भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है, ने 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ले ली है। इस अधिनियम में अदालत में साक्षियों (Witnesses) की जिरह (Cross-Examination) से जुड़े नियमों को विस्तार से समझाया गया है। इनमें गवाह के जिरह (Cross-Examination) के प्रावधान (Provisions) बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अदालत में प्रस्तुत गवाही (Testimony) की विश्वसनीयता (Reliability) और सच्चाई की जांच सुनिश्चित करते हैं। इस लेख में, हम भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 142 से 149 के तहत गवाह के जिरह (Cross-Examination) से संबंधित प्रावधानों का सरल भाषा में विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
साक्षियों की पूछताछ (Examination of Witnesses): धारा 142 को समझना (Understanding Section 142)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 142 साक्षियों की पूछताछ (Examination) को तीन चरणों में विभाजित करती है:
1. मुख्य पूछताछ (Examination-in-Chief): यह पूछताछ (Examination) का प्रारंभिक चरण होता है, जिसमें वह पार्टी (Party) जो गवाह को बुलाती है, गवाह से सवाल पूछती है। इसका उद्देश्य उन तथ्यों को स्थापित करना होता है जो उस पार्टी के पक्ष को समर्थन करते हैं। (This is the initial stage of questioning where the party who calls the witness asks questions to establish facts supporting their case.)
2. जिरह (Cross-Examination): मुख्य पूछताछ (Examination-in-Chief) के बाद, विरोधी पक्ष (Opposing Party) को गवाह से सवाल पूछने का मौका मिलता है। जिरह (Cross-Examination) का उद्देश्य गवाह की गवाही को चुनौती देना, उसकी विश्वसनीयता (Credibility) की जांच करना और किसी भी असंगतियों (Inconsistencies) की खोज करना है। (The purpose of cross-examination is to challenge the testimony, test the credibility of the witness, and explore any inconsistencies.)
3. पुनः पूछताछ (Re-Examination): यह जिरह (Cross-Examination) के बाद होती है और इसका उद्देश्य उन मुद्दों को स्पष्ट करना है जो जिरह के दौरान उठाए गए हैं। पुनः पूछताछ (Re-Examination) केवल उन्हीं मुद्दों तक सीमित होनी चाहिए जो जिरह में उठाए गए हैं, जब तक कि अदालत नए मुद्दों को पेश करने की अनुमति न दे। (This occurs after cross-examination to clarify any issues raised during it. Re-examination should be limited to matters addressed in cross-examination.)
पूछताछ का क्रम (Order of Examination): धारा 143 (Section 143)
धारा 143 में गवाह की पूछताछ (Examination) के क्रम को निर्धारित किया गया है। गवाह की सबसे पहले मुख्य पूछताछ (Examination-in-Chief) होती है, उसके बाद जिरह (Cross-Examination), और अंत में पुनः पूछताछ (Re-Examination) होती है अगर आवश्यक हो।
मुख्य पूछताछ (Examination-in-Chief) और जिरह (Cross-Examination) प्रासंगिक तथ्यों (Relevant Facts) से संबंधित होनी चाहिए। हालांकि, जिरह (Cross-Examination) का दायरा (Scope) व्यापक होता है और इसमें वे सवाल भी शामिल हो सकते हैं जो मुख्य पूछताछ में कवर नहीं किए गए थे। पुनः पूछताछ (Re-Examination) केवल जिरह में उठाए गए मुद्दों की व्याख्या (Explanation) तक सीमित होती है, और अगर पुनः पूछताछ (Re-Examination) में नए मुद्दे उठाए जाते हैं, तो अदालत की अनुमति से विरोधी पक्ष उन मुद्दों पर फिर से जिरह (Further Cross-Examination) कर सकता है।
जिरह का वैध उदाहरण (Valid Cross-Examination Illustration): एक गवाह मुख्य पूछताछ (Examination-in-Chief) में यह गवाही देता है कि उसने आरोपी को अपराध स्थल पर देखा। जिरह (Cross-Examination) के दौरान, बचाव पक्ष (Defense) गवाह से उसकी दृष्टि (Eyesight), घटना के समय की रोशनी की स्थिति (Lighting Conditions), या किसी ऐसे पूर्व मामले (Previous Instances) के बारे में सवाल पूछ सकता है जिसमें गवाह ने गलत पहचान की हो। यह प्रश्न पूछने का तरीका गवाह की देखी गई बात की विश्वसनीयता की जांच करता है। (The defense may question the witness about their eyesight, lighting conditions, or previous instances of incorrect identification to test the reliability of the observation.)
जिरह का अवैध उदाहरण (Invalid Cross-Examination Illustration): अगर बचाव पक्ष गवाह से उसके निजी मामलों जैसे वित्तीय स्थिति (Financial Status) या निजी जीवन (Personal Life) के बारे में बिना किसी प्रासंगिकता (Relevance) के सवाल पूछता है, तो यह अवैध जिरह (Invalid Cross-Examination) मानी जाएगी। ऐसे मामलों में अदालत हस्तक्षेप (Intervene) कर सकती है और ऐसे प्रश्नों को अनुमति नहीं देगी। (If the defense questions the witness about unrelated personal matters without relevance, the court would likely intervene and disallow such questions.)
दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति की स्थिति (Status of Person Producing Documents): धारा 144 (Section 144)
धारा 144 यह स्पष्ट करती है कि केवल दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के कारण कोई व्यक्ति गवाह नहीं बनता। ऐसे व्यक्ति को केवल तब जिरह (Cross-Examination) के लिए बुलाया जा सकता है जब उसे गवाह के रूप में स्पष्ट रूप से बुलाया गया हो। (A person summoned to produce a document does not automatically become a witness simply because they produce the document. They can only be cross-examined if explicitly called as a witness.)
उदाहरण (Illustration): अगर किसी क्लर्क को कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड (Financial Records) प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता है, तो उसे इन रिकॉर्ड्स की सामग्री (Content) या अन्य अप्रासंगिक मामलों (Unrelated Matters) के बारे में तब तक सवाल नहीं पूछा जा सकता जब तक उसे गवाह के रूप में बुलाया न जाए। (If a clerk is summoned to produce financial records, they cannot be questioned about the contents of those records or unrelated matters unless they are formally called as a witness.)
चरित्र साक्षियों की जिरह (Cross-Examination of Character Witnesses): धारा 145 (Section 145)
धारा 145 कहती है कि जो गवाह किसी के चरित्र (Character) के बारे में गवाही देते हैं, उन्हें जिरह (Cross-Examination) और पुनः पूछताछ (Re-Examination) के लिए बुलाया जा सकता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि चरित्र साक्ष्य (Character Evidence) की भी गहन जांच की जा सके, और विरोधी पक्ष को गवाही को चुनौती देने का मौका मिले। (This ensures that character evidence is also scrutinized, providing the opposing party a chance to challenge the testimony.)
उदाहरण (Illustration): अगर कोई चरित्र गवाह गवाही देता है कि आरोपी की ईमानदारी (Honesty) की प्रतिष्ठा (Reputation) है, तो विरोधी पक्ष (Opposing Party) इस गवाही को चुनौती देने के लिए गवाह से किसी ज्ञात बेईमानी के मामलों (Instances of Dishonest Behavior) के बारे में सवाल पूछ सकता है। (If a character witness testifies that the accused has a reputation for honesty, the opposing party may cross-examine the witness about any known instances of dishonest behavior.)
पूर्व बयानों के बारे में जिरह (Cross-Examination Regarding Previous Statements): धारा 148 (Section 148)
धारा 148 के अनुसार, गवाह से उसके पूर्व बयानों (Previous Statements) के बारे में जिरह की जा सकती है जो उसने लिखित रूप में दिए हों या लिखित रूप में दर्ज किए गए हों, बशर्ते वे बयानों (Statements) उस मामले से संबंधित हों। इस चरण (Stage) में लिखित बयान गवाह को दिखाया जाना या साबित किया जाना आवश्यक नहीं होता। हालांकि, अगर लिखित बयान का उद्देश्य गवाह को विरोधाभास (Contradiction) में लाना है, तो उसे उन हिस्सों पर ध्यान दिलाना आवश्यक है जो विरोधाभास के लिए उपयोग किए जाएंगे। (Section 148 allows a witness to be cross-examined about previous statements they made in writing or that were reduced to writing, provided those statements are relevant to the matter in question.)
उदाहरण (Illustration): अगर गवाह ने पहले एक लिखित बयान में कहा कि वह अपराध स्थल पर नहीं था, लेकिन अदालत में गवाही देता है कि वह वहां था, तो विरोधी पक्ष गवाह से इस अंतर (Discrepancy) के बारे में जिरह कर सकता है। बयान को गवाह के विरोधाभास को साबित करने के लिए इस्तेमाल करने से पहले गवाह को यह दिखाना आवश्यक है कि बयान के कौन से हिस्से में असहमति है। (If a witness previously made a written statement that they were not at the crime scene but testifies in court that they were, the opposing party may cross-examine the witness about this discrepancy.)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के तहत साक्षियों की जिरह (Cross-Examination) के प्रावधान (Provisions) बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये न्याय प्रक्रिया (Judicial Process) में सच्चाई की खोज को सुनिश्चित करते हैं। जिरह का उद्देश्य केवल गवाह की गवाही को चुनौती देना नहीं है, बल्कि इससे अदालत गवाह की विश्वसनीयता (Credibility) और गवाही की सत्यता (Truthfulness) की गहराई से जांच कर सकती है। इस अधिनियम के नियम गवाह के अधिकारों और अदालत में प्रस्तुत की गई जानकारी की शुद्धता को संतुलित करने के लिए बनाए गए हैं। (These provisions are vital in ensuring that the judicial process remains focused on uncovering the truth. The purpose of cross-examination is not merely to challenge the witness's testimony but to allow the court to thoroughly assess the credibility of the witness and the accuracy of the testimony presented.)