पति की हत्या के आरोप से पत्नी बरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महिला अकेले पति को पंखे से नहीं लटका सकती, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network

20 Sep 2019 4:44 AM GMT

  • पति की हत्या के आरोप से पत्नी बरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महिला अकेले पति को पंखे से नहीं लटका सकती, पढ़िए फैसला

    हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट द्वारा एक महिला को उसके पति की हत्या का दोषी ठहराया गया था और उसे सज़ा दी। आरोपी ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जहां उसे आरोपों से बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पति की हत्या की आरोपी महिला को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के कथित सहयोगियों के हाईकोर्ट बरी होने के बाद अभियोजन पक्ष द्वारा पेश कहानी पर संदेह जताया और इस संदेह का लाभ आरोपी को दिया।

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    गार्गी पर अपने पति तिरलोकी नाथ की गला दबाकर हत्या करने का आरोप था। अभियोजन का आरोप यह था कि महिला ने उसके भाइयों की मदद से कथित तौर पर घर के एक कमरे में शव को लटका दिया, जैसे कि यह आत्महत्या का मामला हो। ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के इस संस्करण को स्वीकार कर लिया और गार्गी और उसके भाइयों को दोषी ठहराया था।

    हाईकोर्ट ने आरोपी के कथित सहयोगियों को किया बरी

    उच्च न्यायालय ने गार्गी द्वारा दायर अपील पर यह माना कि आरोपी के भाइयों के खिलाफ साजिश के आरोप को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर सबूत पर्याप्त नहीं थे और हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया, लेकिन गार्गी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष की पुष्टि की।

    हाईकोर्ट ने गार्गी के भाइयों को बरी कर दिया और उन्हें सबूतों के आभाव में गार्गी के पति की हत्या की साज़िश रचने वाला नहीं माना।

    सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष

    अपील में न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि मृतक की गला दबाकर हत्या की गई थी और उसके बाद उसका शव कमरे में छत के पंखे से लटका मिला।

    सुप्रीम कोर्ट कहा कि यह कृत्य किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता और यह मानना निर्थक होगा कि आरोपी ने खुद छत के पंखे से शव को लटका दिया। पीठ ने कहा,

    "दी गई परिस्थितियों में जब अपीलकर्ता के कथित सहयोगियों को बरी कर दिया जाता है, तो अभियोजन की कहानी पर संदेह के पहले से मौजूद बादल छा जाते हैं। उच्च न्यायालय ने इस मामले में जांच एजेंसी द्वारा छोड़ी गई गायब लिंक पर निगरानी के साथ कार्यवाही की है।" हमारे विचार में जैसे ही अपीलकर्ता के भाइयों को बरी किया गया, उच्च न्यायालय को इस तरह के बरी होने के परिणाम की जांच करनी चाहिए कि अभियोजन सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण लिंक कमज़ोर पड़ गई और यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल था कि अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेहों से परे अपीलकर्ता के खिलाफ अपना मामला स्थापित किया। "

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    पीठ ने अंतिम देखे गए सिद्धांत के आवेदन को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आरोपी मृतक की पत्नी थी और उसके साथ रह रही थी और मृतक और अपीलकर्ता के ऐसे साहचर्य का, अपने आप से यह मतलब नहीं है कि अभियुक्त के अपराध का अनुमान लगाया जाए।

    पीठ ने आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अगर अभियोजन पक्ष अभियुक्त के खिलाफ कुछ संदेह पैदा कर सकता है, तो भी अभियुक्त को दोषी ठहराना असुरक्षित होगा और वह संदेह का लाभ पाने की हकदार है। पीठ ने यह कहा:

    "इस प्रकार, जैसा कि अभियोजन पक्ष की ओर से भरोसा किया जाता है, रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री और आस-पास के कारकों से प्राप्त होने वाली स्थिति यह है कि

    (क) मृतक तिरलोकी नाथ की मृत्यु प्रकृति में आत्मघाती थी और हालांकि यह आत्महत्या नहीं थी। दोषियों द्वारा मृतक को उसके कमरे में छत के पंखे से शव को लटकाकर आत्महत्या के रूप में पेश किया गया।

    (ख) रिकॉर्ड में कोई ठोस सबूत नहीं है, जिससे यह तय हो कि मृतक और अपीलकर्ता के संबंध तनावपूर्ण थे। या कि अपीलकर्ता अवैध संबंधों में लिप्त थी या वह अपने नाम पर संपत्ति के हस्तांतरण के लिए आग्रह कर रही थी।

    (ग) इस निष्कर्ष पर आना भी मुश्किल है कि मृतक ने अपीलकर्ता के हाथों अपने जीवन के लिए आसन्न खतरे को व्यक्त किया था।

    (घ) भले ही मृतक को आखिरी बार अपीलकर्ता के साथ जीवित देखा गया था, लेकिन उसके अंतिम बार देखने और उसके शव को खोजने के बीच का अंतर लगभग 2 से 3 दिनों का था। "



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