अभियोजन पक्ष अपराध करने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला साबित करने में विफल रहा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पुराने हत्या के मामले में अभियुक्त को बरी करने का फैसला बरकरार रखा

Update: 2024-06-21 13:19 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पुराने हत्या के मामले में अभियुक्त को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि अभियोजन पक्ष अभियुक्त प्रतिवादी के अपराध की ओर ले जाने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा।

न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के प्रावधान को लागू करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि कोई तथ्य विशेष रूप से अभियुक्त के ज्ञान में था और यह देखा जाना चाहिए कि अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता के अपराध को सभी उचित संदेह से परे साबित करने के अपने प्रारंभिक दायित्व का निर्वहन किया है या नहीं।

जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने कहा:

“भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 की प्रयोज्यता पर विचार करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उक्त प्रावधान किसी भी तरह से अभियोजन पक्ष को सभी उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित करने से मुक्त नहीं करता है। अभियोजन पक्ष द्वारा यह सिद्ध किए जाने पर कि ऐसे तथ्यों के संबंध में भार अभियुक्त के विशेष ज्ञान में था तभी अभियुक्त पर उसे स्पष्ट करने का भार डाला जा सकता है।”

संक्षेप में मामला

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार गीता देवी नामक महिला की शादी अभियुक्त (कैलाश नाथ) से लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व हुई थी। आरोप है कि दहेज की मांग पूरी न होने पर अभियुक्तों ने 4-5 जुलाई 1982 की रात्रि में उसे उसके ससुराल में आग लगाकर मार डाला।

उक्त घटना के संबंध में गोपाल प्रसाद (पी.डब्लू.3) द्वारा लिखित सूचना दी गई कि रात्रि लगभग 2.30 बजे जब परिवार के सभी सदस्य भोजन करके सो गए थे, तो उन्होंने अचानक धुआं निकलते तथा मिट्टी के तेल की गंध आती देखी।

मृतका की कराह सुनकर उसकी मां दौड़ी और दरवाजा खोला तो देखा कि उसकी पुत्रवधू गीता देवी जलती हुई अवस्था में पड़ी हुई है।

उसकी मां द्वारा शोर मचाने पर वे भी मृतका के कमरे में पहुंचे और देखा कि उसकी भाभी जलने के कारण मर चुकी थी।

अपनी बेटी की मौत की सूचना मिलने पर मुन्नी लाल ने थाने में लिखित रिपोर्ट दर्ज कराई कि दहेज की मांग को लेकर हुए विवाद के कारण ससुराल वालों ने उसकी बेटी को आग लगाकर मार डाला है।

हालांकि मुकदमे की सुनवाई पूरी होने के बाद न्यायालय को इस मामले में आरोपियों के अपराध को साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला। ट्रायल कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों से भी कथित मकसद साबित नहीं हुआ।

ट्रायल कोर्ट ने आगे कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के आधार पर आरोपी-प्रतिवादी के अपराध को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है, हालांकि घटना उसके घर के चारों कोनों में हुई थी फिर भी उसके खिलाफ कोई विश्वसनीय निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका।

परिणामस्वरूप आरोपी को बरी कर दिया गया। इसके बाद राज्य ने हाईकोर्ट के समक्ष तत्काल अपील दायर की।

राज्य के लिए AGA का प्राथमिक तर्क यह था कि क्योंकि यह तथ्य साबित हो चुका है कि मृतका की मृत्यु उसके घर के चारों कोनों में हुई थी इसलिए आरोपी-प्रतिवादी पर यह स्पष्ट करने का दायित्व था कि पीड़िता की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई, जिसे आरोपी ने नहीं बताया।

इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि पीड़िता की मृत्यु उसके घर के चारों कोनों में हुई थी, इसलिए उसके खिलाफ साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान लगाया जा सकता है, इसलिए आरोपी प्रतिवादी को अपराध का दोषी माना जाना चाहिए।

राज्य के तर्क पर विचार करते हुए न्यायालय ने शुरू में साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 का अवलोकन किया और पाया कि केवल तभी जब अभियोजन पक्ष ने यह साबित कर दिया कि ऐसे तथ्यों के बारे में भार आरोपी के विशेष ज्ञान में था तभी उसे स्पष्ट करने का भार आरोपी पर डाला जा सकता है।

अब इस बात की जांच करते हुए कि क्या मुकदमे में पेश किए गए अभियोजन पक्ष के साक्ष्य अपीलकर्ता की अपराध में भागीदारी को साबित करते हैं, अदालत ने कहा कि चारों गवाहों में से किसी ने भी यह नहीं कहा कि अपीलकर्ता घटना के समय अपने घर पर या उसके आस-पास मौजूद था और किसी अन्य गवाह की जांच नहीं की गई थी जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता प्रासंगिक समय पर अपने घर पर या उसके आस-पास था।

अदालत ने कहा कि इसके अभाव में हमारी राय में साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि सभी मानवीय संभावनाओं के भीतर आरोपी द्वारा यह कृत्य तब किया गया होगा, जब घर में अन्य पुरुष सदस्य और नौकर मौजूद थे।

इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था और अभियोजन पक्ष आरोपी प्रतिवादी के अपराध की ओर ले जाने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा।

न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने उद्देश्य को निर्णायक रूप से साबित नहीं किया। बल्कि अभियोजन पक्ष ने उद्देश्य को स्थापित करने का कमजोर प्रयास किया, जो निर्णायक रूप से साबित नहीं हुआ।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश और फैसले को बरकरार रखा और राज्य की अपील को खारिज कर दिया।

केस टाइटल - उत्तर प्रदेश राज्य बनाम कैलाश नाथ

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