कलकत्ता हाईकोर्ट ने 23 साल पहले चलती ट्रेन से गिरकर मरने वाले व्यक्ति के परिजनों को 8 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया
Amir Ahmad
5 Dec 2024 2:59 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने रेलवे ट्रिब्यूनल के आदेश को पलट दिया और 2001 में चलती ट्रेन से गिरकर मरने वाले व्यक्ति के परिजनों को ब्याज सहित 8 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
जस्टिस शम्पा (दत्त) पॉल ने कहा,
प्रस्तुत मूल टिकट और टिकट की संख्या दावे के आवेदन में दी गई संख्या के समान होने से प्रथम दृष्टया यह साबित होता है कि इस मामले में पीड़ित भारतीय रेलवे का वास्तविक यात्री था। एमओ की राय से संबंधित डी.पी. मेमो और उसकी प्रविष्टियां, ओ/सी बंत्रा की पी.एम. रिपोर्ट में दर्ज चोटें और यू.डी. मामले की FIR सभी दर्शाती हैं कि पीड़ित की मृत्यु यात्रियों को ले जा रही ट्रेन से दुर्घटनावश गिरने के कारण हुई थी।
टिकट के बारे में ट्रिब्यूनल के निर्णय के पृष्ठ 5 पर दिए गए निष्कर्ष निर्णय के पैरा 1 और 2 में दिए गए निष्कर्षों के बिल्कुल विपरीत हैं, जिसमें प्रस्तुत टिकट को माननीय सदस्य (तकनीकी) द्वारा स्वीकार किया गया। इस प्रकार रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 124(ए) के तहत दावा आवेदन नंबर /699/2002 में दिनांक 06.10.2010 को रेलवे दावा ट्रिब्यूनल कलकत्ता पीठ के माननीय सदस्य तकनीकी द्वारा पारित अपील के तहत आदेश कानून के अनुसार नहीं होने के कारण रद्द किया जाता है
वर्तमान अपील मृतक के परिजनों द्वारा रेलवे दावा ट्रिब्यूनल कलकत्ता पीठ के सदस्य तकनीकी द्वारा दिनांक 06.10.2010 को पारित आदेश/अधिनिर्णय से व्यथित होकर लाई गई, जिसमें दावा आवेदन खारिज कर दिया गया। अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया कि ट्रिब्यूनल ने रिकॉर्ड पर सामग्री पर विचार किए बिना और उसके समक्ष लाए गए साक्ष्य का उचित मूल्यांकन किए बिना अपील के तहत आदेश पारित किया।
मुआवजे के दावे में कहा गया कि मृतक की मौत चलती ट्रेन से गिरने, ट्रेन में अत्यधिक भीड़ और झटके लगने के कारण हुई थी। उसके पास यात्रा के लिए वैध द्वितीय श्रेणी का टिकट था।
न्यायालय ने पाया कि ट्रिब्यूनल ने इस आधार पर दावा खारिज कर दिया था कि घटनास्थल का सही तरीके से उल्लेख नहीं किया गया, कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था और दुर्घटना के बाद पीड़ित का टिकट उसके सामान से बरामद नहीं हुआ।
न्यायालय ने पहले खंडपीठ द्वारा तैयार किए गए मुद्दों पर गौर किया। इस बात पर विचार किया कि क्या पीड़ित वैध यात्री था, क्या उसकी मौत दुर्घटनावश चलती ट्रेन से गिरने के कारण हुई और क्या दावेदार उसके रिश्तेदार थे जो मुआवजे की मांग कर सकते थे।
सभी सवालों के सकारात्मक जवाब देने पर न्यायालय ने न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया और मुआवजे के भुगतान का निर्देश दिया।
टाइटल: साधन दलुई और अन्य बनाम भारत संघ