हुक्का सिगरेट जितना ही नशीला और हानिकारक: कर्नाटक हाइकोर्ट ने प्रतिबंध बरकरार रखा

Amir Ahmad

23 April 2024 7:19 AM GMT

  • हुक्का सिगरेट जितना ही नशीला और हानिकारक: कर्नाटक हाइकोर्ट ने प्रतिबंध बरकरार रखा

    यह एक मिथक है कि हुक्का पीने से सिगरेट पीने की तुलना में तंबाकू से संबंधित बीमारियों का कम जोखिम होता है, कर्नाटक हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य के भीतर सभी प्रकार के हुक्का उत्पादों की बिक्री, खपत, भंडारण, विज्ञापन और प्रचार पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को बरकरार रखते हुए कहा।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कहा कि राज्य ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पदार्थों और दवाओं को प्रतिबंधित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत अपने कर्तव्य का सही ढंग से निर्वहन किया।

    आदेश में लिखा,

    “हुक्का सत्र आमतौर पर लगभग एक घंटे की अवधि के लिए कहा जाता है, जो कि प्रति सत्र 200 कश का अनुमान है। यदि यह प्रति सत्र 200 कश है तो यह इनमें से किसी भी सत्र में 100 सिगरेट के बराबर है। हुक्का सिगरेट की तरह ही नशीला होता है, सिगरेट जितना ही हानिकारक, सिगरेट जैसे ही इसमें वही रसायन होते हैं। सिगरेट के हर पैकेट पर चेतावनी होनी चाहिए कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। शराब की हर बोतल पर चेतावनी होती है कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है लेकिन हुक्का पर ऐसा नहीं होता। इसलिए राज्य की कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के साथ पूरी तरह से अनुरूप है। इसके अलावा यह कानून में पूरी तरह से मान्य है।”

    कोर्ट ने कहा,

    "सार्वजनिक स्थानों पर हुक्का आमतौर पर समूहों में उपयोग किया जाता है, जिसमें एक ही माउथपीस को इधर-उधर घुमाया जाता है। हेपेटाइटिस, हर्पीज जैसी बीमारियों के संक्रमण का खतरा अधिक है। यह भी एक मिथक है कि हुक्का पीने से सिगरेट पीने की तुलना में तंबाकू संबंधी बीमारियों का खतरा कम होता। अगर सिगरेट फेफड़ों के कैंसर या सांस की बीमारी का कारण बन सकती है तो हुक्का भी इसकी चपेट में आ रहा है, क्योंकि हुक्का पीने से धूम्रपान करने वालों को लंबे समय तक इसका सेवन करने का मौका मिलता है। इसलिए वे विषाक्त पदार्थों की उच्च सांद्रता के संपर्क में आते हैं। यह एक तथ्य है कि हुक्का पीना सिगरेट के एक पैकेट से ज़्यादा हानिकारक है।”

    इसने कहा इसके बाद पीठ ने स्पष्ट किया कि सिगरेट पीने के लिए किसी व्यक्ति के पास अलग से उपकरण नहीं होना चाहिए। इसलिए उसे धूम्रपान क्षेत्र बनाने के अलावा किसी सेवा की ज़रूरत नहीं है। हालांकि, हुक्का तब तक नहीं पिया जा सकता, जब तक कि रेस्तरां मालिकों द्वारा उचित उपकरण उपलब्ध न कराए जाएं।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    “अगर हुक्का पीने के लिए ऐसी सेवा की ज़रूरत होती है, जो दी जानी चाहिए तो यह किसी निर्दिष्ट स्थान के कोने में नहीं हो सकती और हुक्का पीने के लिए उपकरण को धूम्रपान करने वाले द्वारा जेब में नहीं रखा जा सकता, जो निर्दिष्ट क्षेत्र में जाना चाहता है, धूम्रपान करना चाहता है और बाहर आना चाहता है। इसके लिए भोजन और शराब जैसी सभी सेवाओं की ज़रूरत होती है। यदि उक्त गतिविधि को 2017 के नियमों [सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध (संशोधन) नियम, 2017] में संशोधन के आधार पर देखा जाए तो स्पष्ट रूप से यह बात सामने आएगी कि नियम में लाए गए संशोधन के तहत निषेध लागू किया जाएगा, क्योंकि धूम्रपान के लिए उपलब्ध कराए गए किसी भी धूम्रपान क्षेत्र या स्थान में किसी भी सेवा की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”

    न्यायालय ने याचिकाकर्ता की यह दलील खारिज कर दी कि तंबाकू पहले से ही सीओटीपीए के अंतर्गत आता है और इस तरह कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। इसने उल्लेख किया कि संविधान की 7वीं अनुसूची में सूची-II के तहत राज्य के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य, राज्य सरकार द्वारा शासित उद्योगों और सार्वजनिक नीति के रूप में कुछ उपभोगों के निषेध से संबंधित कानून बनाने की शक्ति है।

    उन्होंने कहा,

    “कुछ परिस्थितियों में राज्य का भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत पोषण सुनिश्चित करने और जीवन स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने और मादक पेय पदार्थों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध लगाने का कर्तव्य और दायित्व है। अनुच्छेद 47 के तहत दायित्व केवल मादक दवाओं या दवाओं तक ही सीमित नहीं है।”

    न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि हुक्का तम्बाकू में निकोटीन होता है, जो विष अधिनियम और राज्य द्वारा बनाए गए नियमों के अंतर्गत आता है। इसलिए हुक्का में तम्बाकू/निकोटीन पाए जाने के मामले में राज्य सरकार द्वारा विष अधिनियम या उसके तहत बनाए गए 2015 के नियमों को लागू करने में कोई दोष नहीं पाया जा सकता।

    हर्बल हुक्का

    हर्बल हुक्का की अनुमति देने के लिए रेस्तरां मालिकों के तर्क पर आते हुए न्यायालय ने कहा कि हर्बल हुक्का का उपयोग गुड़ के बिना नहीं किया जा सकता, जो कर्नाटक निषेध अधिनियम 1961 के तहत प्रतिबंधित पदार्थ है।

    इस प्रकार उन्होंने कहा,

    "यह दलील कि यह हर्बल हुक्का है और अधिनियम प्रतिबंध नहीं लगाता है। इसलिए राज्य प्रतिबंध नहीं लगा सकता, यह अस्वीकार्य है, क्योंकि अधिनियम में हर्बल हुक्का पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति नहीं हो सकती है लेकिन नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के उद्देश्य से 2015 के नियमों और निषेध अधिनियम के तहत राज्य को संविधान के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। इसलिए केवल इसलिए कि हर्बल हुक्का में तंबाकू नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि इसे अनियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका मुख्य घटक गुड़ है और गुड़ विनियमित है।"

    केस टाइटल- आर भरत और कर्नाटक राज्य और अन्य

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