SC/ST Act की कार्यवाही भले ही ओपन कोर्ट में हो, वीडियो रिकॉर्ड की जानी चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

14 March 2024 7:45 AM GMT

  • SC/ST Act की कार्यवाही भले ही ओपन कोर्ट में हो, वीडियो रिकॉर्ड की जानी चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 (Scheduled Tribes Prevention of Atrocities Act, 1989) के तहत मामलों में जमानत कार्यवाही सहित सभी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग करना अनिवार्य है।

    चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सारंग वी कोटवाल की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश पीठ के एक संदर्भ का जवाब देते हुए कहा कि कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की जानी चाहिए भले ही वे ओपन कोर्ट में आयोजित की जाएं।

    खंडपीठ ने कहा,

    “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 से संबंधित किसी भी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग करना आवश्यक होगा, भले ही कार्यवाही ओपन कोर्ट में हो। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 14-ए के तहत जमानत आवेदन की सुनवाई 'न्यायिक कार्यवाही' है, जैसा कि अत्याचार अधिनियम की धारा 15-ए के तहत विचार किया गया।

    यह संदर्भ एक्ट की धारा 14ए के तहत अपील में दो एकल न्यायाधीश पीठों की अलग-अलग राय से उत्पन्न हुआ। अपीलकर्ता आईपीसी की धारा 306 के सपठित धारा 34, महाराष्ट्र रैगिंग निषेध अधिनियम की धारा 4, धारा 3(1)(आर),(एस), (यू), (जेडए) अत्याचार अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत मामले में जमानत पर रिहाई की मांग कर रहे थे।

    सुनवाई के दौरान मूल शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 15ए(10) के मद्देनजर अपील की सुनवाई वीडियो रिकॉर्ड की जानी चाहिए।

    जस्टिस दामा शेषाद्री नायडू ने कहा कि कार्यवाही को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए। मामला बाद में जस्टिस साधना जाधव के समक्ष सूचीबद्ध हुआ, जो पिछली पीठ से असहमत थीं। इस प्रकार मामला खंडपीठ को भेज दिया गया।

    मुख्य मुद्दा इस बात पर केंद्रित है कि क्या एक्ट की धारा 14ए के तहत जमानत की कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही के दायरे में आती है।

    अदालत ने कहा कि अधिनियम का उद्देश्य पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करना और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है। अदालत ने कहा कि अधिनियम के तहत अपराधों से संबंधित कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग उन कार्यवाहियों के संबंध में सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करेगी।

    अदालत ने कहा इससे यह सुनिश्चित होगा कि पीड़ितों और गवाहों को मामले और मुकदमे की तैयारी के बारे में पर्याप्त जानकारी होगी और जानकारी उन संगठनों और व्यक्तियों को उपलब्ध होगी, जो पीड़ितों और उनके आश्रितों को कानूनी सहायता प्रदान करते हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    “कई मामलों में पीड़ितों को कानूनी प्रक्रियाओं या उनके निहितार्थों के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं हो सकती है। इस प्रकार, उस मामले में वीडियो रिकॉर्डिंग उन सभी को सुविधा प्रदान करेगी, जो पीड़ित को कार्यवाही की प्रकृति और तथ्यों के विवरण को समझने में मदद कर सकते हैं। इस प्रकार, अत्याचार अधिनियम की धारा 15-ए की उपधारा (10) अलग से काम नहीं करती है, बल्कि यह अन्य प्रावधानों को शामिल करती है और उनके प्रभावी कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करती है।"

    संदर्भ निर्णय में कहा गया कि जमानत की कार्यवाही सीआरपीसी में परिभाषित न्यायिक कार्यवाही नहीं है, क्योंकि इसमें साक्ष्य की रिकॉर्डिंग शामिल नहीं है। खासकर जब जांच पूरी हो गई हो और जांच के कागजात अदालत के समक्ष हों। इस तर्क के साथ, संदर्भ निर्णय में कहा गया कि जमानत कार्यवाही के मामले में वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य नहीं है।

    हालांकि, खंडपीठ ने इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा कि सीआरपीसी में न्यायिक कार्यवाही की परिभाषा संपूर्ण होने के बजाय समावेशी है और अदालत के समक्ष किसी भी कार्यवाही को बाहर नहीं करती है।

    अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 15-ए(10) की परिभाषा,

    "इस अधिनियम के तहत अपराधों से संबंधित सभी कार्यवाही" की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य करती है। इस प्रकार, शब्दों के इस विशेष उपयोग को यथासंभव व्यापक अर्थ देना होगा।

    अदालत ने कहा कि "सभी कार्यवाही" शब्द में जमानत की कार्यवाही शामिल है।

    अदालत ने कहा,

    क्यूंकि धारा 15-ए(10) नियमों को बनाने की आवश्यकता का कोई संदर्भ नहीं देती, इसलिए इसे लागू करना होगा चाहे नियम बनाए जाएं या नहीं। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकला कि अत्याचार अधिनियम की धारा 15-ए(10) अनिवार्य है न कि निर्देशिका।

    कोर्ट ने कहा कि यह फैसला भावी तौर पर लागू होता है, यानी इसका असर भविष्य की कार्यवाही पर पड़ेगा।

    अत्याचार अधिनियम की धारा 21 के अनुसार ये सुविधाएं प्रदान करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। इस प्रकार, अदालत ने राज्य सरकार को महाराष्ट्र की सभी अदालतों को अत्याचार एक्ट के मामलों के तहत वीडियो रिकॉर्डिंग सुविधाओं से लैस करने का निर्देश दिया।

    अदालत ने कहा,

    जब तक ऐसी सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं, तब तक वीडियो रिकॉर्डिंग क्षमताओं के बिना अदालतें इसके बिना आगे बढ़ सकती हैं। खासकर जब किसी आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता दांव पर हो।

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