आरोपी को तलब करने के लिए शिकायत में लगाए गए आरोपों से बना प्रथम दृष्टया मामला ही पर्याप्त: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

27 April 2024 8:47 AM GMT

  • आरोपी को तलब करने के लिए शिकायत में लगाए गए आरोपों से बना प्रथम दृष्टया मामला ही पर्याप्त: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को तलब करने के लिए शिकायत में लगाए गए आरोपों के आधार पर बनाया गया प्रथम दृष्टया मामला और शिकायतकर्ता की ओर से तलब किए जाने से पहले दिए गए साक्ष्य पर्याप्त हैं।

    हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए, जिसने समन जारी करने को रद्द कर दिया था, जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने पाया कि निचली अदालतों ने मिनी-ट्रायल में प्रवेश करके समन जारी करना रद्द करने में गलती की है, जैसे कि दोषसिद्धि या बरी होने के निष्कर्षों को दर्ज किया जाना था। अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी को तलब करने के लिए शिकायत के आरोपों से बना प्रथम दृष्टया मामला ही समन जारी करने का आदेश देने के लिए पर्याप्त है।

    शिकायत के अनुसार, फोन पर अपनी पहली शादी की फर्जी तलाक की डिक्री पेश करके प्रतिवादी नंबर 1/महिला ने अपीलकर्ता/पुरुष को यह विश्वास दिलाया कि उसने अपने पहले पति को तलाक दे दिया, जिससे वह दोबारा शादी करने के योग्य हो गई।

    अदालत ने पाया कि निचली अदालतों ने कुछ तथ्यों पर ध्यान न देकर गलती की है, जैसे कि जाली डिक्री पारित करना और अपीलकर्ता को मोबाइल पर उसकी जाली प्रति दिखाना, जो अपीलकर्ता के आरोपों पर उत्तरदाताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी के साथ उन्हें समन जारी करने के लिए प्रथम दृष्टया धारा 420 के तहत मामला बनता है।

    खंडपीठ ने कहा,

    “सेशन जज इस तथ्य को समझने में विफल रहे कि उसके बाद कुछ घटनाएं घटी थीं, अर्थात् अपीलकर्ता को तलाक के आदेश के पारित होने के बारे में सूचित करना और उसकी जाली प्रति उसे मोबाइल पर दिखाना। सेशन कोर्ट ने सम्मन आदेश के विरुद्ध पुनर्विचार पर विचार किया है, जैसे कि ट्रायल के बाद दोषसिद्धि या दोषमुक्ति के निष्कर्षों को दर्ज किया जाना था। यह समन का प्रारंभिक चरण था। किसी आरोपी को समन करने के लिए प्रथम दृष्टया मामला शिकायत में लगाए गए आरोपों और शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए समन-पूर्व साक्ष्यों के आधार पर बनाया जाना चाहिए।''

    जस्टिस राजेश बिंदल द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि उत्तरदाताओं को समन रद्द करते समय सेशन कोर्ट को सबूतों की सराहना में इस तरह शामिल नहीं होना चाहिए, जैसे कि वह उत्तरदाताओं को बरी करने या दोषी ठहराने का फैसला कर रहा हो।

    प्री-समनिंग चरण में सबूतों की इस तरह की सराहना की निंदा करते हुए अदालत ने माना कि आईपीसी की धारा 120-बी सपठित धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध के लिए उत्तरदाताओं के खिलाफ मुकदमे का सामना करने के लिए प्रक्रिया जारी करने का प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

    तद्नुसार अपील स्वीकार की गई। हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेशों को रद्द कर दिया गया और मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन को बहाल कर दिया गया।

    केस टाइटल: अनिरुद्ध खानवलकर बनाम शर्मिला दास और अन्य

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