भीमा कोरेगांव मामला : सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपांकर दत्ता ने आरोपियों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग किया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज जस्टिस दीपांकर दत्ता ने भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon Case) में आरोपी वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उन्हें जमानत देने से इनकार करने के खिलाफ दायर याचिकाओं को जस्टिस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। जैसे ही मामला लिया गया, जस्टिस दत्ता ने बताया की कि वे मामले की सुनवाई से अलग हो रहे हैं।
गोंजाल्विस का प्रतिनिधित्व करने वाली सीनियर वकील रेबेका जॉन ने सुप्रीम कोर्ट से मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने को कहा।
पीठ सोमवार यानी 16 जनवरी को मामले को लिस्ट करने पर सहमत हुई।
आदेश में कहा गया है,
"मामले को 16.01.2023 को एक बेंच के समक्ष लिस्ट किया जाता है। जस्टिस दीपांकर दत्ता बेंच के सदस्य नहीं हैं।"
जनवरी 2018 की भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में कथित माओवादी लिंक को लेकर गिरफ्तार किए जाने के बाद याचिकाकर्ता 28 अगस्त, 2018 से हिरासत में हैं।
उन्होंने दिसंबर 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने उन्हें डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था जबकि सह-आरोपी सुधा भारद्वाज को जमानत दी गई थी।
मई 2022 में, हाईकोर्ट ने उनकी डिफ़ॉल्ट जमानत से इनकार करने के आदेश पुनर्विचार की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस दत्ता उक्त अवधि के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे, हालांकि वह उस बेंच का हिस्सा नहीं थे जिसने उनकी जमानत याचिकाओं पर सुनवाई की थी।
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