सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 54: आदेश 9 नियम 13 एवं 14 के प्रावधान

Update: 2023-12-26 09:21 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 9 पक्षकारों के अदालत में उपस्थित होने एवं नहीं होने के संबंध में प्रावधान निश्चित करता है। आदेश 9 का नियम 13 एवं 14 के अधीन एकपक्षीय डिक्री होने पर उसे अपास्त किये जाने हेतु प्रावधान दिए गए हैं। यह अधिकार एक प्रतिवादी का है, इसे अंतर्गत वह अपने विरुद्ध होने वाली किसी डिक्री को अपास्त करने हेतु आवेदन कर सकता है। इस आलेख के अंतर्गत इन दोनों ही नियमों पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-13 प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करना- किसी ऐसे मामले में जिसमें डिक्री किसी प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय पारित की गई है, वह प्रतिवादी उसे अपास्त करने के आदेश के लिए आवेदन उस न्यायालय में कर सकेगा जिसके द्वारा वह डिक्री पारित की गई थी और यदि वह न्यायालय का यह समाधान कर देता है कि समन की तामील सम्यक् रूप से नहीं की गई थी या वह वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर उपसंजात होने से किसी पर्याप्त हेतुक से निवारित रहा था तो खर्चों के बारे में, न्यायालय में जमा करने के या अन्यथा ऐसे निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, न्यायालय यह आदेश करेगा कि जहां तक डिक्री उस प्रतिवादी के विरुद्ध है वहां तक वह अपास्त कर दी जाए, और वाद में आगे कार्यवाही करने के लिए दिन नियत करेगा:

परन्तु जहां डिक्री ऐसी है कि केवल ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध अपास्त नहीं की जा सकती वहां वह अन्य सभी प्रतिवादियों या उनमें से किसी या किन्हीं के विरुद्ध भी अपास्त की जा सकेगी

परन्तु यह और कि यदि किसी न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि प्रतिवादी को सुनवाई की तारीख की सूचना थी और उपसंजात होने के लिए और वादी के दावे का उत्तर देने के लिए पर्याप्त समय था तो यह एकपक्षीय पारित डिक्री को केवल इस आधार पर अपास्त नहीं करेगा कि समन की तामील में अनियमितता हुई थी।

स्पष्टीकरण- जहां इस नियम के अधीन एकपक्षीय पारित डिक्री के विरुद्ध अपील की गई है और अपील का निपटारा इस आधार से भिन्न किसी आधार पर कर दिया गया है कि अपीलार्थी ने अपील वापस ले ली है वहां उस एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने के लिए इस नियम के अधीन कोई आवेदन नहीं होगा।

नियम-14 कोई भी डिक्री विरोधी पक्षकार को सूचना के बिना अपास्त नहीं की जाएगी- कोई भी डिक्री पूर्वोक्त जैसे किसी भी आवेदन पर तब तक अपास्त नहीं की जाएगी जब तक कि उसकी सूचना की तामील विरोधी पक्षकार पर न कर दी गई हो।

आदेश 9 के नियम 13 व 14 में एकपक्षीय डिक्रियों को अपास्त करने का तरीका बताया गया है। यह संहिता का एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है। सामान्यतया एक मुकदमा पक्षकारों के प्रति विरोधों के गुण दोषों पर निर्णीत होता है। वादी या प्रतिवादी की अनुपस्थिति के कारण मुकदमेबाजी का अंत नहीं होना चाहिये। काज ऑफ जस्टिस की माँग है कि जहाँ तक संभव हो मुकदमे गुणावगुणों पर निर्णीत हो। इस नियम 13 में एक और परन्तुक (द्वितीय परन्तुक) तथा एक "स्पष्टीकरण" जोड़ा गया है।

प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री- यह नियम केवल एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध एक उपचार है, जो आदेश 9 के नियम 6(1) (क) के अधीन पारित को जाती है तथ आदेश 17, नियम 2 व 3 में भी ऐसे उपबंध हैं। अतः जन प्रतिवादी अनुपस्थित होता है और वादी उपस्थित, तो प्रतिवादी के विरुद्ध एकतरफा कार्यवाही करने का आदेश दिया जाता है। इस प्रकार नियम 9 के लागू होने को पहली शर्त है-एकपक्षीय डिक्री का होना।

अपास्त करने के आदेश के लिए आवेदन- प्रतिवादी उसी न्यायालय में आवेदन करेगा, जिसने वह डिक्री पारित को थी।

एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करवाने के लिए प्रार्थना पत्र परिसीमा (Limitation) के अन्दर प्रस्तुत कर देना चाहिए। परिसीमा का समय उस समय शुरू होता है जब एकपक्षीय डिक्रीय डिक्री का प्रतिवादी को ज्ञान हो जाता है। एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कराने के लिए एक वर्ष बाद प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जो परिसीमा अधिनियम के द्वारा अवधि वर्जित माना गया। एक पक्षीय डिक्री के अपास्त हो जाने व वाद के प्रत्यावर्तन पर पूर्व में एक पक्षीय रहे प्रतिवादी को भी सुनवाई की नई सूचना दी जाना आवश्यक है।

न्यायालय का समाधान-

प्रतिवादी न्यायालय का समाधान करेगा कि-

(क) समन की तामील सम्यक् (सही) रूप से नहीं की गई थी- इस प्रकार समन या नोटिस को सही और वैध तामील होना अनिवार्य है। ऐसा न होने पर एकपक्षीय डिक्री या आदेश अपास्त कर दिया जावेगा। या सुनवाई की पुकार होने पर यह किसी पर्याप्त हेतुक (कारण) से उपस्थित नहीं हो सका।

इस प्रकार ये दो आनुकल्पिक आधार हैं, जिनमें से कोई एक को साबित करना तथा आवश्यक हो, तो साक्ष्य भी पेश करनी होगी। इसका प्रमाण-भार प्रतिवादी (आवेदक) पर है।

एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करते समय न्यायालय कुछ शर्तें लगा सकता है लेकिन शर्तें अनुचित एवं कठोर नहीं होनी चाहिए।' एक पक्षीय डिक्री के निष्पादन के उपरांत भी, ऐसी डिक्री अपास्त की जा सकेगी व ऐसी डिक्री के अपास्त होने पर प्रत्यास्थापन या प्रत्यावर्तन का आदेश दिया जावेगा।

बैंक ऑफ इण्डिया के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि आदेश 9 नियम 13 के परन्तुक के अन्तर्गत न्यायालय सभी प्रतिवादियों के विरुद्ध या उनमें से किसी के विरुद्ध पारित एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कर सकता है चाहे वे बाद की कार्यवाही में उपसंजात हुए हो, मुकदमें में पैरवी को हो या नहीं की हो चाहे उन्होंने एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करवाने के लिए प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया हो चाहे नहीं किया हो। सभी प्रतिवादियों के विरुद्ध डिक्री का अपास्त किया जाना डिक्री की प्रकृति पर निर्भर करता है यदि डिक्री अविभाज्य है तो न्यायालय सभी प्रतिवादियों के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री को निरस्त कर सकता है।

आदेश 9 नियम 13 के अधीन प्रस्तुत आवेदन के निपटारे के लिये न्यायालय को केवल उस दिवस को प्रतिवादी की अनुपस्थिति जिस दिन एक पक्षीय कार्यवाही को गई, बाबत् पर्याप्त आधार पर विचार करना होगा। प्रतिवादी का पूर्व आचरण ऐसे आवेदन के निस्तारण हेतु ध्यान नहीं देने योग्य है।

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि एक पक्षीय डिक्री को अपास्त किये जाने के लिये प्रस्तुत आवेदन पत्र को खारिज किये जाने के आदेश के विरुद्ध आदेश 43 नियम 1(घ) के अन्तर्गत अपील की जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 227 के अन्तर्गत याचिका संधारण योग्य नहीं है पर (4) विरोधी पक्षकार को सूचना - नियन 14 के अनुसार आवेदन प्राप्त होने पर उसकी सूचना विरोधी पक्षकार तामील की जावेगी। तामील होने के बाद ही ऐसे आवेदन का निपटारा किया जा सकेगा, पहले नहीं। यदि सूचना (नोटिस) की तामील हो जाने पर वह विरोधी पक्षकार उपस्थित होकर कोई आक्षेप (एतराज) करता है, तो उसे सुनवाई का अवसर देने के बाद ऐसे आवेदन का निपटारा किया जा सकेगा।

आवेदक द्वारा बताये गये पर्याप्त कारण या तामील को अवैधता आदि पर विचार करने के बाद यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है, तो वह एकपक्षीय डिक्री या आदेश को उस सीमा तक अपास्त करेगा, जहां तक वह डिक्री उस प्रतिवादी (आवेदक) के विरुद्ध है, और-

(क) न्यायालय में खर्च जमा कराने के बारे में या अन्य कोई निबंधनों (शर्तों) के बारे में, जो न्यायालय लगाना ठीक समझे-न्यायालय आदेश में उनको सम्मिलित करेगा, और- (ख) इसके इसके बाद में की आगे की कार्यवाही करने के लिए अगली पेशी का दिन नियत करेगा।

वाद एकपक्षीय डिक्री जब अपास्त नहीं को जा सकती-

जहां कई प्रतिवादी हों और इस नियम के 4. अधीन आवेदन एकबप्रतिवादी ने ही किया हो, तो यह उस आवेदक के विरुद्ध अपास्त नहीं की जा सकती हो, तो ऐसी स्थिति में वह डिक्री जैसा न्यायोचित हो, सभी या उनमें से किसी या किन्हीं प्रतिवादियों के विरुद्ध भी अपास्त की जा सकेगी।

संविदा 1 की विशिष्ट अनुपालना के बाद में डिक्री को अपास्त करवाने हेतु प्रार्थना-पत्र काफी देरी से प्रस्तुत किया गया, जबकि डिक्री की जानकारी पूर्व से हो पक्षकार को थी। प्रार्थना-पत्र सही निरस्त किया गया।

एक पक्षीय डिक्री को अपास्त करवाने के लिए वादपत्र के पक्षकारों के अलावा, जिसका प्रकरण से कोई वास्ता नहीं हो, उसके आवेदन पर डिक्री अपास्त नहीं की जा सकती है। समन की तामील में हुई अनियमितता के आधार पर एक पक्षीय कार्यवाही अपास्त नहीं की जा सकती।

द्वितीय परन्तुक- समन की तामील में अनियमितता का प्रभाव - एकपक्षीय डिक्री को केवल इस आधार पर अपास्त नहीं किया जावेगा कि समन की तामील में अनियमितता हुई थी; यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि-

(1) प्रतिवादी को सुनवाई की तारीख की सूचना थी, और

(2) प्रतिवादी के पास उपस्थित होने तथा वादी के दावे का लिखित-कथन देने के लिए पर्याप्त समय था। इन दो बातों को अभिलेख पर साबित करना होगा, जिसके लिए विपक्षी (वादी) द्वारा शपथ पत्र या अन्य साक्ष्य, जब हो, न्यायालय के समक्ष पेश करने होंगे। यह भार वादी पर होगा कि वह इन दो बातों के लिए न्यायालय आवश्यक हो, करवाये। यह नया परन्तुक 1976 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।

अपील का प्रभाव (स्पष्टीकरण)- यह स्पष्टीकरण 1976 में इस उद्देश्य से जोड़ा गया था कि एकपक्षीय डिक्री का निर्णय हो जाने पर आदेश 9, नियम 13 के अधीन आवेदन करने का निषेध उस मामले पर लागू नहीं किया जाए जिसमें अपील को वापस ले लिया (प्रत्याहृत) गया है। अतः यदि कोई प्रतिवादी एकपक्षीय डिक्री कें विरुद्ध फाइल की गई अपील का प्रत्याहरण करता है, उसे वापस ले लेता है, तो भी वह आदेश 9 नियम 13 के अधीन उस एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने के लिये न्यायालय में आवेदन कर सकेगा। परन्तु अन्य मामलों में यदि अपील का किसी अन्य आधार पर निपटारा हो जाता है, तो एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने के लिए आवेदन चलने योग्य नहीं होगा

एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध प्रतिवादी को उपचार -

आदेश 9, नियम 6 के अधीन पारित एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध एक प्रतिवादी को निम्नलिखित तीन उपचार हैं-

1. धारा 96(2) के अधीन एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध अपील

2. आदेश 47, नियम 1(ङ) के अधीन उस निर्णय का पुनर्विलोकन (रिव्यू) और

3. आदेश 9, नियम 13 के अधीन एकपक्षीय आदेश या डिक्री को अपास्त करने के लिए आवेदन

ये तोनों उपचार समानान्तर उपलब्ध हैं, किन्तु स्पष्टीकरण द्वारा अब इस पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया है कि अपील का किसी भी आधार पर (सिवाय अपील वापस लेने के) निपटारा हो जाने के बाद आदेश 9 नियम 13 के अधीन आवेदन चलने योग्य नहीं होगा।

आदेश 9 नियम 13 के अधीन आवेदन पर जांच की परिधि ऐसे आवेदन पर न्यायालय द्वारा जांच को परिधि दो बातों तक सीमित होती है-

(1) समन की तामील सम्बन्धी प्रश्न, और

(2) जब वाद की सुनवाई की गई, उस समय प्रतिवादी के अनुपस्थित रहने का कोई पर्याप्त कारण था या नहीं। इस प्रकार यह एतराज कि मुख्य वाद में अवयस्कों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं किया गया।

ऐसे आवेदन में नहीं उठाया जा सकता। यदि ऐसे आधार पर डिक्री को अपासत कर दिया गया तो विचारण न्यायालय ने तात्विक अनियमितता की है, जिसे पुनरीक्षण में सही किया जा सकता है। एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने के लिए न्यायालय को पक्षकारों के आचरण एवं स्पष्टीकरण पर विचार करना चाहिए उनके गलत प्रतिरक्षा पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

रविन्द्र सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध प्रतिवादी को निम्न उपचार उपलब्ध है-

1. एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करवाने के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सकता है।

2. पुनर्विलोकन (Review) के लिए आवदेन कर सकता है।

3. अपील पेश कर सकता है।

4. यह कहते हुए दावा कर सकता है कि नोटिस को तामील कपटपूर्वक तरीके से दबा दी गई है।

यदि किसी प्रकरण में सुनवाई के दिन प्रतिवादी अनुपस्थित रहता है और न्यायालय आदेश 17 नियम 2 के अन्तर्गत आदेश पारित करते हुए आदेश 9 के अन्तर्गत एक पक्षीय डिक्री पारित करता है तो प्रतिवादी एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करवाने हेतु आदेश 9 नियम 13 के प्रावधानों के अनुसार आवेदन कर सकता है।

एक पक्षीय डिक्री पारित हुई एक पक्षीय डिक्री को पृथकवाद के द्वारा इस आधार पर चुनौती दी कि डिक्री कपट द्वारा प्राप्त की गई है, विचारण न्यायालय ने वादपत्र को पोषणीय नही मानते हए खारिज कर दिया कि प्रार्थी को आदेश 9 नियम 13 के अन्तर्गत आवेदनपत्र या धारा 96 के अन्तर्गत अपील प्रस्तुत करनी चाहिए थी विचारण न्यायालय का मत सही नहीं, न्यायालय को प्रार्थी द्वारा लगाये गये आरोपों की जांच करनी चाहिए थी।

वाद को खारिज (निरस्त) करना आदेश 9, नियम 13 का लागू होना- न्यायालयों में मतभेद - एक ऐसे मामले में जहां प्रतिवादी के अधिवक्ता द्वारा की गई स्थगन देने की प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई और न्यायालय ने वाद को डिक्री कर दिया, क्या आदेश 9, नियम 13 लागू होता है? इस प्रश्न पर इलाहाबाद व मद्रास उच्च न्यायालयों ने अलग अलग मत व्यक्त किया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय' ने अभिनिर्धारित किया है कि ऐसा आदेश, आदेश 17 के नियम 2 के अधीन था और निर्णय गुणागुण पर आधारित था। अतः प्रतिवादी के लिए उचित उपचार एक अपील फाइल करना था, न कि आदेश 9, नियम 13 के अधीन आवदेन करना। मद्रास उच्च न्यायालय ने भी इसी के समान निर्णय दिया है।

एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने के आदेश का प्रभाव (1) यदि इस नियम के अधीन एक एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने पर मूलवाद पुनःस्थापित हो जाता है। इसी प्रकार एक वाद समन को कपट द्वारा दबाने के कारण यदि एकपक्षीय डिक्री को अपास्त किया जाता है, तो भी यह मूलवाद पुनःस्थापित हो जाएगा, परन्तु यदि एक एकपक्षीय डिक्री केवल समन का कपट से छिपाने दबाने के आधार पर ही अपास्त नहीं की गई, वरन् उसमें मूल दावे को भी कपटपूर्ण होने का आधार भी सम्मिलित था, तो ऐसे वाद को पुनःस्थापित या पुनःविचारित नहीं किया जा सकता।

क्योंकि यह प्रश्न कि क्या वादी का मूलवाद में प्रतिववादी के विरुद्ध डिक्री प्राप्त करने का अधिकार है, पूर्वन्याय के सिद्धान्त से वर्जित हो गया। उपरोक्त प्रश्न पर अनेकों निर्णयों पर विचार किया गया है और यह अभिनिर्धारित हुआ कि जब एक एकपक्षीय डिक्री को एक अलग (स्वतंत्र) वाद में समन की तामील में कपट करने के आधार पर अपास्त किया गया है, तो मूलवाद पुनर्जीवित हो जाएगा, परन्तु उस समय यह पुनर्जीवित नहीं हो सकेगा, जब वह दावे को असत्यता के आधार पर भी अपास्त किया गया हो।

प्रश्न यह है कि वह मामला किस श्रेणी में आता है, इसका निर्णय अभिवचन, विवाद्यक (वाद-प्रस) तथा निर्णय पर विचार करके हो किया जाएगा।

जमा (निक्षेप) के लिए निर्देश पुनः जीवित - एक बेदखली के वाद में बिहार भवन (पट्टा, किराया और बेदखली) नियंत्रण अधिनियम 1947 को धारा 11 क के अधीन किराया जमा कराने का निर्देश दिया गया। इसके बाद उस वाद को एकतरफा डिक्री कर दिया गया, किन्तु उसे आदेश 9, नियम 13 के अधीन पुनःस्थापित कर दिया गया। ऐसी स्थिति में, किराया जमा कराने का उपरोक्त आदेश पुनः जोवित हो गया।

जब दूसरा वाद सक्षम - बेदखली के पहले वाद में एक एकपक्षीय डिक्री पारित कर दी गई। इसके बाद दूसरे वाद में उस एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कर दिया गया, क्योंकि उसमें झूठा दावा था और वाद को आगे न चलाने का राजीनामा (करार) था, जिसे छिपाया गया था। अभिनिर्धारित कि पहली डिक्री को हराने से वह वाद पुनर्जीवित नहीं हुआ। अतः बेदखली का दूसरा वाद सक्षम था।

साक्ष्य का मूल्य व उपयोग- जब एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कर दिया गया और प्रतिवादी मामले की सुनवाई में पुनः (दुबारा) उपस्थित होने में असफल रहता है, तो क्या मूल सुनवाई में लेखबद्ध किए गए साक्ष्य के आधार पर एक नई डिक्री पारित की जा सकती है। इस प्रश्न पर मतभेद है। एक मत के अनुसार ऐसी डिक्री पारित नहीं की जा सकती, क्योंकि एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने से उसके पहले लेखबद्ध किया गया साक्ष्य अग्रहणीय हो जाएगा।

दूसरा मत जो इससे अच्छा माना गया वह यह है कि ऐसा साक्ष्य ग्राह्य होगा, क्योंकि वह अभिलेख का ही अंग है और प्रतिवादी गवाहों को प्रतिपरीक्षा कर सकेगा और खण्डन के लिए अपनी साक्ष्य दे सकेगा। अतः उस साक्ष्य के आधार पर एक नई डिक्री पारित की जा सकेगी।

एकपक्षीय डिक्री अपास्त किए जाने से पूर्व अभिलिखित किसी साक्षी के साक्ष्य को पुनः अभिलेखबद्ध करना आवश्यक है, बशर्ते कि उक्त साक्ष्य को एकपक्षीय डिक्री अपास्त किए जाने के पश्चात् प्रतिपरीक्षा के लिए पेश किया गया हो। यदि एकपक्षीय डिक्री अपास्त किए जाने के पश्चात् प्रतिवादी उस साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने के अवसर का लाभ उठाने से इन्कार करता है या प्रतिवादी उस मामले की पुनः सुनवाई होने के समय फिर से अनुपस्थित रहता है तो एकपक्षीय डिक्री अपास्त किए जाने से पूर्व अभिलिखित साक्ष्य, डिक्री पारित करने के प्रयोजनार्थ साक्ष्य के रूप में समझा जा सकता है।

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