मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर की गई

Amir Ahmad

15 Jun 2024 8:31 AM GMT

  • मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर की गई

    मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ऑफ आर्ट, साइंस एंड कॉमर्स के नौ स्टूडेंट्स ने कॉलेज के अधिकारियों द्वारा हाल ही में लागू किए गए ड्रेस कोड को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    इस ड्रेस कोड के तहत स्टूडेंट्स को परिसर में हिजाब पहनने से रोका गया। याचिकाकर्ता, बीएससी और बीएससी (कंप्यूटर साइंस) कार्यक्रमों के दूसरे और तीसरे वर्ष के स्टूडेंट्स दावा करते हैं कि नया ड्रेस कोड उनकी निजता, सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

    याचिकाकर्ताओं का कहना है कि प्रतिवादी कॉलेज के कॉलेज ट्रस्टी, शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारी कॉलेज में आयोजित वार्षिक समारोहों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आरंभ/समापन के दौरान अपनी पूजा/धार्मिक मान्यताओं और संस्कृति का पालन और प्रचार करते हैं।

    याचिकाकर्ताओं को कभी भी धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथा या विश्वास जैसी किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई। इसके अलावा, धार्मिक पेंडेंट, बिंदी, टीका, कलाई के चारों ओर धार्मिक धागे, राखी और उंगली की अंगूठियां कक्षा में पहनने की अनुमति है। इस प्रकार, चुनिंदा लोगों पर प्रतिबंध लगाना अपने आप में भेदभावपूर्ण, अवैध और कानून के विरुद्ध है।

    हाईकोर्ट की वेबसाईट के अनुसार वकील अल्ताफ खान के माध्यम से दायर रिट याचिका पर खंडपीठ द्वारा सुनवाई की जानी है।

    याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता सभी महिला स्टूडेंट्स कई वर्षों से कॉलेज के अंदर और बाहर नकाब और हिजाब पहनती आ रही हैं। कॉलेज ने हाल ही में अपनी वेबसाइट और व्हाट्सएप मैसेज के माध्यम से स्टूडेंट्स के लिए निर्देश टाइटल से अदिनांकित नोटिस जारी किया, जिसमें ड्रेस कोड अनिवार्य किया गया, जो स्पष्ट रूप से बुर्का, नकाब, हिजाब, टोपी, बैज और स्टोल पहनने से मना करता है।

    नोटिस में कहा गया कि स्टूडेंट्स को ऐसे ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए, जिससे किसी भी धार्मिक संबद्धता का पता न चले जैसे बुर्का, नकाब, हिजाब, टोपी, बैज, स्टोल आदि।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि ये निर्देश अवैध, मनमाने और अनुचित हैं। याचिका में कहा गया कि ऐसे निर्देश किसी भी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा समर्थित नहीं हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 25, 26 और 29 के तहत गारंटीकृत उनके अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

    याचिका में कहा गया कि कॉलेज, मुंबई यूनिवर्सिटी से संबद्ध होने और राज्य सहायता प्राप्त करने के कारण पोशाक पर इस तरह के प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं रखता है।

    याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि कॉलेज की कार्रवाई भेदभावपूर्ण है और महाराष्ट्र सार्वजनिक यूनिवर्सिटी अधिनियम, यूजीसी दिशा-निर्देशों, आरयूएसए दिशा-निर्देशों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा अनिवार्य समानता और समावेशिता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।

    याचिका में कहा गया,

    "प्रतिवादी [कॉलेज] की ओर से की गई कार्रवाई याचिकाकर्ताओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित करने की मंशा रखती है। याचिकाकर्ताओं को अन्य छात्रों से अलग करने की कोशिश करती है। यह कार्रवाई प्रतिवादी [कॉलेज] में प्रवेश से इनकार करने के समान है। प्रतिवादी [कॉलेज] यह विचार करने में विफल रहा कि इस तरह के प्रतिबंधों से महिलाओं की ड्रॉपआउट दर में वृद्धि होगी।"

    याचिका में कहा गया कि प्रतिबंध राष्ट्रीय उच्च शिक्षा नीति और राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) के अनुरूप नहीं हैं, जिसका उद्देश्य महिलाओं और अल्पसंख्यकों सहित वंचित समूहों के लिए उच्च शिक्षा में पहुंच और समानता को बढ़ावा देना है। याचिका में तर्क दिया गया कि ड्रेस प्रतिबंध कॉलेज की अपनी आचार संहिता नीति का उल्लंघन करते हैं, जो सभी स्टूडेंट के लिए समानता और सम्मान को बढ़ावा देता है।

    याचिका में कहा गया,

    "याचिकाकर्ताओं को अत्यधिक नैतिक पुलिसिंग और ड्रेस कोड पर जोर नहीं देना चाहिए था।"

    याचिकाकर्ताओं ने कुरान की आयतों और हदीस का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि नकाब या हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा है। यह उनके विश्वास की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। याचिका में कहा गया कि 13 मई, 2024 को याचिकाकर्ताओं ने ड्रेस कोड प्रतिबंध हटाने की मांग करते हुए कॉलेज प्रबंधन और प्रिंसिपल के साथ अपनी चिंताओं पर चर्चा करने का प्रयास किया लेकिन उनके प्रयास असफल रहे।

    याचिकाकर्ताओं का दावा है कि लागू किया गया ड्रेस कोड उनकी निजता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक अभ्यास के अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया कि नकाब और हिजाब याचिकाकर्ताओं की धार्मिक मान्यताओं और व्यक्तिगत पहचान का अभिन्न अंग हैं। कॉलेज की कार्रवाई उनकी शारीरिक स्वायत्तता और व्यक्तिगत पसंद का उल्लंघन है। याचिका में आगे कहा गया कि "औपचारिक और सभ्य पोशाक" के लिए कॉलेज का निर्देश अप्रत्यक्ष रूप से हिजाब और बुर्का को अभद्र के रूप में वर्गीकृत करता है।

    “प्रतिवादी [कॉलेज] ने अप्रत्यक्ष रूप से नकाब, बुर्का और हिजाब को अभद्र पोशाक के रूप में वर्गीकृत किया है। हालांकि, तथ्य इसके विपरीत है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि नकाब, बुर्का, हिजाब, टोपी और स्टोल सभ्य पोशाक हैं। इसके अलावा, नागरिक के रूप में यह याचिकाकर्ताओं का सम्मान और शारीरिक अखंडता का अधिकार है। याचिकाकर्ता अपनी पसंद और गोपनीयता के मामले में अपने कपड़ों यानी नकाब और हिजाब के साथ सहज हैं, और कक्षा में इसे हटाना नहीं चाहते हैं।”

    याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने मुंबई यूनिवर्सिटी के कुलपति, यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग (UGC), उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय सहित विभिन्न अधिकारियों से हस्तक्षेप करने और ड्रेस कोड को वापस लेने का अनुरोध किया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है।

    याचिका में कहा गया कि 12 जून, 2024 को शैक्षणिक वर्ष शुरू होने वाला है। इसलिए यह मामला अत्यावश्यक है, क्योंकि ड्रेस कोड याचिकाकर्ताओं को कक्षाओं में भाग लेने और अपनी पढ़ाई जारी रखने से रोकेगा, जिससे तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

    याचिकाकर्ता बिना तारीख वाले नोटिस और 1 मई, 2024 के व्हाट्सएप मैसेज रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जिसमें ड्रेस कोड लागू करने और यह घोषणा करने की बात कही गई कि नकाब, बुर्का और हिजाब पहनने पर प्रतिबंध असंवैधानिक हैं और याचिकाकर्ताओं पर बाध्यकारी नहीं हैं।

    याचिकाकर्ताओं ने याचिका के लंबित रहने तक नोटिस पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की।

    केस टाइटल - ज़ैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी और अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज और अन्य।

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