कोर्ट की बुनियादी सुविधाएं दम तोड़ रही हैं, सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में एमबीए डिग्री वाले अदालत प्रबंधकों की नियुक्ति का दिया सुझाव [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

2 Aug 2018 2:47 PM GMT

  • कोर्ट की बुनियादी सुविधाएं दम तोड़ रही हैं, सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में एमबीए डिग्री वाले अदालत प्रबंधकों की नियुक्ति का दिया सुझाव [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने वृहस्पतिवार को कहा कि देश भर में अदालतों में बुनियादी सुविधाओं को ज्यादा तरजीह नहीं दिया गया और देश के दूर दराज के इलाकों में ये सुविधाएं दम तोड़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसी सुविधाओं को रेखांकित किया जिसे देश के सभी कोर्ट परिसरों में उपलब्ध कराया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सभी न्यायिक जिलों में एमबीए डिग्रीधारी अदालत प्रबंधकों की नियुक्ति की जानी है ताकि अदालत का प्रशासन सक्षमता से संचालित किया जा सके।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, “...अदालतीय बुनियादी सुविधाएं जिसे अगर नजरअंदाज नहीं किया गया है तो अपेक्षाकृत कम महत्त्व दिया गया है। इसमें रद्दोबदल करने की जरूरत है। महानगरीय शहरों और राज्य की राजधानियों को छोड़कर, कोर्ट की बुनियादी संरचनाएं विशेषकर देश के अंदरूनी इलाके में दम तोड़ रही हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इनमें से कुछ तो अंतिम सांसें गिन रही हैं”।

    पीठ कोर्ट परिसरों विशेषकर निचले कोर्ट परिसरों में बुनियादी संरचनाओं पर एक याचिका की सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने कहा कि 2011 में कोर्ट के आदेश के बाद काफी कुछ किया गया है पर ऐसी कई बातें हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। 2011 के फैसले में कोर्ट ने विभिन्न राज्यों से कहा था कि सरकारी जमीन कोर्ट के भवन के लिए क्यों नहीं उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

    गुरुवार को पीठ ने कहा, “हम समझते हैं कि इस बारे में निम्नलिखित निर्देश जारी करना उचित होगा:-

     (i) देश भर के अदालत परिसरों में निम्नलिखित बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जानी चाहिए। इनमें शामिल हैं मुकदमादारों और वकीलों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह, बैठने की व्यवस्था के साथ प्रतीक्षा करने के लिए पर्याप्त जगह जिसमें प्रकाश, बिजली, वातानुकूलन/एयर कूलिंग/उस जगह को गरम रखने की व्यवस्था, पीने के साफ़ पानी के लिए आरओ की सुविधा, महिलाओं, पुरुषों, ट्रांसजेंडर और दिव्यांगों के लिए अलग-अलग साफ़ और स्वच्छ शौचालय, खाने पीने की वस्तुओं की बिक्री के लिए किओस्क जिसको अगर संभव है तो कोर्ट के स्टाफ ही चलाएं। ये सुविधाएं देश भर के हर कोर्ट परिसर में उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अगर ये सुविधाएं कोर्ट परिसरों में नहीं हैं, तो इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

    (ii) देश भर के कोर्ट परिसर दिव्यांगों के लिए उपयुक्त हों, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। कोर्ट परिसर में ऐसे रैंप होने चाहिए जो दिव्यांगों के लिए मददगार हों और इस तरह की सुविधाएं पूरी तरह परखी गई हों। इस तरह के रैंप में रेलिंग होने चाहिएं। आम आदमी को कोर्ट परिसर में कहीं भी आने जाने में सुविधा हो इसके लिए पूरे कोर्ट परिसर का मानचित्र परिसर के प्रवेश और निकास द्वार पर होना चाहिए साथ ही स्पष्ट दिशा सूचक निर्देश भी होने चाहिएं।

    (iii) हर कोर्ट परिसर में लोगों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एक सहायता डेस्क होना चाहिए जिस पर बैठने वाले कोर्ट स्टाफ को पूर्ण प्रशिक्षित होना चाहिए ताकि वे ठीक तरह से लोगों को निर्देशित कर सकें।

     (iv) कोर्ट परिसर में पर्याप्त संख्या में केस डिस्प्ले करने वाले इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड होने चाहिएं और इसे लगातार अपडेट किया जाना चाहिए ताकि मुकदमादारों और वकीलों को इससे मदद मिल सके।

     (v) कोर्ट परिसर में पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए। नए विकसित होने वाले कोर्ट परिसरों में जमीन के नीचे और ऊपर जजों, कोर्ट स्टाफ, मुकदमादारों और वकीलों के लिए पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। मल्टीलेवल पार्किंग के विकल्प की भी तलाश की जानी चाहिए।

    (vi) कोर्ट परिसरों में प्रवेश और निकास की व्यवस्था में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए। बड़े परिवहन केंद्रों से कोर्ट परिसर तक आने के लिए परिवहन की व्यवस्था होनी चाहिए। अगर कोर्ट तक पहुँच आसान नहीं होगी तो लोगों को न्याय सुनिश्चित नहीं की जा सकती।

    (vii) कोर्ट प्रशासन में भीड़ प्रबंधन की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

    (viii) कोर्ट परिसर में वकीलों, बार एसोसिएशन के कर्मचारियों, वकीलों के क्लर्कों, रजिस्ट्री के स्टाफों के छह माह से छह साल तक के बच्चों के लिए क्रेच की व्यवस्था होनी चाहिए।

    (ix) पेशेवर अदालत प्रबंधकों की अवश्य ही नियुक्ति की जानी चाहिए और अगर वे एमबीए डिग्रीधारी हों तो ज्यादा बेहतर है। इस तरह के पद सभी न्यायिक जिलों में बनाए जाने चाहिएं ताकि वह कोर्ट प्रशासन में और प्रमुख जिला और सत्र जजों की मदद कर सकें।

    (x) न्यायिक अधिकारियों और कोर्ट स्टाफ के लिए पर्याप्त आवासीय व्यवस्था होनी चाहिए।

    (xi) सभी जिला अदालतों के परिसर में सौर ऊर्जा के पैनल लगाए जाने चाहिएं और इसके बाद इसको हर अदालत परिसर में लगाया जाना चाहिए।

    (xii) कोर्ट परिसर में महत्त्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिएं।

    (xiii) सभी जेलों में विडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा जितना जल्दी हो उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

    (xiv) जिला अदालत परिसर में पर्याप्त मेडिकल स्टाफ के साथ दवाखाने की व्यवस्था होनी चाहिए।

    पीठ ने कहा कि रजिस्ट्री को इन निर्देशों को प्रत्येक राज्य के मुख्य सचिवों को भेजना चाहिए जो एक कमिटी गठित करेगा जिसमें विधि सचिव भी शामिल होगा जो पीठ के निर्देशों को लागू करेगा।

    यह समिति हाईकोर्ट के एक अधिकारी को आमंत्रित करेगा जिसे संबंधित हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नामित करेगा जो स्थिति रिपोर्ट पेश करेगा जिसके बाद कोर्ट फिर उचित निर्देश जारी करेगा।

    अदालत विकास योजना 

    पीठ ने एक अदालत विकास योजना का सुझाव भी रखा और कहा कि इसके तीन हिस्से होंगे – लघु योजना (या वार्षिक); मध्य अवधि (या पांच वर्षीय); और एक दीर्घ अवधि (दस साल वर्षीय) की योजना।


     
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