मां-बेटी को 30 घंटे से अधिक समय तक अवैध हिरासत में रखने के लिए 3 लाख रुपये का मुआवजा दे राज्य सरकार: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Amir Ahmad

22 April 2024 8:41 AM GMT

  • मां-बेटी को 30 घंटे से अधिक समय तक अवैध हिरासत में रखने के लिए 3 लाख रुपये का मुआवजा दे राज्य सरकार: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मां-बेटी को 30 घंटे से अधिक समय तक अवैध हिरासत के लिए 3 लाख रुपये का मुआवजा दे।

    चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने अंजू लाल (मां/रिटायर्ड स्कूल टीचर) और दीक्षा लाल (बेटी) द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।

    पूरा मामला

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे निजी प्रतिवादी (के.के. जगदे) के पड़ोसी हैं और आम सड़क शेयर करते हैं। निजी प्रतिवादी ने कथित तौर पर इस सड़क के आधे हिस्से पर अतिक्रमण कर लिया, जिससे याचिकाकर्ताओं को परेशानी हो रही है।

    जवाब में याचिकाकर्ताओं ने राजस्व अधिकारियों से विभिन्न शिकायतें और अभ्यावेदन किए। हालांकि इसका कोई नतीजा नहीं निकला। अंत में 16 सितंबर, 2023 को लगभग 12:30 बजे, पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर निजी प्रतिवादी के साथ मिलकर याचिकाकर्ताओं को उनके निवास स्थान से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पुलिस स्टेशन ले गए।

    उन्हें गिरफ़्तारी का कारण बताए बिना किस अपराध के तहत और कानूनी सहायता प्राप्त करने या गिरफ़्तारी के बारे में अपने रिश्तेदारों को सूचित करने के अधिकार के बारे में बताए बिना अलग कमरे में अवैध हिरासत में रखा गया।

    पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शाम 5:00 बजे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया और याचिकाकर्ताओं को एक घंटे तक प्रतीक्षा करने का निर्देश दिया। इसके बाद उन्हें सेंट्रल जेल बिलासपुर भेज दिया गया।

    याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि यदि आवश्यक हो तो जमानत बांड प्रस्तुत करने की उनकी इच्छा के बावजूद पुलिस अधिकारियों ने इसे स्वीकार करने से अवैध रूप से इनकार कर दिया और इसके बजाय उन्हें जेल में डाल दिया।

    उनके वकील ने तर्क दिया कि इस कार्रवाई ने न केवल याचिकाकर्ताओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत गरिमा का उल्लंघन किया, बल्कि उन्हें पुलिस अत्याचारों का भी सामना करना पड़ा है।

    इसके अलावा, अगले दिन 17 सितंबर, 2023 को शाम 6:00 बजे के आसपास याचिकाकर्ताओं को उनके मेडिकल चेकअप, कानूनी सहायता, गिरफ़्तारी के कारण की जानकारी या जमानत के बारे में जानकारी दिए बिना अवैध हिरासत से रिहा कर दिया गया।

    अवैध गिरफ्तारी के साथ-साथ 30 घंटे की अवैध हिरासत के लिए मुआवजे की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि पुलिस अधिकारियों ने याचिकाकर्ताओं की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ किया और याचिकाकर्ताओं और उनके परिवार को आघात, दर्द और अपमान का सामना करना पड़ा।

    वहीं दूसरी ओर राज्य के वकील ने बेंच के समक्ष प्रस्तुत किया कि महिला अधिकारियों सहित पुलिस कर्मचारियों ने पक्षों (याचिकाकर्ता और निजी प्रतिवादी) के बीच विवाद को सुलझाने के लिए घटनास्थल पर हस्तक्षेप किया।

    अपने हस्तक्षेप के दौरान याचिकाकर्ताओं ने शिकायतकर्ता को अभद्र भाषा में मौखिक रूप से गाली दी और पुलिस कर्मियों के साथ भी अभद्र व्यवहार किया। बढ़ती अप्रिय स्थिति के कारण याचिकाकर्ताओं को सीआरपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया गया और 16 सितंबर 2023 को दोपहर 3:30 बजे पुलिस स्टेशन ले जाया गया।

    इसके बाद उन्हें सिटी मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया, जहां सीआरपीसी की धारा 116 (3) के तहत कार्यवाही शुरू की गई। शांति भंग होने या किसी अपराध को होने से रोकने के लिए मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ताओं को 25,000 रुपये का बांड भरने तथा इतनी ही राशि प्रतिभूति के रूप में जमा करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष निर्दिष्ट बांड भरने में विफल रहे, इसलिए उन्हें मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार जेल भेज दिया गया। इसके बाद अगले दिन जब याचिकाकर्ताओं ने बांड और प्रतिभूतियां जमा कर दीं तो उन्हें रिहा कर दिया गया।

    हाइकोर्ट की टिप्पणियां

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने शुरू में ही टिप्पणी की कि जांच अधिकारी किसी भी परिस्थिति में कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते। न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि संवैधानिक न्यायालय पीड़ा और अपमान को ध्यान में रखते हुए मुआवजा देने के हकदार हैं।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "गिरफ्तारी और हिरासत के संबंध में निर्धारित मानदंडों और प्रक्रिया से विचलन, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और पीड़ित व्यक्ति को उचित मुआवजे का हकदार बनाता है।"

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जिसके खिलाफ संज्ञेय या गैर-जमानती अपराध का मामला नहीं बनता। ऐसे व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जा सकता।

    यही नहीं सीआरपीसी की धारा 107 की उपधारा (1) के अधिदेश को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि जब भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट को उपधारा (1) के तहत ऐसे व्यक्ति के बारे में सूचना मिलती है, जिस पर जनता की शांति भंग करने, सार्वजनिक शांति को भंग करने, सार्वजनिक सद्भाव को खतरा पैदा करने या कोई गलत कार्य करने का संदेह है तो उसे यह बताना होगा कि उसे बांड निष्पादित करने का आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए।

    वर्तमान मामले में न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों/राज्य ने ऐसे अधिदेश का पालन नहीं किया।

    उन्होंने कहा,

    "उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया, इसलिए याचिकाकर्ता उचित मुआवजा पाने के हकदार हैं।”

    न्यायालय ने याचिकाकर्ता नंबर 1, जो रिटायर्ड टीचर है, उसको 1,00,000/- रुपये और याचिकाकर्ता नंबर 2 को 2,00,000/- रुपये का मुआवजा देना उचित समझा। कोर्ट ने उक्त आदेश यह देखते हुए दिया कि वह अविवाहित लड़की है और बी.ई. (सिविल), एमएसडब्ल्यू और बी.एड. की योग्यता रखने वाली इंजीनियर बनने की इच्छुक है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है।

    न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश की प्रमाणित कॉपी प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर याचिकाकर्ताओं से संपर्क करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल– अंजू लाल और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य

    Next Story