पूर्व वैमनस्य दो धार वाले हथियार की तरह: राजस्थान हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

4 April 2024 9:58 AM GMT

  • पूर्व वैमनस्य दो धार वाले हथियार की तरह: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस फरजंद अली ने हत्या के आरोप का सामना कर रहे एक आरोपी की जमानत पर सुनवाई करते हुए रिपोर्टेबल जजमेंट में कहा है कि किसी आपराधिक मामले पर निर्णय करते समय न्यायालयों को तथ्यात्मक परिप्रेक्ष्य को व्यापक परिदृश्य से देखने की आवश्यकता होती है, क्योंकि पूर्व वैमनस्य दो धार वाले हथियार की तरह है। इसका एक पहलू यह है कि यह आरोपी के लिए दुश्मन को नुकसान पहुंचाने की कार्रवाई का कारण बनता है।

    यह आरोपी को बदला लेने के लिए प्रेरित करता है और उसे उकसाता है, जबकि इसका दूसरा पहलू यह है कि यह शिकायतकर्ता को दुश्मन को झूठे मामले में घसीटने की समान संभावना प्रदान करता है, ताकि उसे दंडित किया जा सके या उसे सबक सिखाया जा सके। इस बात के दो दृष्टिकोण हैं कि कैसे एक आपराधिक मुकदमे के पक्षकार एक-दूसरे के दुश्मन हैं, जबकि मामले की उत्पति दोनों पक्षों के बीच पहले से चली आ रही दुश्मनी में निहित है।

    यदि आरोपी पीडि़त का दुश्मन है तो पीडि़त भी उतना ही आरोपी का दुश्मन है। जब ऐसे मामले न्यायनिर्णयन के लिए आते हैं, जिनमें पूर्व कटुता की पृष्ठभूमि से सम्बन्धित कोई मुद्दा होता है, तो उसे सुलझाना अथवा स्पष्ट शब्दों में समझना मुश्किल होता है कि क्या आरोपी ने पीडि़त पर हमला किया या पीडि़त ने आरोपी जो कि दुश्मन है, को कीचड़ में घसीटा।

    मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए जस्टिस अली ने कहा कि विवेक के आधार पर यह माना जा सकता है कि पीडि़त को गोली मारने के लिए अपने बेटे को हथियार मुहैया कराने के बजाय पिता खुद ही पीडि़त पर गोली चलाकर उसे अपने हाथों से मारना चाहेगा, क्योंकि एक प्यार करने वाला पिता कभी भी ऐसा करने का विकल्प नहीं चुनता, इसके बजाय, वह अपने बेटे की जान बचाने के लिए दोष/जिम्मेदारी/परेशानी अपने कंधों पर लेने का विकल्प चुनेगा।

    हालांकि यह जरूरी नहीं है कि ऐसी स्थिति हर समय एक ही तरीके से सुलझेगी, लेकिन ज्यादातर समय यह इसी तरह से सुलझ सकती है। यह विशेष तथ्य कमजोर प्रतीत होता है और यह बहुत कम संभावना है कि गर्म माहौल में पिता खुद दुश्मन को गोली मारने का विकल्प नहीं चुनेगा और अपने बेटे को बंदूक सौंप देगा और उसे पीडि़त/दुश्मन को गोली मारने का आदेश देगा, इससे भी अधिक जब वे एक दूसरे के बगल में खड़े हों। सामान्य विवेक में, वह किसी दूसरे व्यक्ति को हथियार की आपूर्ति करने में समय बर्बाद नहीं करेगा।

    अदलत ने कहा -

    जमानत देने के मामले पर विचार करते समय घटनाओं की सामान्य व्यापकता, अभियुक्तों की परिस्थितियां, अभियुक्त व्यक्तियों का एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध, अभियुक्तों का इरादा, आसपास के वातावरण में मौजूद उत्तेजक कारक और कई अन्य पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। बेशक, किसी आरोपी की सजा की अवधि निर्धारित करते समय आरोपी की परिस्थितियों और ऊपर उल्लेखित अन्य प्रासंगिक कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। जहां आरोपी को आईपीसी की धारा 34, 109, 120-बी और 149 जैसे प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया है, जहां कई आरोपी शामिल हैं और परोक्ष दायित्व की अवधारणा भी सामने आती है, अदालतों को आरोपी के खिलाफ उपलब्ध सम्पूर्ण सामग्री का उचित सावधानी के साथ आकलन और जांच करनी चाहिए, ताकि आरोपी की सटीक भूमिका को स्पष्ट शब्दों में समझा जा सके। ऐसे मामलों में यह और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि इन मामलों में यह एक सामान्य घटना है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, व्यक्तिगत द्वेष या शत्रुतापूर्ण संबंध रखने वाले व्यक्ति में कथित अपराध में मुख्य आरोपी से जुड़े अधिक लोगों को फंसाने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए किसी अभियुक्त पर उत्तरदायित्व के मामले में, अदालतों को विस्तृत चर्चा करने और साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सतर्क रहना चाहिए।

    याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेन्द्र सिंह और उनकी सहयोगी अधिवक्ता प्रियंका बोराणा उपस्थित हुए, जबकि राज्य का प्रतिनिधित्व लोक अभियोजक अरुण कुमार ने किया।

    केस टाइटल - भाकरराम बनाम राजस्थान राज्य व अन्य

    रजाक खान हैदर, जोधपुर @ लाइव लॉ नेटवर्क

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