बदलापुर यौन उत्पीड़न के आरोपी के माता-पिता सड़कों पर रहने और भीख मांगकर गुजारा करने को मजबूर: बॉम्बे हाईकोर्ट में बताया गया
Amir Ahmad
20 Dec 2024 1:28 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट को गुरुवार को बताया गया कि बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में अब मृतक आरोपी के माता-पिता सड़कों पर भीख मांगकर गुजारा कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें कोई नौकरी नहीं दे रहा है और यहां तक कि उन्हें अपना घर छोड़कर फुटपाथ पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ को बताया गया कि मृतक के माता-पिता जो कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ में मारे गए, कल्याण चले गए हैं, क्योंकि बदलापुर के ग्रामीणों ने उन्हें उनके ही घर से निकाल दिया।
मृतक की मां ने अदालत में उपस्थित होकर जजों से कहा,
"हमारे बेटे को स्थानीय पुलिस द्वारा उठा लिए जाने के तुरंत बाद ही ग्रामीणों ने हमें बाहर निकाल दिया। हम अपने घर वापस नहीं जा सकते, क्योंकि हमें अपनी जान को खतरा होने का डर है। अब हमारे पास कोई आश्रय नहीं है। इसलिए हम कल्याण चले गए। हम दोनों (पिता और माता) फुटपाथ, बस स्टैंड या रेलवे स्टेशनों पर रह रहे हैं। हमारे पास सड़कों पर भोजन और पैसे के लिए भीख मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि उस घटना के बाद कोई भी हमें काम देने के लिए तैयार नहीं है।"
मां ने पीठ को यह भी बताया कि उनके घर को भी बैंक अधिकारियों ने सील कर दिया, जिनसे उन्होंने अपने बच्चों की शादी के लिए लोन लिया था। चूंकि अब उनके पास कोई पैसा या नौकरी नहीं है। इसलिए वे मासिक EMI का भुगतान करने में चूक गए हैं और इसलिए बैंक ने उक्त कार्रवाई की है।
उन्होंने कहा,
"मेरे पति और मैं दोनों ही घर के काम करते थे। हम पहले शौचालय साफ करते थे मैला ढोते थे आदि। अब कोई भी हमें कोई काम देने को तैयार नहीं है। हमारा दूसरा बेटा अपने ससुराल वालों के साथ रहता है। हम दोनों सड़कों पर रहते हैं भीख मांगते हैं।"
यह तब हुआ, जब जजों ने विशेष रूप से दंपति को उपस्थित रहने के लिए कहा, क्योंकि उनके वकील ने मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगावकर के तर्क पर विवाद किया।
उन्होंने पहले की सुनवाई में जजों को सूचित किया था कि दंपति ने उनके लिए पुलिस सुरक्षा से इनकार कर दिया है।जब दंपति अदालत में पहुंचे तो जजों ने सभी वकीलों, वादियों, पुलिस अधिकारियों आदि को कोर्ट रूम से बाहर जाने के लिए कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे (माता-पिता) दबाव महसूस न करें।
सुरक्षा से कथित इनकार के बारे में पूछने पर माँ ने समझाया,
"मैडम, ऐसा नहीं है कि हमें सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है। हमें सुरक्षा की ज़रूरत है। लेकिन ज़रा सोचिए कि अगर पुलिसवाला चौबीसों घंटे हमारे आस-पास रहेगा तो हमें भीख कौन देगा, जबकि हम सड़कों पर भीख मांगेंगे? नौकरी तो छोड़िए, कोई हमें भीख भी नहीं देगा। इसलिए तब हमारा जीवन-यापन एक मुद्दा बन जाएगा।"
माता-पिता की बात विस्तार से सुनने के बाद जजों ने वेनेगावकर से जानना चाहा कि क्या उन्हें बदलापुर के अलावा किसी और जगह पर पुनर्वासित किया जा सकता है।
जजों ने मौखिक रूप से कहा,
"उन्हें नौकरी देने या कोई सामाजिक सेवा कार्य करने के लिए कोई योजना होनी चाहिए। उन्हें बदलापुर से बाहर पुनर्वासित करने पर विचार करें।"
इसके अलावा, पीठ ने पुलिस से एक सप्ताह के भीतर परिवार को खतरे की धारणा की जांच करने और यह निर्णय लेने को कहा कि उन्हें सुरक्षा दी जा सकती है, या नहीं।
जजों ने वेनेगावकर को स्पष्ट किया,
"पुलिस सुरक्षा उनकी आजीविका या उनकी रोज़ी-रोटी में बाधा नहीं बननी चाहिए।"
जजों ने अब सुनवाई 13 जनवरी तक स्थगित की।