झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई को सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया, ट्रायल में देरी पर नाराजगी जताई

LiveLaw News Network

25 April 2024 8:32 AM GMT

  • झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई को सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया, ट्रायल में देरी पर नाराजगी जताई

    झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई को राज्य के सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने हाल ही में जांच एजेंसी को हलफनामे के जरिए स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया।

    निर्देश कार्यवाहक चीफ जस्टिस श्री चन्द्रशेखर और जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने अश्वनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के संदर्भ में विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए स्वत: संज्ञान मामले में दिया।

    16.04.2024 के अपने आदेश में हाइकोर्ट ने असंतोष के साथ नोट किया था कि 04.04.2024 के पिछले आदेश के अनुपालन सीबीआई की ओर से दिए गए हलफनामें में सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की लंबितता के कारणों के संबध पर्याप्त औचित्य का अभाव था।

    अदालत ने सीबीआई की ओर से पेश की गई सफाई, जिसमें उसने सीमित अदालती संसाधनों, कानून अधिकारियों की कमी, मामलों की जटिलता और संवैधानिक अदालतों के स्थगन आदेश जैसे कारणों को गिनाया था, उस पर नाराजगी व्यक्त की और कहा था ये ट्रायल में विलंबर के लिए अपर्याप्त स्पष्टीकरण हैं।

    सीबीआई की ओर से दी गई सफाई पर अपना असंतोष व्यक्त करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की थी,

    “16 अप्रैल 2024 के हलफनामे में, तथाकथित चुनौतियों के समाधान के लिए सीबीआई द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में कोई जिक्र नहीं है। हम यह भी बता सकते हैं कि 5 जनवरी 2022 को इस न्यायालय ने झारखंड राज्य में लंबित मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए सीबीआई द्वारा उठाए गए कदमों पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। झारखंड राज्य की ओर से भी कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली है, जिसने कम से कम पिछले डेढ़ वर्षों में स्थिति रिपोर्ट प्रदान नहीं की है।''

    अदालत ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 309 की व्याख्या की, जिसमें प्रावधान है कि आपराधिक अदालत में हर जांच या सुनवाई तब तक दिन-ब-दिन जारी रहेगी जब तक कि उपस्थित सभी गवाहों की जांच नहीं हो जाती।

    विशेष रूप से, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 309 के तहत एक विशेष शर्त है कि मुकदमे की कार्यवाही अगले दिन के लिए स्थगित की जा सकती है और वह भी, न्यायालय द्वारा दर्ज किए जाने वाले कारणों के सा‌थ। धारा 309 के तहत प्रावधान त्वरित सुनवाई के लिए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक आरोपी का मौलिक अधिकार है। कानून में प्रावधान अभियोजन की भी रक्षा करता है क्योंकि अभियुक्त द्वारा गवाहों के साथ छेड़छाड़ की संभावना कम हो जाती है।

    अदालत ने रेखांकित किया, “यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मुकदमे के दौरान लंबे स्थगन के कारण गवाहों को धमकी दी जाती है और आरोपियों के खिलाफ गवाही न देने के लिए मजबूर किया जाता है। यह भी एक निर्विवाद स्थिति प्रतीत होती है कि लंबे अंतराल के कारण गवाह, भले ही ईमानदार हों, स्मृति हानि या इसी तरह के किसी अन्य कारण से अभियोजन का समर्थन नहीं कर पाते हैं।''

    कोर्ट ने कहा, “संक्षेप में, हम बस यह कहेंगे कि अभियोजन एजेंसी एक वैधानिक कर्तव्य के तहत है और भारत का संविधान भी इसे मामलों के शीघ्र और शीघ्र निस्तारण के लिए सभी त्वरित और आवश्यक कदम उठाने का आदेश देता है। हमारी राय में, गलती करने वाले अधिकारी की पहचान करने का समय आ गया है ताकि अभियोजन एजेंसी की ओर से ढिलाई पर शुरुआत में ही अंकुश लगाया जा सके।''

    अदालत ने दो प्रमुख मुद्दों- मुकदमे में गवाहों की व्यवस्था करना और एक लापता आरोपी व्यक्ति का पता लगाने के लिए कार्रवाई करना- को संबोधित करने वाली योजना प्रस्तुत करने के लिए समय देने के लिए मामले में सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है।

    मामले की अगली सुनवाई अब 8 मई को तय की गई है।

    केस टाइटलः न्यायालय अपने स्वयं के प्रस्ताव पर बनाम झारखंड राज्य और अन्य


    16.04.2024 के आदेश को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

    04.04.2024 के आदेश को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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