जिस हिंदू महिला की खुद की कोई आय न हो, वह मृत पति की दी गई संपत्ति का आनंद ले सकती है, हालांकि उस पर पूर्ण अधिकार नहीं रख सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 April 2024 8:11 AM GMT

  • जिस हिंदू महिला की खुद की कोई आय न हो, वह मृत पति की दी गई संपत्ति का आनंद ले सकती है, हालांकि उस पर पूर्ण अधिकार नहीं रख सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि एक हिंदू महिला, जिसकी खुद की कोई आय न हो, उसे अपने पूरे जीवनकाल में मृत पति से प्राप्त संपत्ति का आनंद लेने का पूरा अधिकार है, हालांकि उस पर उसका "पूर्ण अधिकार" नहीं हो सकता है। जस्टिस प्रथिबा एम सिंह ने कहा, "हिंदू महिलाओं के मामले में, जिनके पास अपनी आय नहीं है, उनके पतियों द्वारा दी गई जीवन संपत्ति प्राप्त करना..उनकी वित्तीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है।"

    अदालत ने कहा कि ऐसी सुरक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि पति के निधन के बाद महिला अपने बच्चों पर निर्भर न रहे। कोर्ट ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में, पत्नी को अपने जीवनकाल में संपत्ति का आनंद लेने का पूरा अधिकार है। वह जीवन भर उक्त संपत्ति से आय का आनंद ले सकती है।”

    कोर्ट ने हालांकि निर्णय में यह भी कहा कि यह नहीं माना जा सकता है कि पति की मृत्यु के बाद पूरी संपत्ति को गुजारा भत्ता के रूप में माना जाना चाहिए, जिससे पत्नी को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार मिल सके। जस्टिस सिंह ने ये टिप्पणियां तब की, जब वह 1989 में पिता की मृत्यु के बाद कई भाई-बहनों के बीच विभाजन विवाद संबंधित एक मामले निस्तार‌ित कर रही थीं। पिता ने अपनी पत्नी के पक्ष में एक वसीयत निष्पादित की, जिसमें यह कहा गया था कि वह अपनी संपत्ति को जीवन संपत्ति के रूप में उन्हें सौंप देंगे।

    उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी को उक्त संपत्ति का किराया वसूलने और उसका उपयोग करने का पूरा अधिकार होगा। यह भी कहा गया था कि पत्नी कहा मृत्यु के मामले में, संपत्ति चार बेटों को छोड़कर बाकी बच्चों के बीच स्थानांतरित हो जाएगी। पत्नी की 2012 में मृत्यु हो गई।

    जिसके बाद चार भाई-बहनों (तीन बेटों और एक बेटी) ने अन्य तीन भाई-बहनों और एक पोती, जिसके पिता की मृत्यु पहले हो गई थी, के खिलाफ विभाजन का मुकदमा दायर किया गया था।

    ट्रायल कोर्ट के समक्ष, प्रतिवादी भाई-बहन ने दावा किया कि मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। यह प्रस्तुत किया गया था कि वसीयत के आधार पर मां को संपत्ति जीवन काल के लिए दी गई थी और इस प्रकार, उसके अधिकार सीमित थे। यह तर्क दिया गया कि मां की मृत्यु के बाद, संपत्ति वसीयत में उल्लिखित अनुसार हस्तांतरित की जानी चाहिए।

    ट्रायल कोर्ट ने वादी भाई-बहन के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि वसीयत के आधार पर, पत्नी संपत्ति की पूर्ण मालिक बन गई, जिसकी बिना वसीयत के मृत्यु हो गई थी। इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने माना कि संपत्ति उत्तराधिकार के अनुसार हस्तांतरित की जाएगी।

    उक्त आदेश को प्रतिवादी भाई-बहन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिसे स्वीकार करते हुए, जस्टिस सिंह ने यह कहते हुए विवादित आदेश को रद्द कर दिया कि पत्नी ने अपने जीवनकाल में कोई भी वसीयत निष्पादित नहीं किया और बिना वसीयत किए उसकी मृत्यु हो गई।

    अदालत ने पाया कि वसीयत को कोई चुनौती नहीं दी गई, न तो पत्नी ने दी और न ही बच्चों ने दी। और स्पष्ट रूप से पति ने अपनी वसीयत में जो व्यक्त किया, पत्नी को उसके विपरीत उसका कोई इरादा नहीं था।

    कोर्ट ने कहा, खुद की वसीयत का मसौदा तैयार न करके, पत्नी ने ऐसा कोई इरादा व्यक्त नहीं किया, जो उसके पति की वसीयत से अलग हो, जिससे इस धारणा को बल मिला कि वह उन शर्तों से सहमत थी, जो पति ने अंतिम सांस लेने से पहले तय की थीं।

    जस्टिस सिंह ने कहा कि संपत्ति में पत्नी का अधिकार स्पष्ट रूप से वसीयत के तहत ही उसे हस्तांतरित होता है। अदालत ने कहा कि पति की मृत्यु से पहले संपत्ति में पत्नी का कोई 'अधिकार' नहीं था और उसने केवल वसीयत के तहत अधिकार हासिल किया था।

    अदालत ने कहा, "उसे अपने जीवनकाल में विषय संपत्ति से उत्पन्न आय का आनंद लेने का अधिकार था, और इसे पूर्ण हित नहीं माना जा सकता है।"

    केस टाइटलः मनमोहन सिंह और अन्य बनाम शीतल सिंह और अन्य।

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