इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अतिरिक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के आरोपी आवेदक को जमानत दी
Amir Ahmad
4 March 2024 4:37 PM IST
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अतिरिक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के आरोपी आवेदक को जमानत दे दी, क्योंकि वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 (Goods and Service Tax Act, 2017) की धारा 70 और धारा 74 के तहत कार्यवाही लंबे समय से लंबित है।
जीएसटी अधिनियम की धारा 69 आयुक्त को अधिनियम की धारा 132 के तहत किसी भी अपराध करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी का आदेश देने की शक्ति देती है। धारा 132 में अपराधों की सूची और उनके लिए दंड का प्रावधान है। धारा 132(1)(ए) और 132(1)(बी) में धोखाधड़ी वाले चालान के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने से संबंधित अपराध का प्रावधान है। धारा 132(1)(i) के तहत ऐसे अपराध के लिए 5 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा दी जाती है।
जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 की धारा 132 के सपठित धारा 69 पर विचार करते हुए कहा,
“कानून के प्रावधानों और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि कमिश्नर को उचित राशि की वसूली करने और कार्यवाही को समाप्त करने का प्रस्ताव देने के लिए सक्षम जज पीयूष अग्रवाल को अनुमति दी गई। मुकदमे को समाप्त होने में अपना समय लगेगा, यह अदालत इसे उपयुक्त मामला मानती है, जहां आवेदक के पक्ष में विवेक का प्रयोग किया जा सकता है।"
पूरा मामला
आवेदक पर 2017-18 से 2022-23 तक 4,28,37,362/ रुपये से अधिक का इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने का आरोप है। उक्त आपूर्ति के जाली और काल्पनिक दस्तावेजों के आधार पर माल की वास्तविक आवाजाही के बिना विभिन्न गैर-मौजूदा फर्मों यानी संतोष एंटरप्राइजेज, संदीप मेटल, हनी मेटल और राजपाल एंड संस से खरीदारी की गई। आवेदक पर आरोप है कि आवेदक ने बिना किसी स्पष्टीकरण के 17,33,83,966 रुपये के ई-वे बिल रद्द कर दिये। साथ ही माल ले जाने वाले कथित ट्रकों का विवरण टोल प्लाजा रिकॉर्ड में नहीं पाया गया।
आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि उसे अपराध में झूठा फंसाया गया। यह प्रस्तुत किया गया कि आवेदक जीएसटी के तहत विधिवत रजिस्टर्ड फर्म का मालिक है और फर्मों की साख की जांच के बाद खरीदारी की गई। यह प्रस्तुत किया गया कि यह तथ्य कि ऐसे डीलर अभी भी जीएसटी विभाग के साथ रजिस्टर्ड हैं विवाद में नहीं है।
यह तर्क दिया गया कि आवेदक के व्यावसायिक परिसर के सर्वेक्षण के दौरान फर्म के खिलाफ कोई सामग्री नहीं मिली और धारा 74 के तहत जारी नोटिस का विधिवत जवाब दिया गया। हालांकि, धारा 74 के तहत कार्यवाही में कोई आदेश पारित नहीं किया गया और अधिकारियों ने 22-12-2023 को आवेदक को गिरफ्तार करने के लिए कार्रवाई की।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि धारा 70 धारा 74 और एफआईआर के तहत नोटिस की सामग्री समान है। हालांकि, जीएसटी डिपार्टमेंट के किसी अधिकारी द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई, लेकिन इंचार्ज इंस्पेक्टर स्पेशल टास्क फोर्स ने जीएसटी अधिनियम के तहत कार्यवाही को निरर्थक छोड़ दिया।
प्रति कॉन्ट्रा प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि आवेदक को जमानत नहीं दी जा सकती, क्योंकि माल की कोई वास्तविक आवाजाही नहीं है और नकली लेनदेन पर अतिरिक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया गया। तर्क दिया गया कि जिन फर्मों से लेनदेन दिखाया गया, वे फर्जी फर्म हैं। इसके अलावा यह प्रस्तुत किया गया कि आरएफआईडी टैग द्वारा माल की कोई आवाजाही नहीं दिखाई जा सकती, जिसे दिनांक 7-9-2018 की अधिसूचना के अनुसार ट्रकों की विंडशील्ड पर चिपकाया जाना था।
यह तर्क दिया गया कि जीएसटी अधिनियम आईपीसी या सीआरपीसी के प्रावधानों को निहित या स्पष्ट रूप से निरस्त नहीं करता।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने पाया कि यद्यपि धारा 70 और 74 के तहत कार्यवाही शुरू की गई, लेकिन किसी भी प्राधिकारी द्वारा कोई अंतिम निर्णय आदेश पारित नहीं किया गया। इसके अलावा, यह देखा गया कि न तो आवेदक की फर्म और न ही विक्रेताओं का रजिस्ट्रेशन रद्द किया गया।
न्यायालय ने संजय चंद्रा बनाम सीबीआई पर भरोसा जताया। उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि को जमानत देने पर विचार करते समय मुकदमे के समापन में देरी पर विचार करना महत्वपूर्ण है।
यह जोड़ा गया,
“यहां विभाग द्वारा अपनाई गई जांच की प्रक्रिया एकत्र किए गए सबूतों को ध्यान में रखते हुए मुकदमे में काफी समय लगेगा। अगर जमानत से इनकार किया जाता है तो आवेदक की न्यायिक हिरासत को सजा की वैधानिक अवधि से परे बढ़ाया जा सकता है, जो पांच वर्ष है।”
न्यायालय ने माना कि इनपुट टैक्स क्रेडिट के गलत लाभ के लिए सजा कारावास है, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। अधिनियम की धारा 132 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 69 के तहत जुर्माना लगाया जा सकता है। रजिस्टर्ड व्यक्ति के लिए हर दूसरा अपराध दंडनीय होगा। न्यायालय ने जीएसटी अधिनियम की धारा 138 पर भी भरोसा किया, जिसमें प्रावधान है कि सभी अपराधों का समझौता अभियोजन शुरू होने से पहले या बाद में किया जा सकता है, जब ऐसे व्यक्ति द्वारा भुगतान किया जाता है।
संजय चंद्रा मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भरोसा करते हुए कि अपराधों की गंभीरता अकेले आवेदक की जमानत की पात्रता का निर्णायक नहीं है।
अदालत ने आवेदक को जमानत दे दी।
केस टाइटल- क़मर अहमद काज़मी बनाम यूपी राज्य।
आवेदक के लिए वकील- अनूप त्रिवेदी, अंकित शुक्ला
विपक्षी पक्ष के वकील- मनीष गोयल, नितेश कुमार श्रीवास्त