सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 166: आदेश 30 नियम 3 के प्रावधान

Shadab Salim

15 April 2024 4:38 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 166: आदेश 30 नियम 3 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 30 फर्मों के अपने नामों से भिन्न नामों में कारबार चलाने वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके विरूद्ध वाद है। जैसा कि आदेश 29 निगमों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है इस ही प्रकार यह आदेश 30 फर्मों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 30 के नियम 3 पर विवेचना की जा रही है।

    नियम-3 तामील - जहां व्यक्तियों पर भागीदारों के नाते उनकी फर्म की हैसियत में वाद लाया जाता है वहां समन की तामील न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले निदेश के अनुसार या तो -

    (क) भागीदारों में से किसी एक के या अधिक पर की जाएगी, अथवा

    (ख) उस प्रधान स्थान में जिसमें 51 [भारत] के भीतर का कारबार चलता है, किसी ऐसे व्यक्ति पर की जाएगी जिसके हाथ में वहां भागीदारी के कारबार का नियंत्रण या प्रबन्ध तामील के समय है, और ऐसी तामील के बारे में यह समझा जाएगा कि जिस फर्म पर वाद लाया गया है उस पर वह सही तामील है, चाहे सभी भागीदार या उनमें से कोई भारत के भीतर या बाहर हो : परन्तु ऐसी भागीदारी की दशा में जिसके बारे मे वादी का वाद संस्थित करने से पहले ही यह जानकारी हो कि वह विघटित की जा चुकी है, समन की तामील भारत के भीतर ऐसे व्यक्ति पर की जाएगी जिसे दायी बनाना चाहा गया है।

    यह भागीदारों के विरुद्ध उनके फर्म के नाम से वाद करने पर ही लागू होता है। यह फर्मों पर तामील करने का एक विशेष तरीका बताती है, जो फर्मे भारत में कारबार करती है, चाहे उनके भागीदार भारत के भीतर या बाहर निवास करते हों।

    तामील के तरीके - (1) इस नियम द्वारा अधिकृत एक तरीका यह है कि-एक या अधिक भागीदारों पर समन की तामील की जावे। यह एक अच्छी तामील होगी यदि वह भागीदार पर उसके व्यापार के मुख्य स्थान पर करवाई जाए, न कि उसके निजी-निवास पर।

    (2) दूसरा तरीका है कि भागीदारी के व्यापार के मुख्य स्थान पर व्यापार के व्यवस्थापक (मैनेजर) पर समन की तामील करवाई जाये।

    यदि इन दोनों में एक तरीके से समन नहीं करवाई गई, तो वह अनियमित होगी। जब फर्म का विघटन हो बार, तो तामील का एक मात्र तरीका खण्ड (क) के अधीन उसके भागीदार को तामील करवाना होगा।

    फर्म के भागीदार के एजेंट पर की गई समन की तामील उचित तामील (सेवा) मानी गई। फर्म के नाम से समन तामील करने के लिए वादी को न्यायालय से निदेश प्राप्त करना आवश्यक है। फर्म के विशिष्ट व्यक्ति या भागीदार या कारबार के प्रबन्धक के व्यक्तिगत नाम में समन भेजे जाने चाहिए। मात्र फर्म के नाम पर रजिस्ट्री डाक द्वारा समन भेजना पर्यात तामील नहीं कही जा सकती।

    भागीदारी का विघटन, जब वाद संस्थित होने के पहले हो जाए जहां विघटन का पता हो, तो वहां बाहर जाने वाले भागीदार को दायी नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि उस पर सम्मन तामील नहीं करवा दिया गया हो। यदि वादी को वाद संस्थित करते समय फर्म के विघटन का पता न हो, तो उस वाद में की डिक्री सभी भागीदारों को आबद्ध करेगी, चाहे उनको व्यक्तिगत रूप से समन तामील हुए हों या नहीं।

    व्यवस्थापक पर तामील नियन 3 (ख) में शब्दावली जिसके हाथ में भागीदारी के कारबार का नियंत्रन या प्रबंध तामील के समय हो का प्रयोग किया गया है, परन्तु एक व्यवस्थापक (मैनेजर) का ऐसा होना आवश्यक नहीं है, क्योंकि ये दोनों शब्दावलियाँ पर्यायवाची नहीं हैं।

    भागीदार की मृत्यु का प्रभाव जहां एक फर्म के विरुद्ध वाद किया गया हो, और भागीदारों में से एक पर तामील हो गई हो और उसके बाद उसकी मृत्यु हो जाये, परन्तु इसके अज्ञानवश यदि प्रारंभिक डिक्री पारित हो जाय, तो ऐसी डिक्री सभी भागीदारों को आबद्ध करेगी।

    जब कानूनन समन की तामील नहीं हुई आदेश 5 नियम 19 क में यह भी प्रावधान रखा गया है कि न्यायालय नियम 9 से 19 तक में उपबन्धित रीति से तामील करने के लिए समन निकालने के साथ ही साथ यह भी निर्देश देगी कि समन की तामील प्रतिवादी को या तामील का प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त उसके अभिकर्ता को सम्बोधित रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वारा उस स्थान पर की जावे, जहां प्रतिवादी या उसका अभिकर्ता वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारोबार करता है। इसका मतलब यह हुआ कि समन आर्डिनरी प्रोसेज के अलावा रजिस्ट्री से भी जारी किए जा सकते हैं।

    परन्तु वर्तमान केस में सम्मन सिर्फ रजिस्ट्री से भेजे गये थे तथा आर्डिनरी प्रोसेस से नहीं भेजे गये उन पर पोस्टमैन की दो रिपोर्ट हैं- पहली रिपोर्ट में लिखा गया है कि बार बार जाने और इतला देने पर भी नहीं मिलता है। यह रिपोर्ट बाद में काटी हुई है और अन्य रिपोर्ट इस प्रकार की गई है- ए.डी. रिफ्यून्ड।

    आदेश 30 नियम 3 में प्रावधान है कि यदि पोस्टमैन रजिस्टर्ड लिफाफे पर रिपोर्ट करे कि प्रतिवादी या उसके ऐजेन्ट ने समन लेने से इन्कार कर किया, तो कोर्ट यह पोषित करेगी कि प्रतिवादी पर समन की तामील सम्यक रूप से हो गई।

    इस केस में देखा जावे, तो प्रतिवादी नम्बर के नाम से जो रजिस्टर्ड लिफाफा भेजा गया, उस पर पोस्टमैन की यह रिपोर्ट नहीं है कि उस लिफाफे को प्रतिवादी या उसके ऐजेन्ट ने लेने से इन्कार कर दिया। आदेश 30 नियम 3 जैसा कि ऊपर लिखा गया है, समन की तामील जब फर्म पर करानी होती है, तो यह तामील या तो उसके भालीदार पर हो सकती है एवं उस प्रधानस्थल में जिसके भीतर भागीदारी का कारोबार चलता है, किसी ऐसे व्यक्ति पर भी हो सकती है, जिसके हाथ में भागीदारी का कारोबार चलता है, या किसी ऐसे व्यक्ति पर भी हो सकती है, जिसके हाथ में भागीदारी के कारोबार का नियंत्रण या प्रबंध हो, जैसा कि कोर्ट की फाइल को देखने से पता चलता है कि- अधीनस्थ न्यायालय ने पहले तो समन रजिस्ट्री से भेजने का कोई आदेश नहीं दिया था और बिना अदालत के आदेश के समन रजिस्ट्री से भेजे गये थे।

    समन जब रजिस्ट्री से भेजे गये तो, उनके साथ-साथ आर्डिनसरी प्रोसेज (साधारण ठरीके) से समन जारी नहीं किये गये थे, जैसा कि आदेश 5 नियन 10 (ए) में प्रावधान है। इसके अलावा रजिस्ट्री समन प्रतिवादी फर्म तथा उसके भागीदारों के नाम से भेजे गये थे। प्रतिवादी फर्म को जो रजिस्ट्री से समन भेजे गये उस लिफाफे पर पोस्टमैन ने यह नहीं लिखा कि इस रजिस्टर्ड लैटर को लेने से किसने मना किया, जब कि आदेश 9 नियम 19-क (2) सी.पी.सी. में यह प्रावधान है कि यदि पोस्टमैन रजिस्टर्ड लिफाफे पर यह रिपोर्ट करे कि-प्रतिवादी ने या उसके एजेन्ट ने जब उसको रजिस्टर्ड लेटर सौंपा गया, तो उसने लेने से मना किया, तो अदालत समन की तामील काफी मानेगी, परन्तु पोस्टमैन की रिपोर्ट से यह जाहिर नहीं होता है कि-समन प्रतिवादी फर्म की तरफ से किसने लेने से इन्कार किया।

    प्रतिवादी फर्म कोई व्यक्ति नहीं है। उसकी तरफ से समन उसके भागीदार ले सकते हैं या जैसा कि ऊपर लिखा गया है, ऐसा व्यक्ति जो प्रधान स्थल पर फर्म के कारोबार का नियन्त्रण करता है, वह भी ले सकता है। परन्तु किस व्यक्ति ने समन लेने से इन्कार किया, यह पोस्टमैन की रिपोर्ट में नहीं है।

    इसी कारण यह लिखना भी उचित होगा कि फर्म के भागीदारान को रजिस्ट्री से समन भेजे गये थे जिनकी तामील अधीनस्थ न्यायालय ने ना-काफी मानकर उनके नाम से दुबारा समन जारी करने के आदेश दिये, इसका मतलब यह है कि-फर्म के भागीदार, जो कि प्रतिवादी नं. 2 व 3 हैं, ने समन लेने से इन्कार नहीं किया। इस प्रकार मेरे विचार से प्रतिवादी फर्म पर तामील कानूनन नहीं मानी जा सकती। जब प्रतिवादी नं. 1 पर समन की तामील ही विधिपूर्वक नहीं हुई, तो उसके विरुद्ध डिक्री, आदेश 37, नियम 2 (3) के तहत पारित नहीं की जा सकती।

    उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि की समीक्षा आदेश 21, नियम 50 (1) तथा आदेश 30, नियम 3 की समीक्षा करते हुए उच्चतम न्यायालय ने विधि का इस प्रकार विवेचन किया है-

    उक्त उपबंधों का सारांश इस प्रकार कहा जा सकता है कि फर्म के विरुद्ध डिक्री निष्पादित की जा सकती है- (i) उस भागीदारी की सम्पत्ति के विरुद्ध, (D) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध, जो बाद में व्यक्तिगत रूप से अपने स्वयं के नाम से उपसंजात हुआ और आदेश 30 के नियम 6 या 7 के अधीन नोटिस की उस पर तामील करवा दी गई थी, (iii) ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिसने अपने अभिवचन में यह स्वीकार कर लिया हो कि वह भागीदार निर्मात किया गया है। या (iv) ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिस पर नोटिस व्यक्तिगत रूप से भागीदार के रूप में तामील हो गया है, परन्तु वह उपसंजात होने में असफल रहा। फर्म के विरुद्ध डिक्री ऐसे व्यक्तियों की निजी (परसनल) सम्पत्ति के विरुद्ध निष्पादित की जा सकती है।

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