एक महिला होने में दर्द है, लेकिन इसमें गर्व भी है, 21 साल बाद पति को धारा 498 ए का भी दोषी पाया, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
LiveLaw News Network
9 Sept 2019 9:03 AM IST
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीते बुधवार को मृतका वैशाली, जिसने 21 साल पहले कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली थी, उसकी सास मंदाकिनी की सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि वैशाली का पति दिनेश, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दोषी था और सजा के बिंदु पर उसे सुनवाई का अवसर दिया।
मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने आरोपी मंदाकिनी एवं राज्य द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। दरअसल राज्य सरकार ने सजा बढाने के लिए अपील दायर की थी।
न्यायमूर्ति डांगरे द्वारा लिखित निर्णय में संयुक्त राज्य अमेरिका की मैरी पॉलिन लोरी को उद्धृत किया गया, जिन्हें महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने की वकालत करने के लिए जाना जाता है -
"एक महिला होने में दर्द है, लेकिन इसमें गर्व भी है।"
आगे अदालत ने देखा कि-
"मृतक वैशाली ने कष्ट का सामना किया, लेकिन एक महिला, एक जननी, होने के गर्व का अनुभव करने के लिए जीवित नहीं रही, क्योंकि इससे पहले ही वह अपने जीवन की लौ को बुझाकर इस दुनिया को छोड़कर चली गयी।"
वैशाली ने 8 मई, 1998 को दिनेश से शादी की और लगभग 6 महीने बाद 4 नवंबर को एक कीटनाशक, डूनेट मेथनॉल पीकर अपने जीवन का अंत कर लिया और 11 नवंबर को उसने दम तोड़ दिया।
केस की पृष्ठभूमि
वैशाली के पिता दादा साहेब ने घटना के दिन शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई। उन्होंने यह आरोप लगाया कि उनकी बेटी ने उसकी सास मंदाकिनी, उसकी ननद रूपाली और उसके पति दिनेश द्वारा उस पर किए गए क्रूर व्यवहार की उनसे शिकायत की थी।
शिकायतकर्ता ने कहा कि उनकी बेटी ने उन्हें सूचित किया था कि उसकी सास द्वारा इस तथ्य के कारण उसे परेशान किया गया था कि वह कभी नहीं चाहती थी कि उसका बेटा उससे शादी करे। साथ ही, वैशाली ने अपने माता-पिता को यह बताया कि उसकी सास ने 2 लाख रुपये की मांग की है और तीनों आरोपियों द्वारा उसके साथ शारीरिक और मानसिक रूप से क्रूरता की जा रही है। यह भी आरोप लगाया गया था कि वैशाली की शादी पर उसके माता-पिता ने दिनेश को एक मारुति कार देने के अलावा 12 लाख रुपये की राशि खर्च की थी।
4 नवंबर, 1998 को दादा साहेब और उनके परिवार के सदस्यों को यह सूचित किया गया कि वैशाली को पूजा अस्पताल, हडपसर में भर्ती कराया गया था और जब वे अस्पताल गए, तो उन्होंने उसे बेहोशी की हालत में पाया और उन्हें दिनेश से पूछताछ पर पता चला कि वैशाली की पिछली रात को दिनेश की मां (मृतका की सास) और बहन रूपाली के साथ मौखिक रूप से विवाद हुआ और उक्त लड़ाई के परिणामस्वरूप, उसने कीटनाशक का सेवन कर लिया। इस सूचना के आधार पर, धारा 498-ए, 304 बी और 306 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि मृत्यु वास्तव में मेथनॉल विषाक्तता के कारण हुई थी और जांच के निष्कर्ष पर जांच अधिकारी ने आरोप पत्र में धारा 302 आईपीसी का अपराध भी जोड़ा।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पुणे ने धारा 302 और 304-बी आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध से सभी आरोपियों को बरी कर दिया। हालांकि मंदाकिनी को धारा 498-ए और 306 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया गया और उसे क्रमशः 1 साल और 3 साल की सजा सुनाई गई।
निर्णय
उक्त निर्णय की विस्तार से जांच करने के बाद, कोर्ट ने नोट किया-
"हमने ट्रायल कोर्ट के फैसले का अवलोकन किया है और हमारा विचार है कि सत्र न्यायाधीश ने मृतक महिला के पति, अभियुक्त नंबर 1 - दिनेश, जो मृतका (अपनी पत्नी) के उत्पीडन में शामिल था, के खिलाफ रिकॉर्ड पर लाए गए सबूतों पर विचार न करते हुए गंभीर त्रुटी की है। अभियोजन पक्ष के गवाहों ने लगातार इस रुख को बनाए रखा है कि मृतका को उसकी सास और उसके पति दिनेश के हाथों उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था और वह आरोपी व्यक्तियों के हाथों शारीरिक और मानसिक क्रूरता का शिकार थी। "
जस्टिस डांगरे ने आगे देखा-
"मौजूद सबूत साफ़ तौर पर वैशाली पर ढहाई गई और उसके द्वारा चुपचाप सही गयी कठोरता एवं अत्याचार को स्थापित करते हैं, जिसने उसके मन में इस विश्वास को जन्म दिया कि उसके जीवन में कोई आशा या उम्मीद बची नहीं रह गयी है। उसकी सास द्वारा उसके साथ की गयी क्रूरता एवं दुर्व्यवहार और उसके पति की उस पर चुप्पी और उसके द्वारा वैशाली को शारीरिक एवं मानसिक यातना देने में अपनी माँ का साथ दिया जाना और गंभीर चोट की निश्चितता और उसके जीवन, अंग और स्वास्थ्य के लिए मौजूद खतरे से प्रेरित नकारात्मक विचारों ने वैशाली को तोड़ कर रख दिया और उसने यह चरम कदम उठाने का फैसला किया।
उसके पति ने उसके उत्पीड़न में एक बड़ी भूमिका निभाई, जिसने उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाया और उसके पति का यह आचरण, विद्वान सत्र न्यायाधीश के विचार से छूट गया, जिन्होंने उसे धारा 498-ए आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध से बरी कर दिया।"
अंत में, दोनों अपीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा-
"इस बात से संतुष्ट होकर कि अभियुक्त नंबर 1 - दिनेश, मृतका का पति, जिसे धारा 498-ए आईपीसी के तहत अपराध से ट्रायल कोर्ट द्वारा त्रुटीपूर्वक बरी कर दिया गया था और जिन कारणों को हमने ऊपर दर्ज किया है, हम अभियुक्त नंबर 1 - दिनेश को सजा पर सुनवाई का अवसर देने के लिए नोटिस जारी करते हैं और इस अपील को शुक्रवार को सुनवाई के लिए लिस्ट करते हैं।"