जानिए संपत्ति-अंतरण अधिनियम के अंतर्गत 'संपत्ति' का अर्थ और इसकी प्रमुख विशेषताएं

SPARSH UPADHYAY

23 Nov 2019 8:00 AM GMT

  • जानिए संपत्ति-अंतरण अधिनियम के अंतर्गत संपत्ति का अर्थ और इसकी प्रमुख विशेषताएं

    संपत्ति का वास्तविक अर्थ बहुत व्यापक है। इसमें न केवल मूर्त (Tangible) वस्तुएं शामिल हैं (जैसे भूमि, आवास या दुकान इत्यादि), बल्कि आय या स्रोत के तत्व के रूप में माने जाने वाली तमाम अमूर्त (Intangible) संपत्तियां भी शामिल हैं (जैसे बौद्धिक सम्पदा)। गौरतलब है कि 'संपत्ति' शब्द के अर्थ के अंतर्गत, केवल मूर्त या अमूर्त वस्तुएं ही नहीं आती हैं, बल्कि इसके अंतर्गत उन मूर्त एवं अमूर्त वस्तुओं से सम्बंधित किसी व्यक्ति विशेष के अधिकार एवं हित भी आते हैं।

    सामान्य अर्थ में, संपत्ति कोई भी भौतिक या आभासी इकाई है, जो किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा संयुक्त रूप से स्वामित्व के अंतर्गत होती है। संपत्ति के बिना मानव जीवन संभव नहीं है। इसके आर्थिक, सामाजिक-राजनीतिक, कभी-कभी धार्मिक और कानूनी निहितार्थ होते हैं। किसी वस्तु के स्वामित्व का विचार, और कुछ नहीं, बल्कि कानून द्वारा निर्मित एवं समर्थित अधिकारों का एक बण्डल है। इस विचार का मूल अर्थ, किसी 'चीज़' पर किसी व्यक्ति का नियंत्रण होना है।

    रायचंद गुलाबचंद बनाम दत्तात्रेय शंकर मोटे एवं अन्य (1963) 65 BOMLR 510 के मामले में यह कहा गया था कि 'संपत्ति' शब्द अपने सबसे व्यापक अर्थों में किसी व्यक्ति के सभी कानूनी अधिकारों को शामिल करता है, हालाँकि उसके व्यक्तिगत अधिकारों को इसके अंतर्गत शामिल नहीं किया जाता, जो उसकी व्यक्तिगत स्थिति का गठन करते हैं।

    संपत्ति का स्वामित्व (Ownership of Property)

    जब हम संपत्ति की बात करते हैं तो हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि किसी संपत्ति पर किसी व्यक्ति का या तो पूर्ण या सीमित अधिकार हो सकता है। जहाँ सम्पूर्ण अधिकार का अर्थ हम आगे समझेंगे, वहीँ किसी संपत्ति पर सीमित अधिकार के उदाहरण पट्टा (Lease), किराएदारी (Rent) एवं बंधक (Mortgage) हो सकते हैं। वहीँ जब किसी व्यक्ति का किसी संपत्ति पर सम्पूर्ण अधिकार होता है तो ऐसे स्वामी (Owner) में, उस संपत्ति से जुड़े मुख्यतः 3 अधिकार निहित हो जाते हैं – प्रथम, संपत्ति के स्वामित्व (Ownership) का अधिकार, संपत्ति पर कब्जे (Possession) एवं उसके उपयोग (Enjoyment) का अधिकार एवं मनचाहे ढंग से संपत्ति से अलगाव (Alienation) का अधिकार।

    इसके अलावा जब यह कहा जाता है कि किसी व्यक्ति का किसी संपत्ति पर सम्पूर्ण स्वामित्व (Absolute Ownership) है तो उसका मतलब यह होता है कि उसके पास ऊपर बताये गए सभी अधिकार हैं। पूर्ण स्वामित्व, अधिकारों का एक समूह है, जिसमें तमाम अधिकार/हित, जैसे कब्जे का अधिकार, भूमि का आनंद लेने का अधिकार, और इसी तरह उससे जुड़े लाभ उठाने का अधिकार आदि का समागम होता है। यह सब हित एवं अधिकार, मिलकर एक पूर्ण स्वामित्व का निर्माण करते हैं।

    सीमित अधिकार का अर्थ यह होता है कि जब किसी व्यक्ति को किसी वस्तु से सम्बंधित, सीमित अधिकार दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी मकान के मालिक हैं, तो आपमें उस मकान से जुड़े तमाम अधिकार निहित होते हैं, जैसे कि मकान को बंधक में देने का अधिकार, उसे किराए पर देने का अधिकार, उसे बेचने का अधिकार, उसमे रहने का अधिकार इत्यादि। यदि आपका यह घर दो मंजिल का हो और आप उसकी एक मंजिल को किराये/लीज पर देते हैं, तो जो व्यक्ति उसे लीज पर लेता है, वह उस संपत्ति में सीमित अधिकार प्राप्त करता हैं, मसलन वह व्यक्ति उसकी एक मंजिल का इस्तेमाल कर सकता है, जिसके बदले वह आपको कुछ धनराशी देता है। इस उदाहरण में आपके पास मकान से सम्बंधित तमाम अधिकार निहित थे, जिसमे से एक अधिकार का अंतरण आपने अन्य व्यक्ति के पक्ष में कर दिया।

    संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत 'संपत्ति'

    जैसा कि संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत 'संपत्ति' शब्द को लागू किया गया है उसे समझना महत्वपूर्ण है। अधिनियम के अंतर्गत संपत्ति, न केवल मूर्त भौतिक चीज़ों, जैसे, भूमि और मकानों से सम्बंधित है, बल्कि उसके साथ ही यह उन अधिकारों को भी समाहित करता है, जो किसी वस्तु को लेकर प्रयोग नहीं किए जाते हैं, उदाहरण के लिए, एक ऋण वापस प्राप्त करने का अधिकार। अधिनियम के अंतर्गत मुख्यतः स्थावर संपत्ति (Immovable Property) की बात की गयी है। हालाँकि इसका यह मतलब नहीं है कि जंगम संपत्ति (Movable Property) इस अधिनियम का विषय नहीं है।

    संपत्ति अंतरण अधिनियम के सामान्य सिद्धांत, यानी धारा 5 - 37 जंगम और स्थावर, दोनों संपत्तियों के ऊपर समान रूप से लागू हैं। इसी तरह, संपत्ति के दान (Gift) से संबंधित कानून भी दोनों प्रकार की संपत्तियों के लिए लागू है।

    अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, "स्थावर संपत्ति" में खड़ा काष्ठ, उगती फसलें या घास शामिल नहीं है। इस प्रकार, इस शब्द को 'कुछ चीजों को छोड़कर' अधिनियम में परिभाषित किया गया है। वहीँ जनरल क्लाज एक्ट 1897 की धारा 3 (26) के अनुसार, "स्थावर संपत्ति" में भूमि शामिल होगी, भूमि से उत्पन्न होने वाले लाभ और पृथ्वी से जुड़ी चीजें या स्थायी रूप से पृथ्वी से जुड़ी किसी भी चीज को शामिल किया जाएगा।" स्थावर संपत्ति की यह परिभाषा भी संपूर्ण नहीं है।

    गौरतलब है कि "इमारतें" स्थावर संपत्ति का निर्माण करती हैं और अगर मशीनरी, इसके लाभकारी उपयोग के लिए भवन में एम्बेडेड है, तो वह भवन का एक हिस्सा है और इसे भी उस भूमि के साथ स्थावर संपत्ति माना जाना चाहिए जिस पर इमारत स्थित है।

    यह साफ़ है कि अधिनियम में संपत्ति शब्द की कोई परिभाषा नहीं दी गयी है, परन्तु अधिनियम में इस शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में किया गया है। संपत्ति का अर्थ, व्यक्ति द्वारा किसी वस्तु/संपत्ति (मूर्त एवं अमूर्त) में रखे जाने वाले हितों का समागम है। चूंकि स्वामित्व (Ownership) में, अधिकारों की श्रृंखला निहित होती है, इसलिए एक ही मूर्त/अमूर्त संपत्ति में विभिन्न अधिकारों और हितों को विभिन्न व्यक्तियों में निहित किया जा सकता है, जैसे एक बंधककर्ता और एक बंधकदार, एक पट्टाकर्ता-पट्टेदार या किरायेदार।

    अंत में, हमने इस लेख में यह समझा कि संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत संपत्ति शब्द का संबंध, वस्तुओं भर से नहीं है बल्कि एक व्यक्ति का उस वस्तु से क्या सम्बन्ध है (अधिकार/हित), यह भी 'संपत्ति' की विषय वस्तु है। हमने भौतिक वस्तु से व्यक्ति के जुड़े हुए अधिकारों के बण्डल के रूप में 'संपत्ति' शब्द को समझा और जाना। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 6 में यह कहा गया है कि किसी भी प्रकार की संपत्ति अन्तरित की जा सकती है, लेकिन यह न तो सभी प्रकार की संपत्ति के बारे में बात करती है और न ही सभी प्रकार की संपत्ति को इसमें शामिल करना संभव है।

    हमने यह भी जाना कि अन्य कानून भी "संपत्ति" शब्द का उपयोग करते हैं, लेकिन उनमे इसके लिए कोई व्यापक परिभाषा नहीं दी गयी है। यह कहना उचित होगा कि संपत्ति शब्द को परिभाषित करना संभव नहीं है, क्योंकि आर्थिक मूल्य रखने वाली हर वस्तु, या विभिन्न प्रकार के हित या अधिकार को "संपत्ति" के अर्थ के तहत शामिल किया जा सकता है।

    स्रोत

    जी. पी. त्रिपाठी, संपत्ति अंतरण अधिनियम (सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन)

    http://www.legalservicesindia.com/article/502/Definition-&-concept-of-property.html

    आर. के. सिन्हा, संपत्ति अंतरण अधिनियम (सेंट्रल लॉ एजेंसी)

    http://www.legalserviceindia.com/legal/article-522-transferable-and-non-transferable-property.html

    पूनम प्रधान सक्सेना, प्रॉपर्टी लॉ (लेक्सिस नेक्सिस)

    https://www.srdlawnotes.com/2018/03/kinds-of-property-property-law.html

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