बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की 'लड़की बहिन' और 'युवा कार्य' योजनाओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

Amir Ahmad

5 Aug 2024 9:41 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की लड़की बहिन और युवा कार्य योजनाओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

    Bombay High Court 

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की 'लड़की बहिन योजना' और 'युवा कार्य' योजनाओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) खारिज की।

    लड़की बहिन योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि की महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह की वित्तीय सहायता देना है। जबकि युवा कार्य योजना राज्य के तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में नामांकित 18 से 35 वर्ष के युवाओं को 6000 रुपये से लेकर 10000 रुपये प्रति माह तक का वजीफा प्रदान करेगी।

    चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की,

    "आप जो कह रहे हैं उससे हम प्रभावित नहीं हैं। यह सड़कों के लिए भाषण है न कि अदालतों के लिए।”

    याचिकाकर्ता ने अक्टूबर 2024 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इन योजनाओं के पीछे राजनीतिक मकसद होने का आरोप लगाया। हालांकि कोर्ट ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता कानून की सीमाओं से परे जाकर बहस नहीं कर सकता। इसने टिप्पणी की कि सरकार का हर फैसला राजनीतिक होता है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इन योजनाओं के जरिए करदाताओं का पैसा बर्बाद किया जा रहा है और उनके करों का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार के वित्त विभाग ने भी योजना के लिए आवंटित की जा रही राशि को लेकर चिंता जताई है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि योजनाओं के लिए राशि बजटीय/विधायी प्रक्रिया के जरिए निर्धारित की गई। इसने कहा कि टैक्स सरकार द्वारा धन की अनिवार्य निकासी है। करों का भुगतान करने से किसी व्यक्ति को यह निर्देश देने का अधिकार नहीं है कि उन निधियों का उपयोग कैसे किया जाए, क्योंकि कर का आवंटन सरकार के विवेक पर है। कोर्ट ने कहा कि 'क्विड प्रो क्वो' केवल तभी उपलब्ध होता है, जब किसी ने 'शुल्क' का भुगतान किया हो न कि करों का।

    न्यायालय ने कहा कि वह केवल इसलिए हस्तक्षेप नहीं कर सकता, क्योंकि कोई योजना कुछ व्यक्तियों के लिए अधिक लाभकारी हो सकती है। उसने कहा कि नीतिगत निर्णयों में तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह संविधान के भाग III में हस्तक्षेप न करे।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये योजनाएं भेदभावपूर्ण थीं, उनका दावा था कि वे अलग-अलग कर ब्रैकेट के आधार पर व्यक्तियों के साथ भेदभाव करती हैं। जवाब में न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 राज्य को समाज के वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। उसने कहा कि ये योजनाएं सामाजिक कल्याण उपाय हैं और संविधान द्वारा अनुमत हैं।

    इसके अलावा जब याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये योजनाएं जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के तहत 'भ्रष्ट आचरण' का गठन करती हैं, तो न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 123 पर केवल चुनाव याचिका में ही बहस की जा सकती है। इस मामले में इसे संबोधित नहीं किया जा सकता।

    याचिकाकर्ता ने जब न्यायालय से वित्तीय विभाग को जवाब देने का निर्देश देने का अनुरोध किया तो न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिए कि सरकार के विभिन्न विभागों के अलग-अलग विचार हैं, वह उन्हें जवाब दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकता।

    इस प्रकार न्यायालय ने बिना किसी खर्चे के याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- नवीद अब्दुल सईद मुल्ला बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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