28 साल पुराने आपराधिक मामले के लंबित होने का हवाला देकर पुलिस अधिकारी की पदोन्नति का मामला सीलबंद लिफाफे में नहीं रखा जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

30 March 2024 9:34 AM GMT

  • 28 साल पुराने आपराधिक मामले के लंबित होने का हवाला देकर पुलिस अधिकारी की पदोन्नति का मामला सीलबंद लिफाफे में नहीं रखा जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस अधिकारी को राहत दी, जिनकी पदोन्नति का मामला उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ 28 साल पहले दर्ज कथित रूप से मनगढ़ंत आपराधिक मामले की लंबितता का हवाला देते हुए सीलबंद लिफाफे में रोक दिया गया।

    जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अधिकारी विजय कुमार पुंज (डीएसपी, सीआईडी-भोपाल) के लिए हानिकारक सरकार की कार्रवाई उचित नहीं है। अदालत ने निर्देश दिया कि अब तक सीलबंद लिफाफे में रखी गई विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की सिफारिशों को आपराधिक मामले के नतीजे के अधीन खोला जाना चाहिए और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    “उपरोक्त शर्त के साथ यह निर्देश दिया जाता है कि सीलबंद लिफाफा खोला जाए और यदि याचिकाकर्ता डीपीसी की सिफारिशों के अनुसार पदोन्नति के लिए उपयुक्त पाया जाता है तो उक्त सिफारिशों पर इस शर्त के साथ कार्रवाई की जाएगी कि यदि पदोन्नति दी जाती है तो उस आपराधिक मामले के परिणाम के अधीन होगी।”

    जबलपुर में बैठी पीठ ने कहा कि उक्त कार्य विभाग द्वारा 60 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।

    इसमें कहा गया कि थाना जीयनपुर, जिला आज़मगढ़ का आपराधिक मामला नंबर 300/1996, जो वर्तमान में 6 वें अतिरिक्त और जिला सत्र न्यायाधीश, जिला आज़मगढ़ के समक्ष लंबित है, याचिकाकर्ता अधिकारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 364 और 342 के तहत अपराध के लिए 1996 में दर्ज किया गया। यह मामला कथित तौर पर उत्तर प्रदेश में असामाजिक तत्व के इशारे पर दर्ज किया गया, जब अधिकारी, हबीबगंज में तैनात उप-निरीक्षक के रूप में कई आपराधिक मामलों में आरोपियों का पता लगाने के लिए प्रतिनियुक्त खोज दल का हिस्सा था।

    आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद भी यह कहा गया कि अधिकारी को निरीक्षक के रूप में पदोन्नत किया गया। हालांकि, लंबित कार्यवाही याचिकाकर्ता की संभावनाओं के लिए बाधा बन गई, जब डीपीसी पदोन्नति पर विचार करने के लिए फिर से बुलाई गई। केस लंबित होने का हवाला देकर डीपीसी ने उनका नाम सीलबंद लिफाफे में रख लिया, जबकि उनके जूनियर्स को बिना किसी परेशानी के प्रमोशन दे दिया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील मनोज कुमार चंसोरिया ने अदालत से उमेश प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य एवं अन्य (2022) के इसी तरह के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर विचार करने का आग्रह किया। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह रुख अपनाया कि केवल आपराधिक मामले का लंबित होना और इस तथ्य के साथ कि अधिकारी को सेवा में बने रहने की अनुमति दी गई और पदोन्नति भी दी गई, पदोन्नति से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।

    कोर्ट ने नीरज कुमार पांडे बनाम यूपी राज्य और अन्य (2022) के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसने उस अधिकारी को राहत देना उचित समझा, जो 1996 में बदमाशों को पकड़ने के लिए नामित खोज दल का सदस्य था।

    इससे पहले, अदालत ने डीजीपी से पूछा कि अकेले याचिकाकर्ता अधिकारी के साथ राज्य द्वारा भेदभाव क्यों किया गया, जबकि याचिकाकर्ता के साथ आरोपी के रूप में सूचीबद्ध तीन अन्य पुलिस अधिकारियों को पदोन्नति दी गई। बाद में अदालत के समक्ष प्रस्तुत हलफनामे में डीजीपी ने कहा कि संबंधित डीपीसी को आपराधिक मामले की लंबितता के बारे में जानकारी नहीं थी और अन्य तीन अधिकारियों को भी 'गलत तरीके से पदोन्नत' किया गया। हालांकि, अदालत पुलिस डायरेक्टर जनरल द्वारा प्रचारित कहानी से पूरी तरह आश्वस्त नहीं।

    अदालत ने दिनांक 21.02.2024 को दिए अपने पहले के आदेश में कहा था,

    “इस विवाद का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि विभाग उत्तर प्रदेश राज्य को लिख रहा है कि याचिकाकर्ता और अन्य को स्थानीय गुंडे आजम खान, जो राजनीतिक रूप से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, के कहने पर झूठा फंसाया गया, लेकिन तथ्य यह है कि मामला यह है कि विभाग ने इस मामले की जांच करने की जहमत नहीं उठाई कि जब उनके अनुमान के अनुसार यह गलत फंसाने का मामला है, तो उत्तर प्रदेश पुलिस के स्तर पर क्या कार्रवाई की गई।”

    केस टाइटल: विजय कुमार पुंज बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य।

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