बीते वर्ष 2018 के अहम फ़ैसले

LiveLaw News Network

3 Jan 2019 4:30 AM GMT

  • बीते वर्ष 2018 के अहम फ़ैसले

    अब जबकि साल 2018 ख़त्म हो चुका है हम इस बात पर ग़ौर करने जा रहे हैं कि बीता साल कैसे-कैसे क़ानूनी फ़ैसलों का साल रहा है।

    सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा इस साल अपने पद से सेवानिवृत्त हुए जबकि न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने उनकी जगह ली। दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने बहुत सारे अहम फ़ैसले दिए जो ऐतिहासिक रहे और विवादित भी, मसलन सबरीमाला मंदिर का फ़ैसला, आधार, समलैंगिकों का मामला, व्यभिचार जैसे फ़ैसले इसी श्रेणी मेंआते हैं। रफ़ाल पर नए मुख्य न्यायाधीश के वर्ष अंत के फ़ैसले ने काफ़ी ज़्यादा बहस को जन्म दिया।

    प्रस्तुत है ऐसे 35 महत्त्वपूर्ण फ़ैसलों की यह सूची जो सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 के दौरान दिए :-

    सबरीमाला

    भक्ति में लैंगिक भेदभाव नहीं हो सकता है। सबरीमाला में कोर्ट ने सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति 4:1 से दी। इस पीठ की एकमात्र महिला जज इन्दु मल्होत्रा ने बहुमत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपना फ़ैसला दिया। इस फ़ैसले की काफी दिनों से प्रतीक्षा की जा रही थी।

    [Indian Young Lawyer's Association & Ors. V. State of Kerala & Ors.]

    समलैंगिकता

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले से दो वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक सम्बन्धों को आपराधिक मानने वाले 157 साल पुराने क़ानून को अंततः समाप्त कर दिया।ऐसा करते हुए कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक क़रार दे दिया। यह फ़ैसला पाँच जजों की पीठ ने दिया।

    [Navtej Singh Johar& Ors. V. Union of India]

    आधार

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आधार अधिनियम की धारा 33(2), 47 और 57 को समाप्त कर दिया; इससे जुड़े राष्ट्रीय सुरक्षा के अपवाद को भी ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया और यह कि निजी क्षेत्र आधार डाटा की माँग नहीं कर सकता। इस फ़ैसके को पीठ के लिए न्यायमूर्ति एके सीकरी ने लिखा जिसे मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्राऔर एएम खानविलकर की सम्मति प्राप्त थी।

    [Justice K. S. Puttuswamy (Retd.) and Anr V Union of India & Ors.]

    व्यभिचार

    इस फ़ैसले से भी सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने इस क़ानून को समाप्त कर दिया। पीठ ने आईपीसी की धारा 497 को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया।इस क़ानून के द्वारा पति को किसी महिला का मालिक समझा जाता था। यह क़ानून व्यभिचार को ग़ैरक़ानूनी मानता था। हालाँकि, कोर्ट ने कहा है कि व्यभिचार को तलाक़ का आधार माना जाएगा। फ़ैसलेमें यह भी कहा गया कि अगर व्यभिचार के कारण पति या पत्नी आत्महत्या करने को उद्यत होते हैं तो व्यभिचार करने वाले पार्टनर को हत्या के लिए उकसाने के जुर्म में आईपीसी की धारा 306 के तहत सज़ा हो सकती है।

    [Joseph Shine V. Union of India]

    इच्छामृत्यु

    गरिमापूर्ण मौत का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, इस फ़ैसले ने इस बात को माना। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस फ़ैसले में इच्छामृत्यु को सही ठहराया और मृत्यपूर्व वसीयत बनाकर इस बारे में निर्देश देने की अनुमति भी दे दी और कहा कि यह क़ानूनी रूप से वैध होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि गरिमापूर्वक जीना एक मौलिकअधिकार है और इसी तरह भयानक रूप से गम्भीर बीमारी से ग्रस्त और जिसके ठीक होने की कोई संभावना अब नहीं है ऐसे व्यक्ति के मरने की प्रक्रिया को आसान बनाना भी इसका हिस्सा है।

    [Common Cause (A Regd. Society) V. Union of India & Anr]

    पदोन्नति में एससी/एसटी के लिए आरक्षण

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एससी/एसटी को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति देने के मामले में आरक्षण देने के लिए क्वांटिफिएबल डाटा की ज़रूरत नहीं होगी। इससे पहले 2006 में नागराज मामले में अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन्हें प्रोमोशन तभी दिया जा सकता है जब सरकार इनके पिछड़ेपन के बारे मेंक्वांटिफिएबल डाटा दे।पर कोर्ट ने इस मसले को किसी बड़ी पीठ को सौंपने से मना कर दिया। पाँच जजों की पीठ ने क्वांटिफिएबल डाटा की ज़रूरत को इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम के फ़ैसले के ख़िलाफ़ है।

    [Jarnail Singh v LachhmiNarain Gupta& Ors.]

    आईपीसी की धारा 498A

    सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A के दुरुपयोग को रोकने के लिए राजेश शर्मा मामले में जो दिशानिर्देश जारी किए थे उसमें संशोधन किया और 'कल्याणकारी समिति' की बात को अब नकार दिया। तीन जजों की पीठ ने पहले दिए गए दिशानिर्देश को वापस ले लिया जिसे दो जजों की पीठ ने जारी किया था और जिसमें कहा गया थाकि आईपीसी की धारा 498A के तहत की गई शिकायत पर पहले परिवार कल्याण समिति ग़ौर करेगी और उसके बाद ही आगे की क़ानूनी कार्रवाई होगी।

    [Social Action Forum For Manav Adhikar V. Union of India]

    हादिया

    इस चर्चित मामले में दिए गए अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपना धर्म बदलना इच्छानुरूप धर्म के चुनाव का मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने फ़ैसले में केरल हाईकोर्ट के फ़ैसले को उलट दिया जिसने हादिया और शफ़िन जहाँ की शादी को इस आधार पर अवैध क़रार दिया था कि शादी के लिए धर्म परिवर्तनकिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दोनों की शादी को ग़लत नहीं ठहरा सकता। हालाँकि, उसने NIA को इस मामले में अपनी जाँच जारी रखने को कहा।

    [Shafin Jahan V. Ashokan K. M. & Ors]

    अयोध्या

    अपने इस विवादास्पद मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि इस्माइल फ़ारूक़ी मामले में जो बातें कही गई हैं उसे भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के आलोक में देखा जाना चाहिए; कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अयोध्या के भूमि विवाद मामले में संगत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला 2:1 से दिया और अयोध्या-राम जन्मभूमि विवाद कोकिसी बड़ी पीठ को सौंपने से मना कर दिया। इस मामले में बहुमत के इस फ़ैसले को न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपने और मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के लिए लिखा पर एक अन्य जज न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपना फ़ैसला लिखा। बहुमत के फ़ैसले में कहा गया कि इस्माइल फ़ारूक़ी मामले में यह कहना किमस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के संदर्भ में समझा जाना चाहिए।

    [M. Siddiq (D) THR LRS..Mahant Suresh Das & Ors.]

    सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण

    कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण आम लोगों के हित में है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 145 के अधीन शीघ्र ही इसके लिए नियमों का निर्धारण किया जाएगा।

    [Swapnil Tripathi V. Supreme Court of India]

    रफ़ाल

    सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में हुए रफ़ाल लड़ाकू विमान सौदे की जाँच की अपील की याचिका अस्वीकार कर दी। अदालत ने इस सौदे से सम्बंधित किसी भी पक्ष जैसे, निर्णय लेने की प्रक्रिया, मूल्य निर्धारण और ख़रीद की प्रक्रिया की जाँच की अपील स्वीकार नहीं की।कोर्ट ने कहा कि किस एक व्यक्ति की सोच के आधार पर कोर्ट कोईनिर्णय नहीं ले सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी व्यक्तिगत तथ्यों या परिस्थितियों के आलोक में रक्षा ख़रीद के बारे में न्यायिक पुनरीक्षण का निर्धारण करना होगा।

    [Manohar Lal Sharma V. Narendra Damodar Das Modi & Ors.]

    भीड़ हिंसा (LYNCHING)

    कोर्ट ने भीड़ द्वारा देश भर में लोगों को मार दिए जाने की घटना की निंदा की और इस बारे में दिशानिर्देश जारी किए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा की भीड़ तंत्र की डरावनी गतिविधियों को देश में हावी होने की इजाज़त नहीं दी जा सकती हैं।

    [Tehseen S. Poonawalla V. Union of India & Ors.]

    पटाखे चलाने के बारे में

    कोर्ट ने पटाखा चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया; पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ ऐसे व्यापारी ही इसकी बिक्री कर सकते हैं जिनके पास लाइसेंस है। इसके अलावा कोर्ट ने उस समय का निर्धारण भी कर दिया जिसके बीच पटाखा छोड़े जा सकते हैं।

    [Arjun Gopal & Ors. V. Union of India & Ors.]

    बरी किए जाने के ख़िलाफ़ पीड़ित को अपील का अधिकार

    एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, एस अब्दुल नज़ीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि अपील की विशेष अनुमति लिए बिना ही कोई पीड़ित किसी आरोपी के बरी होने के ख़िलाफ़ अपील कर सकता है।

    [Mallikarjun Kodagali (Dead) ... vs The State Of Karnataka]

    इसरो के पूर्व वेज्ञानिक नांबी नारायण पर फ़ैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नांबी नारायण को ₹50 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति डीके जैन की अध्यक्षता में एक कमिटी का भी गठन कर दिया जिसे उनके ख़िलाफ़ साज़िश में पुलिस की भूमिका की जाँच का ज़िम्मा सौंपा गया। तीन जजों की पीठ ने उनकी याचिका परयह फ़ैसला सुनाया जिन्होंने अपने ख़िलाफ़ केरल पुलिस के शीर्ष अधिकारियों की साज़िश के विरुद्ध कार्रवाई करने की माँग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उनको यातना भी दी थी और उन्हें ग़ैर क़ानूनी ढंग से जेल में बंद कर दिया था।

    [S. Nambi Narayanan V. Siby Mathews &Ors.]

    जज लोया के मौत का विवाद

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जज लोया के मौत की जाँच कराने के बारे में दायर याचिका को ख़ारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएम खानविलकर की तीन जजों की पीठ ने सीबीआई के विशेष जज की मौत के इस मामले में दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुएइस मामले की स्वतंत्र जाँच की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी।

    [TehseenPoonawalla V. Union of India & Anr.]

    एलजी बनाम दिल्ली सरकार

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि दिल्ली के उप राज्यपाल को दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह के अनुरूप कार्य करना होगा। सिर्फ़ भूमि, पुलिस और आम व्यवस्था के मामले में ही उसको अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि एलजी हर मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ा सकता है।हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि एलजी को सरकार के निर्णय के बारे में बताना ज़रूरी है पर हर मामलों में एलजी की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं हैं। कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि दिल्ली 'राज्य' नहीं है और उसको संविधान के तहत विशेष अधिकार मिला हुआ है।

    [Govt. of NCT of Delhi V. Union of India & Anr.]

    छह माह से अधिक का स्थगन नहीं

    न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की पीठ ने कहा कि ऐसे सभी दीवानी और आपराधिक मामले में जिन पर स्थगन लगा हुआ है, आज से छह माह पूरे होने पर यह स्थगन स्वतः समाप्त हो जाएगा बशर्ते कि अपवाद स्वरूप किसी मामले में इसे आगे बढ़ाने का आदेश ना दिया हो।पीठ ने यहभी कहा कि अगर किसी मामले में भविष्य में स्थगन दिया जाता है तो यह भी छह महीने की अवधि के बीतने के साथ ही समाप्त हो जाएगा।

    [Asian Resurfacing of Road Agency Pvt. Ltd.& Anr. VS. Central Bureau of Investigation]

    जीएसटी की वैधता

    न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक भूषण की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को मुआवज़ा) अधिनियम, 2017 को वैध ठहराया। कोर्ट ने वस्तु एवं सेवा कर मुआवज़ा शुल्क नियम, 2017 को भी सही ठहराया।

    [Union of India & Anr. V. Mohit Mineral Pvt. Ltd.]

    एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग

    सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एके गोयल और यूयू ललित की पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने इस अधिनियम के प्रावधानों की पड़ताल के क्रम में कहा कि इस अधिनियम का दुरुपयोग रोकने के लिए अबसरकारी कर्मचारियों को पूर्व अनुमति के बिना इस अधिनियम के तहत गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता।

    [Dr. Subhash Kashinath Mahajan V. State of Maharashtra & Anr.]

    क़ानून बनाने वाले वक़ील

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने भाजपा नेता और वक़ील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर अपने फ़ैसले में सांसदों और विधायकों को वक़ील के रूप में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने से मना कर दिया

    [Ashwini Kumar Upadhyay V. Union of India & Anr.]

    उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराना

    सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़, और इन्दु मल्होत्रा की पाँच सदस्यों की पीठ ने कहा कि किसी उम्मीदवार के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले में आरोपपत्र दाख़िल होने के कारण उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है। पीठ ने यह फ़ैसलाभाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय, पूर्व सीईसी जेएम लिंग्दोह और एक एनजीओ पब्लिक इंट्रेस्ट फ़ाउंडेशन की जनहित याचिका पर दिया।

    [Public Interest Foundation & Ors. V. Union of India & Anr.]

    मुख्य न्यायाधीश रोस्टर का मास्टर

    अधिवक्ता शांतिभूषण की याचिका को ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश रोस्टर का मालिक है और उसे पीठों के गठन और केसों के बँटवारे का पूरा अधिकार है। शांतिभूषण ने सीजेआई के अधिकारों के विनियमन के बारे में याचिका दायर की थी।

    [Shanti Bhushan V. Supreme Court of India]

    एनडीपीएस का जाँच अधिकारी और सूचना देने वाला एक ही नहीं हो सकता

    सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की पीठ ने स्पष्ट किया कि एनडीपीएस मामले की जाँच करने वाला अधिकारी और उसके बारे में सूचना देने वाला अधिकारी अगर एक ही है तो आरोपी को बरी किए जाने का अधिकार है।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये दोनों ही अधिकारी एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता।

    [Mohan Lal V. State of Punjab]

    कठुआ

    कठुआ में आठ साल की एक लड़की के साथ हुए बलात्कार और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को पंजाब के पठानकोट सत्र न्यायालय में ट्रांसफ़र कर दिया। पहले इस मामले की सुनवाई जम्मू एवं कश्मीर ज़िला और सत्र अदालत में चल रही थी।

    [Mohd. Akhtar V. State of Jammu & Kashmir]

    पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए बंगला नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रियों के वेतन, भत्ते और अतिरिक्त प्रावधान, अधिनियम की धारा 4(3) में किए गए संशोधन को ग़ैर क़ानूनी क़रार दे दिया और पूर्व मुख्यमंत्रियों को इसके तहत बंगला देने के प्रावधान को समाप्त कर दिया। कोर्ट ने कहा की देश में किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री को बंगला प्राप्त करने का हक़ नहीं है।

    [Lok Prahari V. State of Uttar Pradesh & Ors.]

    भीमा कोरेगाँव

    सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की पीठ ने भीमा कोरेगाँव मामले में एसआईटी गठित करने की माँग को ख़ारिज कर दिया और कहा कि ये गिरफ़्तारियाँ सरकार की आलोचना की वजह से नहीं हुई हैं। इस मामले का फ़ैसला मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने किया जिसके अन्य सदस्य थे न्यायमूर्ति एएम खानविलकरऔर डीवाई चंद्रचूड़। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बहुमत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपना फ़ैसला दिया। इस मामले में याचिका प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वर्नॉन गान्सॉल्वेज़, अरुण फरेरा पी वरवर राव और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ दायर किया था। Not A Case Of Arrest For Dissent, Plea For SIT In BhimaKoregaon Case Turned Down By 2:1 M

    [Romila Thapar& Ors. Vs Union of India & Ors.]

    विदेशी विधि फ़र्म

    न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एक फ़ैसले में कहा कि विदेशी विधि फ़र्म भारत में अपना कार्यालय स्थापित नहीं कर सकते और न ही 'आते जाते हुए' अपने मुवक्किलों को क़ानूनी सलाह दे सकते हैं। पीठ ने केंद्र और बीसीआई को यह भी कहा कि वे इस बारे में नियम बनाएँ।

    [Bar Council of India V. A. K. Balaji& Ors.]

    कर छूट में अस्पष्टता

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि अगर कर छूट से संबंधित सूचना में किसी तरह की स्पष्टता है तो इसका लाभ राजस्व विभाग को मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कर में छूट के बारे में किसी भी सूचना को कठोरता से व्याख्या की जानी चाहिए और यह नियम किसके पक्ष में है यह साबित करने का ज़िम्मा करदाता की है।

    [Commissioner of Customs (Import), Mumbai vs. M/s. Dilip Kumar and Company]

    स्वतः ज़मानत

    अगर किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र मजिस्ट्रे ने किसी तकनीकी कारण से वापस कर दिया है तो उस स्थिति में आरोपी को स्वतः ज़मानत का अधिकार प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्यों की पीठ ने कहा कि कोई भी अदालत सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत रिमांड की अवधि को 90 दिनों से आगेनहीं बढ़ा सकता है। कोर्ट ने कहा की किसी भी कोर्ट को किसी भी व्यक्ति को 90 दिनों से अधिक समय तक बिना आरोपपत्र के जेल में बंद नहीं रख सकता।

    [Achpal @ Ramswaroop& Anr. V. State of Rajasthan]

    पेशेवर अदालत प्रबंधक

    सुप्रीम कोर्ट ने सभी मुख्य ज़िला और सत्र अदालतों में एमबीए डिग्रीधारी पेशेवर अदालत प्रबंधकों की नियुक्ति का निर्देश दिया है ताकि कोर्ट के प्रशासन को सक्षमता से चलाया जा सके। ।कोर्ट ने इस बात पर अफ़सोस ज़ाहिर की कि अदालतों में सुविधाओं के बारे में कोई ध्यान नहीं दिया गया है।

    [All India Judges Association & Ors. V. Union of India & Ors.]

    मौत की सजा के ख़िलाफ़ विशेष अनुमति याचिका

    न्यायमूर्ति एके सीकरी, अशोक भूषण और इंदिरा बनर्जी की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जिन मामलों में अभियुक्तों को मौत की सज़ा दी गई है उन मामलों में विशेष अनुमति याचिका को बिना कारण बताए ख़ारिज नहीं किया जा सकता।

    [BabasahebMarutiKamble V. State of Maharashtra]

    कम दृष्टता वाले एमबीबीएस

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने एक फ़ैसले में कहा कि जिन लोगों को काम दिखाई देता है उन्हें एमबीबीएस में बेंचमार्क विकलांगता कोटे के तहत प्रवेश देने से मना नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत ऐसे लोगों को प्रवेश दिए जाने का प्रावधान है और इसलिए भारतीय चिकित्सापरिषद ऐसे छात्रों को प्रवेश देने से माना नहीं कर सकता।

    [PurswaniAshutosh V. Unionof India & Ors.]

    आपराधिक सुनवाई में गवाहों से पूछताछ

    न्यायमूर्ति एएम सप्रे और इन्दु मल्होत्रा की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के एक निर्णय को निरस्त करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 231(2) के तहत गवाहों से पूछताछ पर स्थगन देते समय आरोपी के अधिकार और अभियोजन के विशेषाधिकार के बीच संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए।

    [State of Kerala V. Rasheed]

    कावेरी

    सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने कर्नाटक राज्य को 192 टीएमसी के बदले तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी का 177.25 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया। कोर्ट ने इस बारे में कर्नाटक की अपील मान ली।

    [State of Karnataka vs. State of Tamil Nadu]

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