फर्जी ट्रांसफर सर्टिफिकेट धोखाधड़ी वाले काम को समय बीतने से कोई पवित्रता नहीं मिलेगी: कर्नाटक हाइकोर्ट

Amir Ahmad

1 April 2024 8:19 AM GMT

  • फर्जी ट्रांसफर सर्टिफिकेट धोखाधड़ी वाले काम को समय बीतने से कोई पवित्रता नहीं मिलेगी: कर्नाटक हाइकोर्ट

    कर्नाटक हाइकोर्ट की जस्टिस के.एस. हेमलेखा की एकल न्यायाधीश पीठ ने टी.वाई. सुब्रमणि बनाम डिवीजनल कंट्रोलर के.एस.आर.टी.सी. के मामले में सिविल रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि केवल समय बीतने से धोखाधड़ी वाले काम को कोई पवित्रता नहीं मिलेगी। ऐसे मामलों में इक्विटी क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इक्विटी चाहने वाले व्यक्ति को निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से कार्य करना चाहिए।

    मामले की पृष्ठभूमि

    कर्मचारी (याचिकाकर्ता) को निगम (प्रतिवादी) की स्थापना में चालक के रूप में नियुक्त किया गया। याचिकाकर्ता पर नियुक्ति के समय फर्जी ट्रांसफर सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने का आरोप लगाया गया और जांच अधिकारी द्वारा जांच के बाद उन आरोपों को सिद्ध कर दिया गया।

    इसलिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 10 (4-ए) के तहत विवादित आदेश के खिलाफ विवाद उठाया। लेबर कोर्ट ने प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता को पूर्ण बकाया वेतन के साथ सेवा में निरंतरता के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।

    प्रतिवादी ने लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर की। न्यायालय ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया और लेबर कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया तथा मामले को कानून के अनुसार नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।

    इस बार लेबर कोर्ट ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पारित बर्खास्तगी आदेश की पुष्टि की और माना कि आदेश सिद्ध कदाचार के अनुपात में था, क्योंकि याचिकाकर्ता ने फेक ट्रांसफर के आधार पर रोजगार प्राप्त किया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी के विवादित आदेशों को चुनौती देते हुए वर्तमान सिविल रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने जांच के निष्कर्षों को लगभग पांच वर्षों तक रोके रखने के पश्चात याचिकाकर्ता को सेवा से हटा दिया तथा जांच पूरी करने में अनुचित विलम्ब तथा सेवा से बर्खास्तगी का कठोर दण्ड लगाने से याचिकाकर्ता के साथ अन्याय हुआ।

    अदालत के निष्कर्ष

    अदालत ने कहा कि केवल समय बीतने से धोखाधड़ी वाली प्रथा को कोई पवित्रता नहीं मिलती। अदालत ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम वी.एम.भास्करन के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केवल इसलिए कि प्रतिवादी-कर्मचारी ऐसे धोखाधड़ी से प्राप्त रोजगार आदेशों के आधार पर कई वर्षों तक सेवा में बने रहे हैं, उनके पक्ष में कोई इक्विटी या नियोक्ता के विरुद्ध कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।

    अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के मामले में इक्विटी क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता, जिसने झूठे और मनगढ़ंत ट्रांसफर सर्टिफिकेट के आधार पर रोजगार प्राप्त किया, क्योंकि इक्विटी चाहने वाले व्यक्ति को साफ हाथों से आना चाहिए। जो व्यक्ति झूठे दावों के साथ अदालत में आता है, वह इक्विटी की दलील नहीं दे सकता और न ही अदालत उसके पक्ष में इक्विटी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायोचित होगी।

    जो व्यक्ति समानता चाहता है, उसे निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से काम करना चाहिए।

    न्यायालय ने जिला कलेक्टर और चेयरमैन, विजयनगरम बनाम एम. त्रिपुरा सुंदरी देवी के मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसी परिस्थितियों में कम योग्यता वाले व्यक्तियों को नियुक्त करना जनता के साथ धोखाधड़ी है, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से न कहा गया हो कि योग्यता में छूट दी जा सकती है। न्यायालय ने माना कि श्रम न्यायालय ने औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 10 (4-ए) के तहत याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को सही तरीके से खारिज कर दिया। इसके अलावा न्यायालय ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पारित बर्खास्तगी आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया।

    उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ सिविल रिट याचिका खारिज कर दी गई और लेबर कोर्ट के विवादित आदेश की पुष्टि की गई।

    केस टाइटल- टी.वाई. सुब्रमणि बनाम डिवीजनल कंट्रोलर, केएसआरटीसी

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