सुप्रीम कोर्ट ने कहा, धारा 167(2) के तहत किसी भी अदालत को 90 दिनों के बाद हिरासत की अवधि बढ़ाने का अधिकार नहीं; आरोपपत्र को तकनीकी आधार पर वापस करने के बावजूद आरोपी को स्वतः जमानत का अधिकार [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

25 Sep 2018 5:25 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, धारा 167(2) के तहत किसी भी अदालत को 90 दिनों के बाद हिरासत की अवधि बढ़ाने का अधिकार नहीं; आरोपपत्र को तकनीकी आधार पर वापस करने के बावजूद आरोपी को स्वतः जमानत का अधिकार [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने सोमवार को कहा कि आरोपी सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत स्वतः ही जमानत का अधिकारी है भले ही उसके खिलाफ पुलिस की जार्चशीट को मजिस्ट्रेट ने तकनीकी कारणों से वापस कर दिया हो।

    कोर्ट ने यह भी कहा जिस अवधि तक जांच को पूरी की जानी है उस अवधि को बढ़ाने का अधिकार किसी भी अदालत को नहीं है।

    न्यायमूर्ति एएम सप्रे और यूयू ललित ने जयपुर स्थित हाईकोर्ट ऑफ जुडीकेचर के राजस्थान  पीठ  (एसबीसीआरएमबी नंबर 9035, 2018) द्वारा दिये गए फैसले की जांच कर रहे थे।

    तथ्य

    आवेदनकर्ता एक मामले में आरोपी नंबर एक और दो हैं जो आईपीसी की धारा 143, 341, 323, 452, 336, 302 के तहत दर्ज किया गया था। कुल 18 लोगों को इस मामले में नामजद किया गया था। इन लोगों को 8 अप्रैल 2018 को गिरफ्तार किया गया और समय समय पर उन्हें पुलिस और मजिस्ट्रेट की हिरासत में भेजा गया।

    बाद में शिकायतकर्ताओं ने हाईकोर्ट में निष्पक्ष जांच का आवेदन दिया जिस पर हाइकोर्ट ने 3 जुलाई 2018 को अपना फैसला सुनाया।

    90 दिन की मियाद के बीत जाने के बाद अपीलकर्ताओं ने धारा 167(2) के तहत जमानत की अर्जी दी पर न्यायिक अधिकारी ने इसे अस्वीकार कर दिया। यह कहा गया कि चूंकि 5 जुलाई 2018 को दायर चार्जशीट हाईकोर्ट द्वारा दिये गए आदेश के अनुरूप नहीं है, उसे तकनीकी आधार पर वापस कर दिया गया। यह भी कहा गया कि 3 जुलाई 2018 को हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया वह उस अवधि का विस्तार था जिसके तहत जांच पूरी की जानी चाहिए थी।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुद्दा

    जिस जांच के बाद 5 जुलाई 20178 को रिपोर्ट दर्ज की गई वह हाईकोर्ट के समक्ष दिये गए बयान के अनुरूप नहीं था, इसलिए इन दस्तावेजों को मजिस्ट्रेट ने वापस कर दिया। और यह सब 90 दिनों की समय सीमा के बीतने के पहले हुआ। तो क्या यह कहा जा सकता है कि धारा 167(2) के लिए जांच पूरी की गई ताकि आरोपी को इस प्रावधान का लाभ नहीं मिले। फिर दूसरा मुद्दा यह था कि हाईकोर्ट द्वारा दिया गया आदेश जांच पूरी हो जाने की अवधि को बढ़ाए जाने के भीतर दिया गया था, क्या ऐसा माना जा सकता है।

    वकील सिद्धार्थ दवे की दलील को कोर्ट ने माना कि 90वें दिन मजिस्ट्रेट के समक्ष कोई चार्जशीट नहीं पेश किया गया था ताकि वह स्थिति का आकलन कर सकें कि आरोपी को आगे और हिरासत में भेजा जाय की नहीं। कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में वकील दवे की दलील को स्वीकार किया जाता है।

    क्या हाईकोर्ट हिरासत की अवधि बढ़ा सकता है?

    पीठ ने कहा कि संहिता के प्रावधानों के तहत किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि जांच पूरी करने की अवधि को बढ़ा सके।

    “टीएडीए, 1985 और एमसीओसीए,1999 में जांच की अवधि को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है और इसके अनुरूप इन अधिनियमों में धारा167 सहित संहिता के प्रावधानों को संशोधित किया गया है। इस तरह के प्रावधानों के अभाव में किसी भी अदालत को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस तरह की अवधि को बढ़ाने का अधिकार नहीं है।

    दुबारा हिरासत में लेने का प्रावधान

    पीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता को उचित आधार पर गिरफ्तार करने या दुबारा हिरासत में लेने पर कोई पाबंदी नहीं है और इस तरह की स्थिति में अपीलकर्ता को नियमित जमानत के लिए अर्जी देने का अधिकार है।

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