सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 60: आदेश 11 नियम 15 से 18 तक के प्रावधान

Update: 2023-12-29 11:30 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 11 परिप्रश्न एवं प्रकटीकरण से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत संयुक्त रूप से नियम 15,16,17 एवं 18 पर विवेचना की जा रही है।

नियम-15 अभिवचनों या शपथपत्रों में निर्दिष्ट दस्तावेजों का निरीक्षण-वाद का हर पक्षकार किसी भी ऐसे अन्य पक्षकार को, जिसके अभिवचनों या शपथपत्रों में किसी दस्तावेज के प्रति निर्देश किया गया है

[या जिसने अपने अभिवचनों से उपाबद्ध किसी सूची में किसी दस्तावेज की प्रविष्टि की है]

विवाद्यकों के स्थिरीकरण के समय या उसके पूर्व। किसी भी समय यह सूचना देने का हकदार होगा कि यह कोई ऐसी दस्तावेज ऐसी सूचना देने वाले पक्षकार या उसके प्लीडर के निरीक्षण के लिए पेश करे और उसे या उन्हें उसकी प्रति लेने दे और ऐसी सूचना का अनुपालन न करने वाला कोई भी पक्षकार उसके पश्चात् ऐसी किसी भी दस्तावेज को ऐसे वाद में अपनी ओर से साक्ष्य में देने के लिए तब तक स्वतंत्र नहीं होगा जब तक कि वह न्यायालय का समाधान न कर दे कि वह वाद में प्रतिवादी है।

ऐसे दस्तावेज का सम्बन्ध वेचल उसके अपने हक से है या उसके पास कोई ऐसा अन्य हेतुक या प्रतिहेतु था जिसे न्यायालय ऐसी सूचना का अनुपालन न करने के लिए पर्याप्त समझे, उस दशा में न्यायालय खर्चा और अन्य बातों के बारे में ऐसी निबन्धनों पर जो न्यायालय टीक समझे, उसे साक्ष्य में रखे जाने के लिए अनुज्ञा दे सकेगा।

नियम-16 पेश करने की सूचना- किसी पक्षकार को उसके अभिवचन या शपथपत्रों में निर्दिष्ट किन्हीं दस्तावेजों को पेश करने की सूचना परिशिष्ट-ग के प्ररूप संख्यांक 7 में ऐसे फेरफार के साथ होगी जो परिस्थितियों से अपेक्षित हो।

नियम-17 जब सूचना दी गई है तब निरीक्षण के लिए समय-जिस पक्षकार को ऐसी सूचना दी गई है यह ऐसी सूचना के प्राप्त होने से दस दिन के भीतर उस पक्षकार को जिसने यह सूचना दी थी, ऐसी सूचना परिदत्त करेगा जिसने उसके परिदान से तीन दिन के भीतर आने वाला यह समय कथित होगा जब उन दस्तावेजों का या उनमें से ऐसी का जिनके पेश करने के बारे में यह आक्षेप नहीं करता है।

उसके प्लीडर के कार्यालय में या बैंककार बहियों या अन्य लेखा बहियों या ऐसी बहियों की, जो किसी व्यापार या कारबार के प्रयोजन के लिए निरंतर उपयोग में रहती है, दशा में उनकी अभिरक्षा के प्रायिक स्थान में निरीक्षण किया जा सकेगा और यह कथन होगा कि वे कौन-सी दस्तावेजें हैं (यदि कोई हो) जिनके पेश करने के बारे में और किस आधार पर यह आक्षेप करता है। ऐसी सूचना परिशिष्ट-न में के प्ररूप संख्यांक 8 में ऐसे फेरफार के साथ होगी जो परिस्थितियों से अपेक्षित हो।

नियम-18 निरीक्षण के लिए आदेश (1) जहां वह पक्षकार जिस पर नियम 15 के अधीन सूचना की तामील की गई है, निरीक्षण के लिए समय की ऐसी सूचना देने का लोप करता है या निरीक्षण कर देने पर आक्षेप करता है या अपने प्लीडर के कार्यालय से भिन्न स्थान पर निरीक्षण कराने की प्रस्थापना करता है वहां न्यायालय निरीक्षण चाहने वाले पक्षकार के आवेदन पर ऐसे स्थान में और इस प्रकार जो न्यायालय ठीक समझे, निरीक्षण के लिए आदेश कर सकेगा:

परन्तु जब और जहां तक न्यायालय की यह राय है कि वाद के ऋजु निपटारे के लिए या खर्चों में बचत करने के लिए यह आवश्यक नहीं है तब और यहां तक ऐसा आदेश नहीं दिया जाएगा।

(2) उन दस्तावेजों को छोड़कर जो उस पक्षकार के अभिवचनों, विशिष्टयों या शपथपत्रों में निर्दिष्ट हो जिसके विरुद्ध आवेदन किया गया है या उसके दस्तावेजों सम्बन्धी शपथपत्र में प्रकट की गई हो, दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए कोई भी आवेदन ऐसे शपथपत्र पर आधारित होगा जो यह दर्शित करता हो कि वे दस्तावेजें कौन-सी है जिनका निरीक्षण किया जाना है, यह कि आवेदन करने वाला पक्षकार उनका निरीक्षन करने के लिए हकदार है और यह कि यह दूसरे पक्षकार के कब्जे या शक्ति में है। जब और जहां तक न्यायालय की यह राय है कि वाद के ऋजु निपटारे के लिए या खर्चा में बचत करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि तब और वहां तक न्यायालय ऐसी दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए ऐसा आदेश नहीं करेगा।

आदेश 11 के नियम 15 से 18 में दस्तावेजों के निरीक्षण सम्बन्धी व्यवस्था की गई है।

2(क). संशोधन 1976 का प्रभाव - नियम 15 के अनुसार, एक पक्षकार उन दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए नोटिस देने के लिए अधिकृत है, जिन दस्तावेजों का विपक्षी के अभिवचन या शपथपत्र में उल्लेख किया गया है। इस पर प्रश्न उठा कि क्या वे दस्तावेज जिनको वादपत्र के साथ संलप्र सूची में बताया गया है, इस नियम से आवृत्त होते हैं? इस पर एक मत था कि यह नियम उन दस्तावेजों पर लागू नहीं होता, और दूसरा मत सूची को अभिवचन का भान मानकर इस नियम को लागू करता था। अतः इस विवाद का हल करने के लिए नियम 15 में संशोधन कर इस नियम के अधीन उस संलन सूची को भी सम्मिलित कर लिया गया है।

(ख) संशोधन 1999 का प्रभाव - उच्चतम न्यायालय का मत-पहले दस्तावेजों का निरीक्षण किसी भी समय किया जा सकता था, किन्तु अब वह विवाद्यकों (वाद-प्रश्नों) के स्थिरीकरण के समय तक सीमित कर दिया गया है। यह भी निदेशात्मक ही है। इसका अर्थ यह नहीं है कि-विवाद्यकों के स्थिरीकरण के बाद निरीक्षण अनुमत न हो सकेगा।

निर्दिष्ट दस्तावेजों के निरीक्षण का तरीका-दस्तावेजों के प्रकटीकरण (नियम 12, 13) के बाद नियम 14 में दस्तावेज पेश किये जाते हैं, जिनका निरीक्षण नियम 15 से 20 के अधीन किया जाता है। निरीक्षण के लिए दस्तावेज दो प्रकार के होते हैं

(क) ये दस्तावेज जो पक्षकार के अभिवचनों या शपथपत्रों या अभिवचनों के साथ संलग्न सूची में वर्णित हैं-

(1) ऐसे दस्तावेजों का हर विपक्षी पक्षकार विवाद्यक (बाद प्रश्न) स्थिर करते समय या उससे पहले निरीक्षण कर सकता है, जिनके लिए परिशिष्ट 'ग' के प्ररूप संख्यांक 7 में उस पक्षकार को नोटिस भेजा जावेगा (नियम 15 व 16)।

(2) ऐसा नोटिस (सूचना) प्राप्त होने पर वह विपक्षी पक्षकार दस दिन के भीतर उत्तर देगा कि (1) कौन-कौनसे दस्तावेजों का किस स्थान पर कब नोटिसदाता पक्षकार द्वारा निरीक्षण किया जा सकेगा और (2) किन दस्तावेजों के पेश करने के बारे में उसे क्या ऐतराज है। इस उत्तर के लिए परिशिष्ट "ग" का प्ररूप सं. 8 आवश्यक फेरबदल कर काम में लिया जायेगा।

(3) निरीक्षण के लिए नियम 15 के अधीन प्ररूप 7 में दिये नोटिस की तामील के बाद यदि विपक्षी पक्षकार प्ररूप संख्यांक 8 में सूचना नहीं दे या निरीक्षण पर ऐतराज करे या प्लीडर के कार्यालय से भिन्न स्थान पर निरीक्षण कराना चाहता है, तो निरीक्षणकर्ता पक्षकार द्वारा आवेदन देने पर न्यायालय उस पर उचित आदेश देगा या वाद के न्यायोचित निपटारे और खर्च की बचत न होने पर कोई आदेश नहीं देगा।

(ख) अन्य दस्तावेजें जो उपर्युक्त 'क' में नहीं हैं- इनके लिए नियम 18 (2) के अनुसार कार्यवाही की जाएगी।

दोषी पक्षकार के विरुद्ध कार्यवाही - नियम 15 के नोटिस की तामील के वाद उसकी अनुपालना नहीं करने वाला कोई भी पक्षकार -

(1) ऐसे दस्तावेज को अपनी साक्ष्य में पेश नहीं कर सकेगा, (2) किन्तु न्यायालय का यह समाधान कराने पर कि (1) वह वाद में प्रतिवादी है, (2) ऐसे दस्तावेज का संबंध केवल उसके अपने हक से है, या उस सूचना का अनुपालन नहीं करने का कोई अन्य पर्याप्त कारण था, (3) तो न्यायालय उसे साक्ष्य में रखने की अनुज्ञा (इजाजत), खर्च व शर्तें लगाकर दे सकेगा।

वादपत्र में संदर्भित दस्तावेजों (प्रलेखों) का निरीक्षण-प्रतिवादी ऐसे प्रलेखों का निरीक्षण करने के लिए प्रकटीकरण के लिए किसी भी समय मांग कर सकता है, यहां तक कि अपना प्रतिवादपत्र प्रस्तुत करने से पहले भी। न्यायालय ऐसी शर्त नहीं लगा सकता कि-प्रतिवाद पत्र फाइल करने के बाद ही दस्तावेजों का निरीक्षण किया जा सकेगा।

परन्तु अब विवाद्यक तय करने के समय या उससे पहले निरीक्षण किया जा सकेगा, बाद में नहीं। वादपत्र में आधार बनाये गये दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए न्यायालय के आदेश की पालना न करने पर आदेश 11 के नियम 21 के अधीन कार्यवाही करना न्यायालय का कर्तव्य है। दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए दी गई आज्ञा निर्णीत नहीं है, अतः धारा 115 सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन उसके विरुद्ध पुनरीक्षण (रिवीजन) नहीं होगा। नियम 14 के नीचे बताए गये आधारों पर दस्तावेजों के निरीक्षण के बारे में आक्षेप किए जा सकते हैं।

निरीक्षण के लिए प्रक्रम- एक मामले में लिखित कथन फाइल करने से पहले प्रतिवादी आदेश 7, नियम 14 में वर्णित दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए हकदार नहीं है। न्यायालय की अभिरक्षा में पड़े दस्तावेजों के जेरोक्स (फोटो) कापियों के लिए आवेदन किया गया। अभिनिर्धारित कि-केवल इस आधार पर कि वे दस्तावेज उस वाद के अभिलेख का भाग नहीं बने हैं, ऐसी अनुमति से इंकार नहीं किया जा सकता।

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