य सरकार, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट होने के लिए किसी भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट को नियुक्त कर सकती है, और इस तरह के मजिस्ट्रेट के पास इस कोड के तहत या किसी भी अन्य कानून के तहत जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियों होंगी जैसा राज्य सरकार निर्देश दे [सेक्शन 20 (2)]।
राज्य सरकार, एक सब-डिवीज़न के प्रभारी के लिए एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है और अवसर की आवश्यकता के अनुसार उसे उस प्रभार से मुक्त कर सकती है; और मजिस्ट्रेट को उस प्रभार के रूप में सब-डिविशनल मजिस्ट्रेट कहा जाएगा [ सेक्शन 20 (4)]।
इसके अलावा कुछ विशिष्ट कार्य अथवा क्षेत्र के लिए एक स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट भी नियुक्त किया जा सकता है, राज्य सरकार द्वारा (सेक्शन 21) ।
राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन, जिला मजिस्ट्रेट समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकते हैं जिनके भीतर कार्यकारी मजिस्ट्रेट उन सभी या किसी भी शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, जो उन्हें इस कोड के अंतर्गत मिली है (सेक्शन 22)।
अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के अलावा अन्य सभी कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे, और प्रत्येक कार्यकारी मजिस्ट्रेट (सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के अलावा) सब-डिवीजन में शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे हालांकि, जिला वे मजिस्ट्रेट के सामान्य नियंत्रण के अधीन हमेशे रहेंगे (सेक्शन 23)।
किसको है कितनी सजा देने की अधिकार
इसके लिए हमे मुख्य रूप से हमे सेक्शन 28 और 29 को समझना होगा।
(i) एक उच्च न्यायालय कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को पारित कर सकता है [सेक्शन 28 (1)]।
(ii) एक सत्र न्यायाधीश या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को पारित कर सकते हैं; लेकिन ऐसे किसी भी न्यायाधीश द्वारा पारित मौत की सजा उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि के अधीन होगी [सेक्शन 28 (2)]।
(iii) एक सहायक सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को दे सकता है, लेकिन मौत की सजा या आजीवन कारावास या 10 साल से अधिक की अवधि के कारावास की सजा वो नहीं दे सकता [सेक्शन 28 (3)]।
(iv) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत, मौत की सजा या आजीवन कारावास या 7 साल से अधिक के कारावास की सजा को छोड़कर किसी भी सजा को सुना सकती है [सेक्शन 29 (1)]।
(v) प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की अदालत 3 साल तक की अवधि के कारावास की सजा एवं 10 हजार रुपये तक के जुर्माने या दोनों तक दे सकती है [सेक्शन 29 (2)]।
(vi) द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट की अदालत 1 साल तक की अवधि के कारावास की सजा एवं 05 हजार रुपये तक के जुर्माने या दोनों तक दे सकती है [सेक्शन 29 (3)]।
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