बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण के दोषी व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी

Amir Ahmad

13 Sep 2024 9:06 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण के दोषी व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (11 सितंबर) को 40 वर्षीय व्यक्ति की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी, जिसे कम से कम पांच नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण करने का दोषी ठहराया गया था।

    जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने ठाणे की विशेष अदालत के 29 मार्च, 2014 का फैसला बरकरार रखा, जिसमें रमेश गोपनूर को पांच नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार करने का दोषी ठहराया गया था। उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    पीठ ने आदेश में कहा,

    "साक्ष्यों पर विचार करने पर यह स्पष्ट है कि सभी पांच पीड़ित बचे लोगों पर अपीलकर्ता द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया। न केवल बचे लोगों के साक्ष्य विश्वास पैदा करते हैं, बल्कि मेडिकल साक्ष्य और यौन उत्पीड़न की घटना के गवाह पीडब्लू 6 के साक्ष्य से भी इसकी पुष्टि होती है। सभी बचे हुए लोग नाबालिग थे, जिनकी आयु 8 से 13 वर्ष के बीच थी। POCSO Act की धारा 29 के तहत एक अनुमान है। अपीलकर्ता द्वारा उक्त अनुमान का खंडन नहीं किया गया।"

    इसलिए न्यायाधीशों ने अपीलकर्ता गोपनूर पर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई सजा और सजा को बरकरार रखना उचित समझा। तदनुसार, उनकी अपील खारिज की।

    पृष्ठभूमि अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार अपीलकर्ता को पीड़ितों में से एक का यौन शोषण करते समय एक पड़ोसी ने देखा था, जिसने उक्त पीड़िता की मां को इसकी जानकारी दी।

    जब अन्य पड़ोसियों को घटना के बारे में पता चला तो एक के बाद एक शेष चारों पीड़ितों ने अपने माता-पिता को अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे अपीलकर्ता, जिसे सभी पीड़ित मामा कहकर पुकारते थे, उन्हें बर्तन साफ करने या बीड़ी या माचिस आदि खरीदने के बहाने घर में बुलाकर उनके साथ दुर्व्यवहार करता था।

    अभियोजन पक्ष ने बताया कि अपीलकर्ता अपनी पत्नी और बच्चों से अलग घर में रहता था, इसलिए उसने पड़ोसियों की नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण किया।

    अपने बचाव में अपीलकर्ता ने यह तर्क देने का प्रयास किया कि उसे मामले में झूठा फंसाया जा रहा है, क्योंकि उसके और पीड़ितों में से एक के परिवार के बीच भूमि विवाद लंबित है।

    हालांकि पीठ ने कहा कि प्रत्येक पीड़ित की गवाही एक-दूसरे से मेल खाती है और विश्वास जगाती है।

    इसलिए उसने उसकी अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल- रमेश गोपनूर बनाम महाराष्ट्र राज्य

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