बासदेव बनाम पेप्सू राज्य 1956 : मामला विश्लेषण

Himanshu Mishra

17 April 2024 12:56 PM GMT

  • बासदेव बनाम पेप्सू राज्य 1956 : मामला विश्लेषण

    परिचय

    भारतीय कानूनी इतिहास के इतिहास में, कुछ मामले न केवल अपने कानूनी प्रभाव के लिए बल्कि अपने गहरे सामाजिक प्रभाव के लिए भी चमकते हैं। इनमें से, बासदेव बनाम पेप्सू राज्य मामला न्याय की खोज और निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों के लिए एक प्रमाण के रूप में खड़ा है। यह ऐतिहासिक मामला, जो भारत की आजादी के बाद शुरुआती वर्षों में सामने आया, ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता और प्राकृतिक न्याय के सार के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाए।

    केस सारांश

    मामला, जिसे एयर 1956 एससी 488 के रूप में दर्ज किया गया है, हरिगढ़ गांव के एक सेवानिवृत्त सैन्य जमादार बासदेव के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसने खुद को मघर सिंह नाम के एक युवा लड़के की हत्या का आरोपी पाया। यह घटना दूसरे गांव में एक शादी समारोह के दौरान हुई, जहां बासदेव अन्य ग्रामीणों के साथ एकत्र हुए थे। उत्सव और शराब की खपत के बीच, एक दुखद घटना सामने आई जब बासदेव ने नशे की हालत में मघर सिंह को गोली मार दी, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

    मामले के तथ्य

    अपीलकर्ता बासदेव ने एक शादी समारोह के दौरान 15 से 16 वर्ष की उम्र के एक युवा लड़के मघर सिंह को गोली मार दी। उपस्थित लोगों में शराब का सेवन प्रचलित था, जिसमें बासदेव भी शामिल था, जो भारी नशे में था। नशे की हालत में बासदेव ने कथित तौर पर बिना किसी पूर्व योजना या मकसद के मघर सिंह को गोली मार दी। सत्र न्यायाधीश ने बासदेव के नशे में होने और हत्या के इरादे की कमी को देखते हुए उसे गैर इरादतन हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पटियाला पेप्सू हाईकोर्ट में एक असफल अपील की गई।

    महत्वपूर्ण मुद्दे

    मामले में उठाए गए प्राथमिक मुद्दे थे:

    1. क्या बासदेव हत्या या गैर इरादतन हत्या का दोषी था?

    2. यदि यह कृत्य हत्या या गैर इरादतन हत्या है?

    विवाद उठाए गए

    बासदेव का बचाव:

    बासदेव ने तर्क दिया कि उसके अत्यधिक नशे ने उसे हत्या करने का आवश्यक इरादा बनाने से रोक दिया। उसने दावा किया कि वह इतना नशे में था कि वह अपने कृत्य के परिणामों को समझ नहीं सका। इसलिए, उन्होंने नशे के बचाव का आह्वान करने और आरोप को गैर इरादतन हत्या में तब्दील करने की मांग की।

    प्रतिवादी का तर्क:

    अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि बासदेव ने स्वेच्छा से शराब का सेवन किया, जिससे वह नशे में था। उन्होंने तर्क दिया कि बासदेव इतना नशे में नहीं था कि अपने कृत्य की गंभीरता से अनजान हो। इसलिए, उन्होंने नशे के बचाव के लिए बासदेव की याचिका का विरोध किया और हत्या का आरोप लगाने की वकालत की।

    Judgement

    न्यायमूर्ति एन.एच. भगवती और न्यायमूर्ति चन्द्रशेखर अय्यर के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल 1956 को अपना फैसला सुनाया।

    अदालत ने निर्णय दिया कि भले ही अपीलकर्ता नशे में था, फिर भी वह जानता था कि जब उसने लड़के को गोली मारी तो वह क्या कर रहा था। उन्होंने कहा कि वह अपने आप घूमने-फिरने में सक्षम था और उसने बैठने की जगह चुनी, जिससे पता चलता है कि वह इतना नशे में नहीं था कि उसे कुछ समझ न आए। इसके अलावा, उसने शूटिंग के बाद मदद की भीख मांगी, जिससे साबित हुआ कि वह जानता था कि उसने जो किया वह गलत था। इसलिए, अदालत नशे में होने के उनके बचाव से सहमत नहीं हुई।

    अदालत ने बारीकी से देखा कि क्या अपीलकर्ता का इरादा अपराध करने का था। उन्होंने कहा कि अगर कोई गलती से नशे में धुत हो जाता है, तो यह बचाव हो सकता है, लेकिन अगर वह जानबूझकर शराब पीता है, तो यह अलग बात है। उन्होंने समझाया कि इरादा कुछ करने के कारण से आता है, जबकि ज्ञान यह जानना है कि आपके कार्यों के कारण क्या हो सकता है।

    अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता पर हत्या का आरोप लगाया जाना चाहिए, न कि किसी छोटे अपराध का। उन्होंने सोचा कि भले ही वह नशे में था, फिर भी वह अपने कार्यों के लिए ज़िम्मेदार होने के लिए पर्याप्त समझता था। चूँकि वह यह साबित नहीं कर सका कि वह इतना नशे में था कि उसे पता नहीं चल सका कि वह क्या कर रहा है, इसलिए उसकी अपील खारिज कर दी गई।

    बासदेव की याचिका खारिज करने के बावजूद, अदालत ने महत्वपूर्ण दिशानिर्देश स्थापित किए:

    1. नशा, चाहे स्वेच्छा से प्रेरित हो या अनैच्छिक, किसी व्यक्ति को उनके कार्यों के परिणामों से मुक्त नहीं करता है।

    2. इरादे को निर्धारित करने के लिए अन्य तथ्यों के साथ-साथ नशे के साक्ष्य पर भी विचार किया जाना चाहिए।

    3. नशा निर्णय लेने को प्रभावित कर सकता है लेकिन इस धारणा को नकारता नहीं है कि कोई व्यक्ति अपने कार्यों के परिणामों का इरादा रखता है।

    विश्लेषण

    बासदेव बनाम पीईपीएसयू राज्य मामला न केवल कानूनी दायरे में बल्कि सामाजिक मूल्यों और सिद्धांतों के व्यापक संदर्भ में भी गहरा महत्व रखता है। यह जवाबदेही और कानून के शासन के महत्व को रेखांकित करता है, यहां तक कि उन स्थितियों में भी जहां व्यक्ति नशे के कारण हानि का दावा कर सकते हैं।

    यह मामला न्याय की खोज में मानवीय भावना के लचीलेपन की याद दिलाता है। यह परिस्थितियों या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डालता।

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