जानिए वकील के अपने मुवक्किल के प्रति प्रमुख कर्त्तव्य
SPARSH UPADHYAY
16 Dec 2019 7:30 AM IST
न्याय प्राप्त करना हम सभी का मूलभूत अधिकार है और ऐसा करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य 1994 SCC (3) 569 में भी अभिनिर्णित किया गया, जहाँ यह कहा गया कि 'स्पीडी ट्रायल' का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसी अधिकार को अदालत में प्राप्त करने के लिए जब मुवक्किल एक वकील से संपर्क करता है, तो एक वकील की भूमिका अहम् हो जाती है। हम सभी यह भी जानते हैं कि अदालतों में मामलों की पेंडेंसी के कारण हाल के समय में वकीलों की आवश्यकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि वकीलों को ऐसे माध्यम के रूप में माना जाता है, जिनके जरिये बिना किसी रुकावट के न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
भारत में, अपने मुवक्किल के साथ एक वकील का संबंध, मुख्य रूप से अनुबंध विधि का विषय है। यह संबंध, एजेंट और प्रिंसिपल की प्रकृति का है। मुवक्किल एवं वकील के बीच होने वाला समझौता यह निर्धारित करता है कि वकील अपने कृत्यों और बयानों से अपने मुवक्किल को किस हद तक बांध सकता है, वकील का पारिश्रमिक क्या होगा, वकील किस हद तक मुवक्किल को अपनी सेवाएं प्रदान करेगा, आदि।
हालाँकि जो बात अक्सर समझौते में नहीं लिखी जाती, पर वो इस समझौते का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, वह है एक वकील की अपने मुवक्किल के प्रति जिम्मेदारियां/कर्तव्य। इन कर्तव्यों को ही हम इस लेख के माध्यम से समझेंगे।
गौरतलब है कि पेशेवर नैतिकता (Professional ethics) की यह आवश्यकता है कि एक वकील ब्रीफिंग लेने से इनकार नहीं कर सकता है, बशर्ते एक मुवक्किल वकील की फीस का भुगतान करने के लिए तैयार है, और वकील अन्यथा व्यस्त नहीं है। इसलिए, देश में कोई भी बार एसोसिएशन की कार्रवाई या दिशानिर्देश, इस तरह के प्रस्ताव को पारित करने में, कि उसके सदस्यों (वकील) में से कोई भी, किसी एक विशेष अभियुक्त के मामले में उसकी ओर से पेश नहीं होगा, चाहे वह इस आधार पर हो कि वह एक पुलिसकर्मी है या इस आधार पर कि वह एक संदिग्ध आतंकवादी है, बलात्कारी है, हत्यारा है, आदि, संविधान के सभी मानदंडों, क़ानून और पेशेवर नैतिकता के खिलाफ है – ए एस मोहम्मद रफ़ी तमिलनाडु राज्य एवं अन्य AIR 2011 SC 308। इसलिए यह भी वकील के ऊपर एक जिम्मेदारी है कि वह मुवक्किल के लिए पेश होने से (ऊपर बताये गए कारण के अलावा किसी अन्य कारण के चलते) मना न करे।
हम यह भी समझते हैं कि एक वकील को हमेशा न्यायालय का सम्मान करना चाहिए और उसे 'पेशेवर नैतिकता' का पालन करना चाहिए। गौरतलब है कि अधिवक्ता अधिनियम 1961 यह कहता है कि प्रत्येक अधिवक्ता जिसका नाम राज्य रोल में दर्ज किया गया है, उसे यह कानूनी अधिकार प्राप्त है कि वह भारत में कहीं भी वकालत करे। एक वकील, सुप्रीम कोर्ट सहित सभी न्यायालयों में किसी भी व्यक्ति के लिए प्रस्तुत हो सकता है।
अधिवक्ता अधिनियम एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स
कानूनी पेशे में, एक वकील को अपने मुवक्किल के साथ उचित व्यवहार के लिए मौजूद नियमों/दिशानिर्देशों का पालन करना होता है। भारत सरकार ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया' के रूप में जाना जाने वाला एक वैधानिक निकाय स्थापित किया है। 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया' की स्थापना अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत की गयी है। इसी कानून की धारा 7 (1) (बी) के अनुसार, काउंसिल को अधिवक्ताओं के लिए पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों के सम्बन्ध में दिशानिर्देश/नियम बनाने होंगे। वहीँ धारा 49 (1) (c) के अंतर्गत, बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अधिवक्ताओं के पेशेवर आचरण के मानकों के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए नियम बनाने की अनुमति दी गयी है।
वहीँ बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के अध्याय II के भाग VI के तहत नियमों को तैयार किया है, जो वकीलों के पेशेवर आचरण के मानक के सबंध में नियम/दिशानिर्देश के रूप में समझे जा सकते हैं। इस अध्याय में अदालत, मुवक्किल, प्रतिद्वंदी आदि के प्रति एक वकील के 39 नियम या कर्तव्य मौजूद हैं। मौजूदा लेख में हम एक वकील के अपने मुवक्किल के प्रति मुख्य कर्तव्यों को समझेंगे और इसके लिए हम बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के अध्याय II के भाग VI के तहत तय नियमों का सहारा लेंगे। चूँकि हम इस लेख में केवल कुछ प्रमुख कर्तव्यों का ही जिक्र करेंगे इसलिए आप सभी नियमों को समझने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स पढ़ सकते हैं. आइये समझते हैं एक वकील के अपने मुवक्किल के प्रति प्रमुख कर्तव्यों को:-
ब्रीफ्स को स्वीकार करने के लिए वकील है बाध्य
एक वकील, अदालतों या न्यायाधिकरणों में या किसी अन्य प्राधिकारी के समक्ष या जिसमें वह प्रैक्टिस करने का प्रस्ताव करता है, किसी भी ब्रीफ को स्वीकार करने के लिए बाध्य है। उसे वह फीस लेने की अनुमति है, जो बार में उसके समकक्ष वकील, समान प्रकार के मामलों के लिए प्राप्त करते हैं। विशेष परिस्थितियों में किसी विशेष ब्रीफ को स्वीकार करने से इनकार किया जा सकता है। ऐसा ही ए. एस. मोहम्मद रफ़ी तमिलनाडु राज्य एवं अन्य AIR 2011 SC 308 के मामले में भी अभिनिर्णित किया गया है।
उन मामलों में पेश न होना, जहाँ वह स्वयं गवाह है
एक वकील को तब एक ब्रीफ स्वीकार नहीं करना चाहिए या उस मामले में पेश नहीं होना चाहिए जिसमें वह खुद एक गवाह है। यदि उसके पास यह मानने का कोई कारण है कि परिस्थितियों के कारणवश वह किसी मामले में गवाह होगा, तो उसे अपने मुवक्किल के लिए पेश नहीं होना चाहिए। उसे अपने मुवक्किल के हितों को खतरे में डाले बिना, मामले से हट जाना चाहिए. मुवक्किल के हितों को सर्वोपरि समझने के इस कर्तव्य को वी. सी रंगदुरै बनाम डी. गोपालन एवं अन्य 1979 AIR 281 के मामले में विस्तार से अदालत ने समझाया है।
सेवा देने से पीछे न हटना
जैसा कि कोंकंदा बी. पून्दाचा एवं अन्य बनाम के. डी. गणपति एवं अन्य (2011) 12 SCC 600 के मामले में कहा गया है, एक वकील यदि एक बार अपने मुवक्किल की सेवा करने के लिए सहमत हो गया है तो उसे फिर एक बार भी पीछे नहीं हटना चाहिए। वह मामले से केवल तभी हट सकता है, जब उसके पास ऐसा करने का पर्याप्त कारण हो और वह भी तब, जब वह मुवक्किल को उचित और पर्याप्त नोटिस दे दे। केस से हटने पर, वह शुल्क के ऐसे हिस्से को मुवक्किल को वापस कर देगा जितने हिस्से के सापेक्ष उसने कार्य नहीं किया है।
मुवक्किल और स्वयं के बीच संचार का खुलासा न करना
एक वकील को किसी भी तरह से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, उसके मुवक्किल द्वारा किए गए संचार का खुलासा किसी से भी नहीं करना चाहिए। वह सम्पूर्ण कार्यवाही में उसके द्वारा मुवक्किल को दी गई सलाह का भी खुलासा नहीं करेगा। हालांकि, वह संचार का खुलासा करने के लिए उत्तरदायी है यदि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 126 का उल्लंघन है।
अपने मुवक्किल के हितों को सर्वोपरि समझना
यह एक वकील का कर्तव्य है कि वह निर्भीक होकर अपने मुवक्किल के हितों को निष्पक्ष और सम्मानजनक तरीकों से बनाए रखे। एक अधिवक्ता स्वयं या किसी अन्य के लिए किसी भी अप्रिय परिणाम की परवाह किए बिना ऐसा करेगा। वह किसी अपराध में आरोपी व्यक्ति के प्रति अपनी व्यक्तिगत राय की परवाह किए बिना, उसके हितों की रक्षा करेगा। एक वकील का यह कर्तव्य माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा के. विजय लक्ष्मी बनाम आंध्र प्रदेश सरकार एवं अन्य [2013] INSC 253 के मामले में भी रेखांकित किया गया था।
सामग्री या साक्ष्य को न दबाना
एक आपराधिक मुकदमे की पैरवी करने वाले वकील को कार्यवाही को इस तरीके से संचालित करना चाहिए कि इससे निर्दोष को सजा न हो। एक वकील किसी भी तरह से ऐसी किसी भी सामग्री या सबूत को दबा नहीं सकता है, जो अभियुक्त की निर्दोषता को साबित करेगी।
मामलों की सफलता के आधार पर शुल्क का नहीं होना चाहिए निर्धारण
मामले की सफलता के आधार पर एक वकील को अपनी सेवाओं के लिए शुल्क नहीं लेना चाहिए। एक वकील को किसी मामले की सफलता के बाद प्राप्त राशि या संपत्ति के प्रतिशत के रूप में अपनी सेवाओं के लिए शुल्क नहीं लेना चाहिए।
वकील द्वारा उचित खाते रखे जाने चाहिए
एक वकील को हमेशा अपने मुवक्किल द्वारा प्राप्त पैसे का हिसाब रखना चाहिए। खातों में मुवक्किल से या उसकी ओर से प्राप्त राशियों को दिखाया जाना चाहिए। खाते में मुवक्किल के लिए किए गए खर्च को संबंधित तारीखों और अन्य सभी आवश्यक विवरणों के साथ दिखाया जाना चाहिए। एक वकील को अपने खातों में यह उल्लेख भी करना चाहिए कि क्लाइंट से उसके द्वारा प्राप्त कोई भी पैसा, किसी कार्यवाही के लिए है या फीस या खर्च के लिए है। वह क्लाइंट से लिखित निर्देश के बिना, फीस के रूप में प्राप्त राशि के किसी भी हिस्से को डायवर्ट नहीं करेगा। इसके अलावा जहाँ किसी भी राशि को उसके मुवक्किल की ओर से प्राप्त किया जाता है वहां वकील को बिना किसी देरी के इस बारे में मुवक्किल को सूचित करना चाहिए।
कानूनी कार्यवाही समाप्त होने के बाद फीस का समायोजन
कानूनी कार्यवाही के समापन के बाद एक वकील, मुवक्किल के खाते से राशि को अपनी सेवाओं के लिए देय शुल्क के साथ समायोजित करने के लिए स्वतंत्रत है। खाते में शेष राशि, मुवक्किल द्वारा भुगतान की गई राशि या उस कार्यवाही में उसे किसी अन्य प्रकार से प्राप्त राशि हो सकती है। खाते से शुल्क और खर्च में कटौती के बाद बची हुई किसी भी राशि को मुवक्किल को वापस किया जाना चाहिए। इसके अलावा एक वकील को अपने मुवक्किल को उसके द्वारा मांग किये जाने पर उसके द्वारा रखे गए मुवक्किल के खाते की प्रति प्रदान करनी चाहिए, बशर्ते कि आवश्यक प्रतिलिपि शुल्क का भुगतान किया जाए।
अपने मुवक्किल को पैसा उधार न दें
एक वकील, किसी भी कानूनी या अन्य कार्यवाही के लिए (जिसमे वह वकील के तौर पर शामिल हो) अपने मुवक्किल को पैसा उधार नहीं देगा। हालाँकि एक वकील को इस नियम के उल्लंघन के लिए तब दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, यदि किसी लंबित मुकदमे या कार्यवाही के दौरान, और उसी के संबंध में मुवक्किल के साथ कोई व्यवस्था किए बिना, वकील अदालत के नियम/दिशानिर्देश के कारण मजबूर होकर मुकदमे की कार्यवाही को जारी रखने के लिए, ग्राहक ओर से न्यायालय को भुगतान करे।
विरोधी पक्ष के मामले में न हों पेश
एक वकील, जिसने एक पक्ष को एक सूट, अपील या अन्य मामले के संबंध में सलाह दी है या एक पक्ष के लिए प्लीड किया है, या एक पक्ष के लिए काम किया है, उसी मामले में वह वकील विपरीत/विरोधी पक्ष के लिए कार्य नहीं करेगा, न ही पेश देगा या प्लीड करेगा।
अन्य जिम्मेदारियां/कर्तव्य
* एक वकील को अपने मुवक्किल या मुवक्किल के अधिकृत एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के निर्देशों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।
* एक वकील ऐसी व्यवस्था में प्रवेश नहीं करेगा जिससे उसके हाथ में मौजूद धन, ऋण में परिवर्तित हो जाए।
* एक वकील को अपने मुवक्किल द्वारा उसपर जताए गए विश्वास का दुरुपयोग या फायदा नहीं उठाना चाहिए।
अंत में, हमे यह जानना चाहिए कि कानूनी बिरादरी के किसी भी सदस्य द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए, जो किसी भी हद तक जनता की इस पेशे के प्रति निष्ठा, ईमानदारी और अखंडता में विश्वास को कम कर सकता है। 86 वर्ष की आयु में 1864 में लार्ड ब्रोघम ने एक भाषण में कहा था कि एक वकील का पहला महान गुण है कि वह 'अपने मुवक्किल के हितों से ऊपर किसी चीज़ को तरजीह न दे'। उन्होंने वर्ष 1864 में 'मुवक्किल के हित को सर्वोपरि मानने' के बारे में जो कहा, वह आज भी उतना ही सच है। एक वकील और उसके मुवक्किल के बीच का संबंध, स्वभाव में बहुत ही निष्ठावान, नाजुक, सटीक और गोपनीय चरित्र का होता है, जिसमें एक उच्च स्तर की निष्ठा और सद्भावना की आवश्यकता होती है।
गौरतलब है कि यह विशुद्ध रूप से एक व्यक्तिगत संबंध है, जिसमें उच्चतम व्यक्तिगत विश्वास शामिल होता है, जिसमें दोनों पक्षों की सहमति होती है। जब एक वकील को एक ब्रीफ सौंपा जाता है, तो उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह पेशेवर नैतिकता के मानदंडों का पालन करे और अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा करने की भरसक कोशिश करे, जिनके सापेक्ष वह विश्वास की स्थिति में है