CJI ने इलाहाबाद HC के जज जस्टिस शुक्ला के खिलाफ CBI को FIR दर्ज करने की अनुमति दी

Update: 2019-07-31 16:05 GMT

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दे दी है।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) के तहत दर्ज होगी FIR
मंगलवार को CJI रंजन गोगोई ने CBI को इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ पीठ के जज न्यायमूर्ति एस. एन. शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) के तहत FIR दर्ज करने की अनुमति दी है, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है।

3 HC के मुख्य न्यायाधीशों के एक पैनल ने पाया दोषी
दरअसल पूर्व CJI दीपक मिश्रा द्वारा जज के खिलाफ प्रारंभिक जांच का आदेश यूपी के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह की उस शिकायत पर दिया गया था, जिसमें जस्टिस शुक्ला पर गंभीर न्यायिक कदाचार का आरोप लगाया गया था। इन आरोपों की जांच के लिए 3 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के एक पैनल का गठन किया गया था, जिसने अंततः उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए छात्रों के प्रवेश की समय सीमा बढ़ाकर एक निजी मेडिकल कॉलेज को फायदा पहुंचाने का दोषी पाया।

पद से हटाने के लिए CJI ने लिखा था PM को पत्र
पैनल की रिपोर्ट देखने के बाद CJI मिश्रा ने उन्हें इस्तीफा देने या जल्दी सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहा था लेकिन न्यायमूर्ति शुक्ला ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसके बाद न्यायमूर्ति शुक्ला द्वारा वर्तमान CJI के समक्ष अपने न्यायिक कार्य को फिर से आवंटित करने का अनुरोध किया गया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इसके बाद CJI गोगोई ने न्यायिक अनियमितताओं और दुर्भावनाओं के कारण न्यायमूर्ति शुक्ला को उनके पद से हटाने के लिए संसद में एक प्रस्ताव लाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था।

"जांच के लिए एक नियमित मामला शुरू करने के लिए हूँ विवश"
आखिरकार मंगलवार को उन्होंने PCA के तहत न्यायमूर्ति शुक्ला के खिलाफ दुराचार और न्यायिक अनियमितताओं के आरोपों पर CBI को FIR दर्ज करने की अनुमति दी। CJI ने कहा, "मैंने उपरोक्त विषय पर आपके पत्र पर संलग्न नोट पर विचार किया है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, मैं जांच के लिए एक नियमित मामला शुरू करने की अनुमति देने के लिए विवश हूं।"

FIR दर्ज करने हेतु CJI की अनुमति है एक अनिवार्य शर्त
CJI ने यह कदम के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ और अन्य, 1991 SCC (3) 655 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के मद्देनजर उठाया है, जिसमें अदालत ने यह कहा था कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ CJI को सबूत दिखाए बिना और उनकी अनुमति के बिना FIR दर्ज नहीं हो सकती।विशेष रूप से किसी भी जांच एजेंसी ने वर्ष 1991 से पहले किसी उच्च न्यायालय के सेवारत जज की जांच नहीं की है इसलिए ये मामला अलग है।

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