विश्वविद्यालयों में यौन शोषण: क्या कहते है २०१५ के नियम

सुरभि करवा

16 Jun 2019 8:34 AM GMT

  • विश्वविद्यालयों में यौन शोषण: क्या कहते है २०१५ के नियम

    पिछले लेखों में हमने कार्यस्थल पर यौन शोषण के विषय में कानून को समझने का प्रयास किया। उसी कड़ी में आज के लेख में हम विश्वविद्यालयों में यौन शोषण और सम्बंधित नियमों पर बात करेंगे।

    यूँ तो २०१३ का अधिनियम विश्वविद्यालयों पर भी समान रूप से लागू होता है, पर फिर भी विश्वविद्यालयों में यौन शोषण पर अलग से बात करना जरुरी है. #MeToo आंदोलन के दौरान शिक्षा क्षेत्र में होने वाले लैंगिक शोषण के कई मुद्दे सामने आये थे. राया शंकर नामक एक छात्रा ने एक पूरी लिस्ट सार्वजनिक की थी जिसमें उन प्रोफेसरों और अध्यापकों का नाम था जिन्होनें कथित तौर पर छात्राओं के साथ गलत व्यवहार किया था.

    यहीं देखते हुए विश्विद्यालय अनुदान आयोग ने २०१५ में 'उच्चतर शैक्षिक संस्थाओं में महिला कर्मचारियों और छात्राओं के लैंगिक उत्पीड़न के निराकरण, निषेध एवं इसमें सुधार' विनियम २०१५ पारित किये. आज हम उन्हीं नियमों पर चर्चा करेंगे. ये नियम भारत के सभी उच्चतर शैक्षिक संस्थाओं पर लागू होते है.

    कुछ परिभाषाएँ -

    सर्वप्रथम हम कुछ जरुरी परिभाषाओं को समझ लेते है-

    'परिसर'-

    नियमों की धारा २(स) के तहत 'परिसर' की काफी विस्तृत परिभाषा दी गयी है. विश्वविद्यालय कैंपस के सभी स्थान जैसे- कैंटीन, लाइब्रेरी, हॉस्टल, पार्किंग, स्टेडियम, क्लास रूम, परिसर की परिभाषा में शामिल है. पर अगर कैंपस के बाहर भी यदि यौन शोषण होता है तो विश्वविद्यालय की ICC कार्यवाही कर सकती है. अगर महिला छात्र शैक्षिक या सह गतिविधियों के सम्बन्ध में कैंपस के बाहर किसी अन्य स्थान गयी हो और वहां यौन शोषण की घटना हुई हो, तो भी विश्वविद्यालय कीICC संज्ञान ले सकती है. इसे कुछ उदाहरणों से समझते है-

    मान लिया जाये छात्रा विश्वविद्यालय से किसी डिबेट या मूट प्रतियोगिता में गयी हो और वहाँ उसे यौन शोषण झेलना पड़ा हो. या हममें से बहुत से स्टूडेंट्स सेमेस्टर ब्रेक इंटर्नशिप पर जाते है. अगर इंटर्नशिप के दौरान ऐसी कोई घटना हो तो भी यूनिवर्सिटी की ICC एक्शन ले सकती है.

    छात्र-

    नियमित, गैर नियमित छात्राएँ और ऐसे छात्राएँ जो किसी लघु अवधि कोर्स में अध्ययनरत हो - इनमें से कोई भी छात्रा अगर यौन शोषण से पीड़ित हो तो विश्विद्यालय की ICC एक्शन ले सकती है.

    यहाँ गौरतलब बात यह है कि अगर छात्रा का एडमिशन अभी नहीं हुआ हो और एडमिशन के दौरान ही अगर उसके साथ यौन शोषण हो तो विश्वविद्यालय की ICC एक्शन के सकती है. उदाहरण के तौर पर अगर एडमिशन काउंसलिंग के दौरान किसी महिला स्टूडेंट के साथ लैंगिक शोषण होता है तो वह उस यूनिवर्सिटी की ICC से शिकायत कर सकती है भले ही वह औपचारिक तौर पर वहाँ की छात्रा नहीं बनी हो.

    विश्वविद्यालयों की ICC में कौन - कौन सदस्य होते है-

    हर यूनिवर्सिटी में एक ICC होना अनिवार्य है. विश्वविद्यालयों की ICC की लगभग आधी सदस्य महिलाऐं होनी चाहिए और वाईस चांसलर, रजिस्ट्रार, हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट आदि पदाधिकारियों को ICC का सदस्य नहीं होना चाहिए ताकि ICC की स्वतंत्रता पर प्रभाव न पड़े.

    नियम ४(२) के तहत यूनिवर्सिटी में बनाए जाने वाली ICC में निम्नलिखित सदस्य होते है-

    1. पीठासीन अधिकारी सीनियर महिला फैकल्टी मेंबर होनी चाहिए (यूनिवर्सिटी के मामले में महिला प्रोफेसर और कॉलेज के मामले में एसोसिएट महिला प्रोफेसर).

    2. दो फैकल्टी मेंबर और दो नॉन-टीचिंग स्टाफ मेंबर (प्रयास होना चाहिए कि ये सदस्य महिला अधिकारों के मुद्दों से जुड़े हो)

    उपर्युक्त दोनों प्रकार के सदस्य विश्विद्यालय की एग्जीक्यूटिव बॉडी द्वारा नामित किये जाते है.

    3. गौरतलब है कि यदि मामला विद्यार्थियों से सम्बंधित है तो ICC में ३ विद्यार्थी भी होने चाहिए. ये छात्र अंडरग्रेजुएट, पोस्ट- ग्रेजुएट और शोध छात्र तीनों कोर्स से होने चाहिए. इनका सिलेक्शन भी लोकतंत्रात्मक रूप से (उदाहरणत: चुनाव द्वारा) किया जाना चाहिए.

    4. अंतत: एक सदस्य NGO आदि से जुड़ा एक बाहरी व्यक्ति होना चाहिए.

    ICC द्वारा शिकायत मिलने पर अपनायी जाने वाली प्रक्रिया-

    शिकायत मिलने पर ICC द्वारा अपनाये जाने वाली प्रक्रिया उन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है जो २०१३ के अधिनियम के तहत दिए गए है. मध्यस्थता, कंपनसेशन, समयबद्ध जाँच , लिखित में शिकायत, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की पालना करना आदि सभी नियम समान ही है. (इस प्रक्रिया को आप यहाँ पा सकते है)

    पीड़ित महिला घटना के तीन महीनों में ICC को शिकायत कर सकती है. ICC यह तीन माह की अवधि को बढ़ा भी सकती है. शिकायत मिलने के ७ दिन में शिकायत प्रतिवादी को भेजी जाएगी जिसे अगले १० दिनों में शिकायत का जवाब देना होगा. फिर दोनों पार्टियाँ अपने -अपने सबूत, गवाह आदि पेश करेंगी और ९० दिनों में ICC को जांच पूरी कर यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव अथॉरिटी को अपनी सिफारिशें पेश करनी होगी. अंतत: एग्जीक्यूटिव अथॉरिटी ICC की सिफारिशों पर एक्शन लेने न लेने का निर्णय लेती है. ICC के विरुद्ध अपील यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल को की जा सकती है.

    'covered individual' एवं 'victimization'-

    यूनिवर्सिटी में ICC के कर्तव्यों के सन्दर्भ में एक बात अत्यंत महत्वपूर्ण और गौरतलब है, वह है 'covered individual'एवं 'victimization' के सन्दर्भ में दिए गए नियम। 'covered individual' वे लोग है जो यौन उत्पीड़न मामले में जाँच में सहयोग कर रहे हो, विटनेस हो या फिर जिन्होनें पीड़ित महिला के उत्पीड़न का विरोध किया हो. 'victimization' का मतलब होता है शिकायत करने वाली छात्रा के साथ भेदभाव करना, यानि पीड़ित महिला को शिकायत करने के लिए प्रताड़ित करना.

    इन दोनों मुद्दों को एक उदाहरण से समझते है. एक महिला छात्रा अपने प्रोफेसर द्वारा जो उसे एक विषय पढ़ाते है, उनके असाइनमेंट चेक करते है, द्वारा यौन शोषण झेलती है. अब अगर वह इस मामले की शिकायत करे तो वह अपने प्रोफेसर द्वारा भेदभाव का शिकार जैसे असाइनमेंट और एग्जाम में जान-बुझकर कम अंक देना, आदि का शिकार हो सकती है. इसे कहेंगे 'victimization'. मान लीजिये अगर उस महिला छात्र के कुछ दोस्त शिकायत करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान उसका सहयोग कर रहे हो, तो हो सकता है वे भी प्रतिवादी प्रोफेसर की ओर से भेदभाव झेले.

    ऐसे में २०१५ के नियमों के तहत ICC का यह कर्तव्य है कि वे पीड़ित छात्रा और को भेदभाव और से बचाएँ। {यही बात पीयर यौन शोषण (छात्र- छात्राओं के बीच शोषण) के मामलों में भी लागू होती है, उदाहरण के तौर पर जहाँ सीनियर स्टूडेंट द्वारा जूनियर स्टूडेंट का शोषण किया गया हो}

    नियम ९ के तहत ICC ऐसे मामलों में अंतरिम एक्शन भी ले सकती है जैसे उस प्रोफेसर को शिकायत करने वाली छात्रा का असाइनमेंट चेक करने से रोकना। (नियम ९ देखें)

    दंड-

    नियम १० के तहत प्रतिवादी छात्र के खिलाफ निम्नलिखित एक्शन लिए जा सकते है-

    १. लाइब्रेरी, हॉस्टल आदि सुविधाओं से प्रतिवादी छात्र को वंचित करना. कैंपस एंट्री पर रोक लगाना.

    २. स्कॉलरशिप रोक देना.

    ३. सस्पेंड करना या संस्था से नाम ख़ारिज कर देना।

    ४. पर चूँकि मामला छात्रों का है, नियम रेफोर्मेटिव एक्शन जैसे कम्युनिटी सर्विस, काउंसलिंग आदि के लिए भी प्रावधान करते है.

    नियम ११ के तहत झूठी शिकायतों के विरुद्ध लिए जा सकने वाले एक्शन के बारे में दिया गया है.

    विश्वविद्यालय के कर्तव्य -

    नियमों के तहत यूनिवर्सिटी के निम्नलिखित कर्तव्य है-

    १. लैंगिक शोषण के प्रति जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी अपनाते हुए यौन शोषण और उसके विरुद्ध उपलब्ध कानूनों के बारे में वर्कशॉप आदि आयोजित करना ताकि छात्र- छात्राओं में इस संदर्भ में जागरूकता लायी जा सके.

    २. २०१५ के नियमों में कुछ हद तक थर्ड जेंडर द्वारा झेले गए यौन शोषण को भी पहचाना गया है. सभी विश्वविद्यालयों का यह कर्तव्य है कि वे थर्ड जेंडर जो कई लेवल पर शोषण झेलते है और महिला छात्राएँ जो जाति- धर्म आदि के आधार पर कई स्तर पर शोषण और भेदभाव झेलते है उनकी वल्नेरेबिलिटी की ओर खास रूप से ध्यान दिया जाये. इस सन्दर्भ में नियम ३.२ कहता है कि वे छात्राएँ जो वर्ग , रीजीन और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर कई तरह से भेदभाव झेलते है, उन्हें ICCकी मशीनरी इस्तेमाल करने में मुख्य रूप से सपोर्ट दिया जाये.

    इस तरह हमने देखा कि २०१५ के नियमों के तहत यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में यौन शोषण के मामलों के विरुद्ध एक्शन लेने और हमारे विश्वविद्यालयों को शोषण मुक्त बनाने के लिए उपयुक्त नियम बनाये गए है. विश्वविद्यालयं अगर चाहे तो वे इन नियमों से आगे बढ़कर भी नियम बना सकते है, पर हर यूनिवर्सिटी में कम से कम २०१५ के नियमों की पालना तो होना अनिवार्य है. अन्यथा नियम १२ के तहत इन नियमों की अवहेलना करने वाली यूनिवर्सिटीयों के विरुद्ध उचित कार्यवाही के प्रावधान है.

    अगर मुनासिब तौर पर एक्शन न लिया जाए या ICC पीड़ित महिला की शिकायत न स्वीकार करे तो UGC को शिकायत भी की जा सकती है. इस सन्दर्भ में UGC (Grievance Redressal) Regulation 2012 के उपनियम २(f)(xv) के तहत छात्रों के यौन शोषण को भी 'grievance' माना गया है. अत: UGC को शिकायत भेजी जा सकती है. ये नियम यहाँ उपलब्ध है-https://www.ugc.ac.in/pdfnews/0588502_English.pdf

    जरुरत यह है कि हम अपने- अपने विश्वविद्यालयों में २०१५ के नियमों को समुचित पालना की माँग करें.

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